बेंगलुरु। भारतीय महिला हॉकी टीम की मिडफील्डर नेहा गोयल ने कहा है कि सकारात्मक दृष्टिकोण ने उन्हें कठिनाइयों से निपटने में मदद की। गोयल को शीर्ष स्तर पर लाने के लिए कई चुनौतियों से जूझना पड़ा है।
23 वर्षीय नेहा ने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उनके परिवार के लिए खेल उपकरण खरीदना मुश्किल था।
उन्होंने कहा,”यह मेरे लिए वास्तव में कठिन था जब मैंने पांचवीं कक्षा में हॉकी खेलना शुरू किया। मेरी मां दिन-रात काम करती थी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारे पास पर्याप्त भोजन हो और इसलिए मेरे लिए अपने उपकरणों के लिए कुछ पैसे बचाना बहुत मुश्किल था और जब एक बार मैं शीर्ष स्तर पर पहुंची तो मुझे कई चोटों का सामना करना पड़ा और लंबे समय तक भारतीय टीम से बाहर रहा।
मिडफील्डर ने कहा, “हालांकि, मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि मैंने कभी हार नहीं मानी और अपने करियर में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रही। मुझे बहुत खुशी है कि मैंने 2017 के बाद से भारत के लिए कई मैचों में हिस्सा लिया।”
भारतीय टीम के लिए 75 मैच खेल चुकी गोयल ने कहा कि राष्ट्रीय टीम का अंतिम लक्ष्य ओलंपिक में पदक जीतना है।
उन्होंने कहा,”हमारा एकमात्र ध्यान इस समय टोक्यो ओलंपिक पर है। हम पिछले कुछ महीनों में अपनी फिटनेस पर कड़ी मेहनत कर रहे हैं और हम अगले कुछ महीनों में अपने खेल में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।”
23 वर्षीय नेहा ने कहा, “हमने हाल के समय में शीर्ष टीमों के खिलाफ अच्छी प्रतिस्पर्धा की है और इसलिए हमें विश्वास है कि हम अगले साल टोक्यो में इतिहास बना सकते हैं। यह हमारा अंतिम लक्ष्य है कि हम पदक जीतें।” अपने करियर की सबसे बड़ी प्रेरणा के बारे में पूछे जाने पर, गोयल को यह कहने में कोई संकोच नहीं था कि भारत के पूर्व कप्तान प्रीतम रानी सिवाच का उनके करियर पर बहुत प्रभाव है।
उन्होंने कहा,”जब मैं पाँचवीं कक्षा में थी, तब मैं स्थानीय अखबार में प्रीतम दीदी की तस्वीरें देखती थी और मैं स्थानीय मैदान में उनका मैच देखने जाती थी। एक दिन उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं हर दिन मैदान में क्यों जाती हूँ तब मैंने उनसे कहा कि मैं खेलना चाहती हूं। चूंकि मेरे माता-पिता मेरे लिए हॉकी उपकरण नहीं खरीद सकते थे, प्रीतम दीदी ने मुझे उपकरण प्रदान किए और मुझे अपने खेल में कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित किया। बिना उनके समर्थन की आज मैं जहां हूं, वहां तक कभी नहीं पहुंच पाती।” (एजेंसी, हि.स.)
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