नई दिल्ली। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (World Wide Fund for Nature) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 1970 से 2020 तक यानी महज 50 सालों में निगरानी में रखे गए वन्यजीव आबादी (Wildlife Populations) में करीब 73 प्रतिशत की गिरावट (Decline) आई है। इस नुकसान की वजह वनों की कटाई, मानव शोषण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है।
‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’ 2024 में भारत में गिद्धों की तीन प्रजातियों में तेज गिरावट का भी पता चला, जिसमें 1992 और 2022 के बीच आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट आई। सफेद पूंछ वाले गिद्धों की आबादी में 67 प्रतिशत, भारतीय गिद्धों की संख्या में 48 प्रतिशत और पतली चोंच वाले गिद्धों की संख्या में 89 प्रतिशत की गिरावट आई है। वैश्विक स्तर पर, सबसे अधिक गिरावट मीठे जल वाले पारिस्थितिकी तंत्रों (85 प्रतिशत) में दर्ज की गई है। इसके बाद स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (69 प्रतिशत) और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (56 प्रतिशत) हैं।
भारत में कुछ वन्यजीव आबादी स्थिर हो गई है और उसमें सुधार हुआ है। इसका मुख्य कारण सक्रिय सरकारी पहल, प्रभावी आवास प्रबंधन, मजबूत वैज्ञानिक निगरानी और सामुदायिक सहभागिता के साथ-साथ सार्वजनिक समर्थन है। दुनिया भर में बाघों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है। अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2022 में कम से कम 3,682 बाघ दर्ज किए गए, जो वर्ष 2018 में अनुमानित 2,967 से अधिक थे। इससे साफ है कि बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है।
भारत में पहले हिम तेंदुआ जनसंख्या आकलन में अनुमान लगाया गया था कि उनके 70 प्रतिशत क्षेत्र में 718 हिम तेंदुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पारिस्थितिकी क्षरण, जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर स्थानीय और क्षेत्रीय टिपिंग बिंदुओं तक पहुंचने की संभावना को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, चेन्नई में तेजी से बढ़ते शहरी विस्तार के कारण इसके आर्द्रभूमि क्षेत्र में 85 प्रतिशत की कमी आई है। इन आर्द्रभूमियों द्वारा प्रदान की जाने वाली महत्वपूर्ण सेवाएं, जैसे जल प्रतिधारण, भूजल पुनर्भरण और बाढ़ नियंत्रण में भारी कमी आई है। इससे दक्षिणी शहर के लोग सूखे और बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए थे। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति और खराब हो गई है।
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