नई दिल्ली: कोरोना वायरस (corona virus) ने पूरी दुनिया को झंकझोर कर रख दिया है. लेकिन मौसम वैज्ञानिकों (weather scientists) की मानें तो इससे भी बड़ा खतरा Global Warming और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) बन गया है. पृथ्वी के तापमान में हर साल 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़त हो रही है. शिकागो विश्वविद्यालय (Chicago University) की 2021 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार हवा में फैल रहे प्रदूषण की वजह से तकरीबन हर व्यक्ति अपने जीवन के 2.2 साल खो रहा है.
वहीं दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाला देश भारत के बड़े शहरों में भी वायु प्रदूषण (air pollution) के कारण कम उम्र में लोगों की मृत्यु के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ICMR की दिसंबर 2020 में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारत में 1.7 मिलियन मौतें वायु प्रदूषण की वजह से हुईं. यह देश में हुई मौतों की संख्या का 18 प्रतिशत था. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पिछले दो दशकों में, भारत में (Fine Particulate Matter) PM2.5 के कारण होने वाली मौतों में 2.5 गुना की बढ़ोतरी हुई है. साल 1990 में जहां 2,79,500 मौतें हुई थी, जो साल 2019 तक बढ़कर 9,79,900 तक पहुंच गई है.
अगर ग्रीन थिंक टैंक Centre for Science and Environment (CSE) के आकड़ों की मानें तो भारत में 1.67 मिलियन मौतें प्रदूषण और प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के कारण हुई हैं. वहीं वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम(WEF) की रिपोर्ट के मुताबिक चीन में प्रदूषण के कारण हर साल 1 मिलियन ज्यादा मौतें हो रही हैं.
हाल ही में आई WHO की रिपोर्ट के अनुसार लगभग दुनिया की (99%) आबादी वायु प्रदूषण का खतरा झेल रही है. जिसकी वजह से कम उम्र में ही हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, कैंसर और निमोनिया सहित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. WHO के अनुसार दक्षिण एशिया के शहरों में वायु प्रदूषण के कारण कम आयु में लोगों की मृत्यु का आकंड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक साल में 24 हजार लोग समय से पहले की काल का शिकार बन गए. वहीं भारत के 8 शहरों मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद में ऐसे कुल एक लाख मामले आए हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) की रिसर्च के अनुसार तेजी से बढ़ते दुनिया के TROPICAL CITES में 14 साल में करीब 1,80,000 लोगों की मौत वायु प्रदूषण (Air Pollution) बढ़ने की वजह से हुईं है. इसके अलावा यह भी अनुमान लगाया गया है कि घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से दुनियाभर में हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है. इसी के साथ WHO ने पर्यावरण में हो रहे बदलाव और प्रदूषण के कारण दुनियाभर में 2030 से 2050 के बीच हर साल 2,50,000 और जानों को खोने की आशंका जताई है.
शहर और शहरों में बड़ी संख्या में रहने वाली आबादी ही प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है. एक करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले महानगरों और वहां की बड़ी- बड़ी इमारतों और कंक्रीट से बने मकान और वाहन ही आज दुनिया भर में 75 फीसदी CO2 Emissions के जिम्मेदार हैं.
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