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भ्रम की राजनीति और भारतीय मुसलमान

July 09, 2021

– सुरेश हिंदुस्तानी

भारत में प्रामाणिक बयानों का अपने हिसाब से अर्थ निकालना एक परिपाटी-सी बन गई है। विसंगति यह है कि जो प्रचार किया जाता है, उसका मूल बयान से कोई सरोकार नहीं होता। इसी को भ्रम फैलाने वाली राजनीति कहा जाता है। अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत के हिन्दू और मुसलमानों का डीएनए एक है।

यह प्रामाणिक रूप से धरातलीय सच है। भारत के मुसलमान अगर अपने परिवार का अतीत खोजेंगे तो उन्हें भागवत जी के बयान में सत्यता दिखाई देगी। मीडिया तंत्र इस बात पर मंथन करे कि जब भारत में मुगलों का आक्रमण नहीं हुआ था, उस समय भारत में कोई मुसलमान था ही नहीं। अत: यह स्वाभाविक है कि आज हमारे देश में जो मुसलमान हैं, उनके पूर्वज हिन्दू ही थे। फारुक अब्दुल्ला कश्मीरी ब्राह्मण परिवार के वंशज हैं। इसी प्रकार अन्य मुसलमान की विरासत हिन्दू अवधारणा वाली ही है। जहां तक हिन्दू अवधारणा का सवाल है तो यही कहना समुचित होगा कि हिन्दू दर्शन किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करता। इसी कारण कई मुसलमान घर वापसी कर रहे हैं।

यह बात सही है कि वर्तमान में पाकिस्तान के नाम से पहचाने वाला देश पूर्व में भारत का ही हिस्सा रहा था। इसलिए उसका इतिहास भारत के बिना अधूरा है और इसी कारण भारत के मुसलमानों का इतिहास हिन्दू समाज या भारतीय समाज से अलग हो ही नहीं सकता। सच्चाई को स्वीकार करने का साहस होना चाहिए। सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान का कई बुद्धिजीवी मुसलमानों ने समर्थन भी किया है, लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति के चलते मुसलमान मुख्यधारा से कट रहा है। उसे हिन्दू के नाम से डराया जा रहा है। जबकि वास्तविकता यही है कि मुसलमानों के त्यौहारों में हिन्दू समाज भी सहयोग करता रहा है। इसके विपरीत तुष्टिकरण की राजनीति के बहकावे में आकर मुसलमान भारत के मूल त्यौहारों से अलग होता जा रहा है।

इस प्रकार की राजनीति देश की एकता के लिए बड़ा खतरा है। मंथन इस बात का भी करना होगा कि दुनियाभर में जितने भी मुसलमान निवास करते हैं, उनमें सबसे ज्यादा सुरक्षित भारत में ही हैं। आज कुछ मुसलमान संदेह की दृष्टि से देखे जा रहे हैं, उसके पीछे भी सबसे बड़ा कारण स्वयं मुसलमान ही हैं, जो मुख्यधारा में आना भी चाहते हैं लेकिन राजनीति ऐसा नहीं करने दे रही। उन्हें अपने वोटों की चिंता है।

भारत को स्वतंत्रता मिलने से पूर्व भारतीय समाज को तोड़ने का जो कुचक्र अंग्रेजों ने रचा था, भारत के राजनेताओं ने उसी नीति को आत्मसात करते हुए ऐसी राजनीति की कि आज समाज छिन्न-भिन्न हो गया। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस छिन्न-भिन्न समाज को एक करने का प्रयास कर रहा है तो इन राजनेताओं के पेट में दर्द उठना स्वाभाविक है। जहां तक वर्तमान केन्द्र सरकार की बात है तो उसने मुस्लिम समाज की महिलाओं के दर्द को कम करने का साहस दिखाया है। तीन तलाक का डर दिखाकर मुस्लिम महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई जाती रही थी, अब उससे मुक्ति मिल गई है। यह कदम वास्तव में मुस्लिम समाज को आगे लाना वाला ही है। लेकिन कई लोगों को इस कदम में भी मुस्लिम विरोध दिखाई दिया, जो पूरी तरह से गलत है। यह देश का दुर्भाग्य है कि इने-गिने लोग ऐसे हैं, जो अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की एकता-अखंडता को क्षति पहुँचाने में लगे रहते हैं।

यह ऐतिहासिक सच्चाई है कि विदेशी मुस्लिम बादशाहों ने भारत पर कभी लूटपाट के लिए और कभी अपनी सत्ता स्थापित कर इस्लामी झंडा फहराते हुए भारत की धर्म, संस्कृति, परम्परा को क्रूरता से कुचलने की लगातार कोशिश की। इतिहास को कुरेदकर यह समीक्षा करने की प्रासंगिकता नहीं है कि ये क्रूर हमलावर क्यों सफल हुए, भारत की राजशक्ति इस क्रूरता का प्रतिकार क्यों नहीं कर सकी। इस सबकी तह में जाने से यह पता चलता है कि कही न कहीं भारतीय समाज में अपने देश के प्रति निष्ठा कमजोर थी, लेकिन आज एक बात दिखाई देने लगी है कि भारतीय युवा अपने धर्म के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन कर रहा है और ऐसा करने में उसे गौरव का अहसास भी होता है।

वर्तमान में भारत की करीब बीस प्रतिशत आबादी मुस्लिमों की है। इनके पूर्वज हमलावरों की क्रूरता के शिकार हुए और अपने परिवार की जीवन रक्षा के लिए इन्होंने मजबूरी में इस्लाम कबूल किया। इसलिए इस सच्चाई को कैसे नकारा जा सकता कि इनके पूर्वज हिन्दू थे। इस प्रकार के सम्प्रदाय और उपासना पद्धति का विकास देश की माटी से होता है, इसलिए भारत का इस्लाम, सऊदी अरब का इस्लाम नहीं हो सकता। भारत की सर्वव्यापी संस्कृति के विचार प्रवाह के साथ ही भारत के मुस्लिमों को चलना होगा। जो इस खून के रिश्ते को तोड़कर भारत के मुस्लिमों को देश की माटी से अलग करना चाहते हैं, वे छद्म देशद्रोही हैं, उनकी कोशिशों को असफल करना, हर देशभक्त का दायित्व है।

हालांकि सऊदी अरब और पाकिस्तान की साजिश में शामिल होने से अब भारतीय मुसलमान भी किनारा करने लगे हैं। देश का मुसलमान अब पूरी तरह से विकास की धारा के साथ आना चाहता है, लेकिन हर बार की तरह वह राजनीति का शिकार हो जाता है। मुसलमानों को जितना सम्मान भारत में दिया जाता है, उतना किसी भी गैर इस्लामिक देश में नहीं मिल सकता और न ही मिलने की उम्मीद है। यह सही है कि राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को केवल भय दिखाकर वोट के रूप में प्रयोग किया। वर्तमान में देश का मुसलमान इस सत्य को समझ चुका है और वह भी सबका साथ सबका विकास के भाव को अंगीकार करके अपना विकास चाहता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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