जयपुर: राजस्थान बीजेपी (Rajasthan BJP) में अब विधानसभा चुनाव (assembly elections) के लिए वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) पार्टी (Party) का सीएम का चेहरा नहीं होंगी. अब तक के फैसलों से ये तकरीबन तय माना जा रहा है. हालांकि राजे और उनके समर्थकों की आखिरी उम्मीद चुनाव अभियान समिति (Election campaign committee) पर टिकी है. पार्टी ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिहाज से 3 अहम फैसले किए. पहला बीजेपी राजस्थान में एक नहीं 4 परिवर्तन यात्राएं निकालेगी. यानी तय है कि पार्टी किसी एक नेता की अगुवाई में चुनाव नहीं लड़ने जा रही है. इससे पहले 2003 और 2013 में वसुंधरा राजे की अगुवाई में परिवर्तन यात्रा और 2018 में सुराज संकल्प यात्रा निकाली गई थी. तब इन यात्राओं से साफ था कि राजे ही पार्टी का अगला सीएम का चेहरा हैं.
लेकिन इस दफा ऐसा नहीं हो रहा है. बीजेपी वसुंधरा राजे की अगुवाई में एक यात्रा के बजाय अलग- अलग नेताओं के समूह के 4 यात्राएं निकाल रही है. इसका सीधा संदेश है कि पार्टी का सीएम का कोई एक चेहरा नहीं है. बीजेपी ये कई बार साफ कर चुकी है कि राजस्थान में इस दफा सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़े जाएंगे. पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर ही जनता से समर्थन मांगा जाएगा. लेकिन अब पार्टी के फैसले से अब साफ कर दिया कि वसुंधरा राजे की वापसी की उम्मीद अब काफी कम बची है.
वसुंधरा राजे को नहीं मिली कमेटियों की जिम्मेदारी
चुनाव को लेकर बीजेपी ने 2 कमेटियों का ऐलान किया, लेकिन दोनों ही समिति में से किसी की भी कमान वसुंधरा राजे को नहीं दी गई. पहली चुनाव घोषणा पत्र समिति, जिसे बीजेपी ने प्रदेश संकल्प पत्र समिति नाम दिया. इसकी कमान सौंपी केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल को. इस समिति में किरोड़ी लाल मीणा और घनश्याम तिवाड़ी जैसे दिगग्जों को भी शामिल किया गया. राजे समर्थक राव राजेंद्र सिंह और प्रभुलाल सैनी को भी इस समिति का सदस्य बनाया गया. दूसरी समिति सबसे अहम है. ये है प्रदेश चुनाव प्रबंध समिति. इस समिति की कमान सौंपी गई पूर्व राज्यसभा सासंद नारायण पंचारिया को.
21 सदस्यीय कमेटी में सासंद राज्यवर्धन राठौड़ भी शामिल है. वसुंधरा राजे समर्थक औंकार सिंह लखावत को भी इस समिति का सदस्य बनाया गया. दोनों समितियों में संगठन में काम कर रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं को तरजीह दी गई. अब एक औऱ अहम समिति का गठन किया जाना है वो है चुनाव अभियान समिति का. इस समिति का ऐलान नहीं किया गया है. इससे अभी भी राजे समर्थकों की उम्मीद जिंदा है कि वसुंधरा राजे को क्या चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपी जा सकती है. हालांकि अब तक फैसलों से ये भी आसान नहीं.
वसुंधरा राजे ने की दिल्ली में नेताओं से मुलाकात
इस बीच वसुंधरा राजे ने चुनाव में अपनी अहम भूमिका को लेकर ताकत झौंकी दी है. दिल्ली पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर रही हैं. जयपुर में पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में भी नहीं पहुंची. राजे की पूरी कोशिश है कि भले ही सीएम का चेहरा घोषित न करे, लेकिन चुनाव की कमान किसी भी रूप में उन्हें सौंप दी जाए. राजे की नजर टिकट वितरण वाली कमेटी पर भी है, लेकिन उनकी टीम जिस तरह से अब तक चुनाव की तैयारी में किनारे है, उससे उनके लिए रास्ता दिन ब दिन मुश्किल होते जा रहे है. अब सवाल ये कि क्या वसुंधरा राजे को पार्टी अलाकमान ने किनारे कर दिया है? हालांकि वसुंधरा राजे को सम्मान देने में पार्टी नेतृत्व कमी नहीं रख रहा है. पार्टी की बैठकों, कार्यक्रमोें और रैलियों में उन्हें बुलाया जा रहा है. मंच पर सम्मान भी दिया जा रहा है, लेकिन कमान नहीं.
प्रधानमंत्री की राजस्थान में आयोजित रैलियों में भी वसुंधरा राजे पीएम के साथ मंच पर बैठती है, लेकिन पीएम के सामने जनसभा को संबोधित करने का मौका नहीं दिया जा रहा है. राजे के समर्थक भी टिकट कटने के डर से धीरे-धीरे पार्टी की मुख्यधारा में लौट रहे हैं. पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह से जब ये सवाल पूछा गया कि क्या वसुंधरा राजे की चुनाव में कोई भूमिका रहेगी? उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उनका पूरा सम्मान है. चुनाव में उनकी भी भूमिका होगी. राजस्थान के चुनाव प्रभारी प्रहलाद जोशी ने भी कहा कि वसुंधरा राजे पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं. राजस्थान के चुनाव में उनकी भूमिका होगी, लेकिन भूमिका का क्या स्वरूप होगा, क्या कोई जिम्मेदारी दी जाएगी. इस पर अरुण सिंह से लेकर प्रहलाद जोशी मौन हैं.
कैसे आई वसुंधरा राजे और आलाकमान के बीच दूरी
दरअसल, वसुंधरा राजे और बीजेपी आलाकमान के बीच संबंध तब बिगड़े जब 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी आलाकमान केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाना चाहता था, लेकिन वसुंधरा राजे के विरोध के चलते फैसला पलटना पड़ा. 2020 में जब सचिन पायलट की बगावत की वजह से अशोक गहलोत सरकार संकट में फंसी, तब राजे की भूमिका को लेकर भी हाईकमान की नाराजगी रही. उनके समर्थक कैलाश मेघवाल तो खुलैतौर पर गहलोत सरकार को गिराने के खिलाफत कर चुके थे. तब से बीजेपी ने राजस्थान में वसुंधरा राजे पर निर्भरता कम कर पार्टी में नए चेहेरों की तलाश शुरू कर दी थी.
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