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    जिंदगी का राजनीतिकरण, प्रशासन बंधक और व्यवस्थाएं नेताओं के हाथ

  • April 28, 2021


    सरकारी अस्पतालों में दबाए इंजेक्शन, एक भी निजी अस्पताल के पास रेमडेसिविर नहीं, हर अस्पताल थमा रहा है पर्चियां
    इन्दौर।  पिछले एक पखवाड़े से जूझते, मरते और हाथों में जिंदा लाशें लिए दर-दर भटकते लोगों की परिस्थितियों से निपटने में कुछ हद तक सक्षम प्रशासन (administration) को नेताओं (leaders) ने पीछे धकेल दिया है और सारी व्यवस्थाएं स्वयं अपने हाथों में लेते हुए ऑक्सीजन से लेकर दवा वितरण तक के कामों में हस्तक्षेप कर आम लोगों की मुसीबतों को बढ़ा दिया है। आलम यह है कि सरकारी अस्पतालों (government hospitals) में रेमडेसिविर (Remedisvir) जैसे इंजेक्शन ( Injection) के साथ ही अन्य दवाओं की जहां जमाखोरी की जा रही है, वहीं शहर के एक भी निजी अस्पताल में रेमडेसिविर (Remedisvir) की खुराक नहीं है। अस्पतालों द्वारा मरीजों के परिजनों को प्रिस्क्रिप्शन की पर्चियां थमाई जा रही है और खुद व्यवस्था के लिए धकेला जा रहा है।
    मौतों का तूफान उठते ही जहां भाजपा (BJP) के नेताओं (leaders)  सहित संघ के पदाधिकारियों ने सरकारी मशीनरी पर कब्जा कर लिया है, वहीं अपने-अपनों को दे की नीति के तहत सरकारी अस्पतालों (government hospitals) में रेमडेसिविर (Remedisvir) का स्टॉक जमा कर लिया है। प्रशासनिक अधिकारी भी अस्पतालों में भर्ती से लेकर नेताओं के निर्देश पर इंजेक्शन की उपलब्धता में जुटे हैं। नेताओं का आलम यह है कि वो भी अस्पतालों की पर्चियों की जरिए प्रशासन से इंजेक्शन कबाड़ कर जमाखोरी में लगे है। कुल मिलाकर वितरण की असमानता के चलते पूरे शहर में हाहाकार मचा हुआ है।


    प्रमाण : हर निजी अस्पताल थमा रहा है पर्ची, फिर स्टॉक किसे दिया
    इन्दौर में एक भी ऐसा निजी अस्पताल नहीं है, जो अपने स्टॉक से मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन (Remedisvir Injection)  या अन्य जीवनरक्षक दवाई उपलब्ध करा रहा हो, जबकि प्रशासन द्वारा दवा किया जा रहा है कि सरकारी अस्पतालों के साथ ही निजी अस्पतालों को भी रेमडेसिविर (Remedisvir) उपलब्ध कराए जा रहे हैं। यदि ऐसा है तो प्रशासन द्वारा निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों से बाहर से इंजेक्शन मंगाए जाने पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही हे।


    केवल बेड बढ़ा रहे हैं… न साधन है न डॉक्टर…
    नेताओं (leaders) का पूरा जोर केवल अस्पतालों में बेड बढ़ाने को लेकर है। यहां तक कि बंद कमरों को अस्थायी अस्पताल की शक्ल देकर पलंग धरने और संख्या बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। जिन अस्पतालों में बेड बढ़ाए जा रहे हैं वहां न तो साधन है और न डॉक्टर। केवल मरीजों को भर्ती कराने, सुलाने और उनके भाग्य पर छोड़ देने की विडम्बना से गुजरते शहर में कुछ भी करने की स्थिति नजर नहीं आ रही है। कल भी भाजपा (BJP) और संघ के नेताओं ने गीता भवन अस्पताल जाकर वहां अस्पताल को 100 बिस्तरों में परिवर्तित करने की कोशिश की, लेकिन यहां न तो कोविड के उपचार की कोई व्यवस्था है और न ही साधन के साथ डॉक्टर या नर्सों की व्यवस्था।

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