नई दिल्ली (New Delhi)। बिहार (Bihar) में चल रहे राजनीतिक उठापटक (Political turmoil) की कहानी के बीच सबकी निगाहें नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के अगले कदम पर है. मीडिया रिपोर्ट और बीते 24 घंटे के नीतीश के राजनीति कदम से स्पष्ट लगता है कि वह एक बार फिर पलटी मारने की तैयारी में हैं. वह पाला बदलकर (changing sides) फिर भाजपा (BJP) के साथ जा सकते हैं. लेकिन, हम आपके साथ इस एंगल से बिहार की राजनीति पर चर्चा नहीं कर रहे हैं. हमारा एंगल यह है कि हर बार अपनी चाल में सफल साबित होने वाले नीतीश के लिए अबकी बार की यह ‘चालाकी’ कहीं भारी न पड़ा जाए।
दरअलस, बिहार की मौजूदा राजनीतिक परिस्थित और गणित बिल्कुल बदला हुआ है. इससे पहले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने जितनी बार पाले बदले हैं उसके कुछ तात्कालिक कारण रहे हैं. फिर वह सहयोगी दल के साथ कामकाज में सामन्जस्य नहीं बैठ पाने की बात कहकर अलग हुए. लेकिन, इस बार ऐसा नहीं है. दरअसल, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद इस समय बहुत मजबूत स्थिति में है. दूसरी तरफ विधानसभा अध्यक्ष भी राजद के वरिष्ठ नेता अवध बिहारी चौधरी हैं. ऐसे में मामूली चूक से नीतीश की राजनीतिक पारी पर ग्रहण लग सकता है।
विधानसभा की तस्वीर
नीतीश की राजनीतिक पारी पर चर्चा से पहले हम आपके साथ बिहार विधानसभा की तस्वीर पेश कर रहे हैं. राज्य की 243 सदस्यीय विधानसभी में स्पष्ट बहुमत के लिए किसी भी गठबंधन को 122 का आंकड़ा चाहिए. इस वक्त विधानसभा में राजद सबसे बड़ी पार्टी है. उसके पास 79 सीटें हैं. नीतीश कुमार की जदयू को अलग कर दिया जाए तो भी महागठबंधन के पास 114 सीटें बचेंगी. कांग्रेस की 19, भाकपा माले की 12, भाकपा की दो और माकपा के पास 1 सीट हैं. उसके साथ एक निर्दलीय विधायक भी हैं. इन सभी का योग 114 होता है. राजद को राज्य में सरकार बनाने के लिए केवल आठ अन्य विधायकों के समर्थन की जरूरत है।
भाजपा के 78 सीटेंराज्य विधानसभा में भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. उसके पास 78 विधायक है. आज की तारीख में उसके साथ हम के चार विधायक हैं. नीतीश की पार्टी जदयू के पास 45 सीटें हैं. वैसे तो भाजपा और जदयू मिलकर आसानी से स्पष्ट बहुमत को पार कर लेंगे. इसके अलावा असदद्दुदीन ओवैसी की पार्टी के एक विधायक हैं. यह विधायक किसी भी गठबंधन के साथ नहीं हैं।
जीतनराम की भूमिका अहमराज्य में चार विधायकों वाली हम पार्टी के जीतनराम मांझी की भूमिका काफी अहम हो सकती है. उन्हें राजद कोई बड़ा ऑफर दे सकती है. ऐसे में उनके पाला बदलने से कोई इनकार नहीं कर सकता है. वह लालू और नीतीश के पुराने करीबी रहे हैं, लेकिन बीते कुछ सालों से नीतीश कुमार के साथ उनकी तल्खी बढ़ गई है. ऐसे में वह नीतीश और भाजपा के साथ एनडीए में सहज भी नहीं रह सकते।
जदयू के टूटने की संभावना से इनकार नहींराजनीतिक पंडित यह बार-बार कह रहे हैं कि नीतीश कुमार अपनी सरकार के साथ-साथ अपनी पार्टी को बचाने में जुटे हैं. उनकी पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव से पहले दो फाड़ है. उसका एक मजबूत धड़ा भाजपा के साथ चुनाव लड़ना चाहता है तो दूसरा धड़ा राजद के साथ गठबंधन निभाने की बात कर रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. उसने 17 में 16 सीटों पर जीत हासिल की थी. जदयू के 16 सांसद राजद के खिलाफ चुनाव लड़कर जीते थे. बिहार की राजनीति के जानकारों का कहना है कि इनमें से अधिकतर सांसद एक बार फिर भाजपा के साथ चुनाव लड़ना चाहते हैं।
क्या टूट जाएंगे जदयू के विधायकराजनीति में कभी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस समय नीतीश के सामने अपनी पार्टी को बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है. अगर राजद, जदजू के कुछ विधायकों को अपने पाले में लाने में कामयाब हो जाती है तो बिहार की राजनीति में नीतीश-लालू के दौर का भी अंत हो जाएगा. नियमानुसार जदयू को तोड़ने के लिए 30 विधायकों की जरूरत है. जदयू के भीतर इतनी बड़ी संख्या में विधायकों का अलग गुट बनाना मुश्किल है. ऐसे में अगर लालू-तेजस्वी जदयू के कुछ विधायकों का इस्तीफा दिलवा दें तो स्थिति बदल सकती है. देश की राजनीति में हाल के वर्षों में हमने ऐसी घटनाएं देखी है. मध्य प्रदेश में पिछली बार बनी शिवराज सिंह की सरकार इसका उदाहरण है. बीते दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में भी ऐसा ही उठापटक देखने को मिला था।
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