नई दिल्ली (New Delhi)। बिहार (Bihar) में जातीय गणना (Caste census) के आंकड़े जारी होने के बाद पूरे देश में राजनीतिक हलचल (Political turmoil increased) बढ़ गई है। 2024 के आम चुनाव (2024 General Elections) से पहले नीतीश सरकार (Nitish Government) के इस दाव का दोहरा असर होगा। इससे न सिर्फ बिहार, बल्कि केंद्र की राजनीति भी अछूती नहीं रह सकेगी। बिहार के समाज में भी एक किस्म की टकराहट बढ़ेगी। बिहार की राजनीति में बहुसंख्यकवाद मुखर हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो उसका काउंटर प्रोडक्शन (प्रतिरोध प्रतिक्रिया) हो सकता है। काउंटर प्रोडक्शन के रूप में बहुसंख्यकवाद के भय से और जातियां इकट्ठी हो जाएंगी, जो सामाजिक ताने-बाने के लिए बहुत अच्छी बात नहीं।
इसका तीसरा असर केंद्रीय राजनीति में देखने को मिलेगा। केंद्र की राजनीति में ओबीसी वोट (OBC votes) लेने के लिए जेडीयू की भाजपा के साथ टकराहट शुरू होगी। लेकिन, हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भाजपा भी अब ब्राह्मण-बनिया पार्टी नहीं रह गई है। वह ओबीसी नेतृत्व वाली पार्टी हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ओबीसी हैं। उनके कई मंत्री ओबीसी हैं। उस आधार पर जदयू के लिए भाजपा को हराना बहुत मुश्किल होगा।
पीएम मोदी के हर राज्य में राजनीतिक रूप से कम प्रभावी ओबीसी समुदाय का एक गठजोड़ बनाया है। सामाजिक न्याय की राजनीति को विकास की राजनीति से जोड़ा है। उन्होंने वृहतर परिभाषा गढ़ी है। इस हिसाब से भाजपा को हराना मुश्किल होगा। हालांकि, इसमें राजनीतिक शक्ति है। इसका लाभ राजनीतिक दल उठाना चाहेंगे। देखते हैं कौन कितना उठा पाता है।
यूपी के प्रयागराज स्थित गोविंद बल्लभ पंत सामाजित विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. बद्री नारायण का कहना है कि इस प्रकार की गणना आधारित राजनीतिक लामबंदी से एकीकरण का भ्रम पैदा होता है, लेकिन वास्तव में एकीकरण होता नहीं है। अंग्रेजी राज में भारत में कई जनगणना हुई। इससे वर्गीकरण तो हुए, लेकिन कई बार आपसी टकराहट और तनाव के हालात पैदा हुए। एक स्तर पर खड़े लोग प्रभुत्व की लड़ाई में आमने-सामने आ गए।
अब जिन जातियों को उनकी संख्या बता दी गई है, उनकी महत्वाकांक्षा बढ़ जाएगी। नंबर सबको प्रभावित करता है। चार प्रतिशत वाले कहेंगे कि वो तीन फीसदी वाले से बड़े हैं। इस प्रकार समाज में विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। कई स्तर पर विभाजनकारी राजनीति यहां से शुरू हो सकती है।
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