नलखेड़ा। प्रदेश में पंचायत चुनाव का बिगुल बज चुका है। शीघ्र ही निकाय चुनाव का भी शंखनाद होने वाला है। इस बार नगर परिषद व नगरपालिका अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित पार्षद करेंगे। ऐसे में राजनैतिक दलों के लिए वार्ड पार्षद के लिए दावेदारों की भीड़ में टिकाऊ उम्मीदवार का चयन भी एक बड़ी माथा पच्ची का काम होगा। इतिहास गवाह है कि स्थानीय नगर परिषद में पार्षदों द्वारा अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष के चुनाव में क्रॉस वोटिंग की गई है। ऐसे में इस बार भी यह आशंका बनी हुई रहेगी।
सरकार द्वारा अध्यादेश के माध्यम से नगरपालिका व नगर परिषद के अध्यक्षो का चुनाव पार्षदों द्वारा करवाये जाने का निर्णय लिया है। ऐसे में सभी राजनैतिक दलों के पार्षद पदों के उम्मीदवार की विश्वसनीयता व पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा महत्वपूर्ण हो गई है। किसी भी दल के पास परिषद में बहुमत का जादुई आंकड़ा हांसिल करना तो आसान रहेगा लेकिन इस आंकड़े को अध्यक्ष के चुनाव तक बनाये रखना टेड़ी खीर साबित होगा। उक्त आशंका मात्र दिमागी उपज न होकर इतिहास से जुड़ी हुई है। लगभग 27 वर्षो पूर्व जब निकाय के अध्यक्ष का चुनाव पार्षद ही करते थे तब भी एवं बाद में निकाय के उपाध्यक्ष पद के चुनाव में गाहे-बगाहे हुई क्रॉस वोटिंग राजनैतिक दलों के लिए किसी सिरदर्द से कम नहीं है। राजनैतिक दलों के साथ ही अध्यक्ष पद के दावेदार भी क्रॉस वोटिंग के जहरीले डंक से बच नही पाएंगे क्योकि पार्षद जिताना जितना आसान होगा उनकी खरीद फरोख्त रोकना उतना ही कठिन कार्य होगा। गौरतलब है कि निकाय चुनाव दलीय आधार पर तो होते है लेकिन यहाँ दल बदल कानून लागू नही होने से अक्सर चांदी की खनक अथवा राजनैतिक दबाव भी विश्वसनीयता व निष्ठा पर प्रहार करते रहते है।
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