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    18 साल पुरानी है नारायण राणे और उद्धव ठाकरे के बीच सियासी दुश्मनी, जानिए पूरी कहानी

  • August 25, 2021

    मुंबई । भारत सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री नारायण राणे (Narayan Rane) को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) पर विवादास्पद टिप्पणी करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि बाद में फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट बाबासाहेब शेख पाटिल की कोर्ट ने जमानत दे दी. ये इस तरह का पहला मामला है, जब किसी मुख्यमंत्री ने एक बयान को लेकर किसी केंद्रीय मंत्री की गिरफ्तारी कराई गई.

    नारायण राणे किस बयान की वजह से हुए गिरफ्तार
    केंद्रीय मंत्री नारायण राणे (Narayan Rane) ने कहा था, ‘महाराष्ट्र में कोरोना से 1 लाख 57 हजार लोग मर गए इसकी वजह से (उद्धव ठाकरे) वैक्सीन नहीं, ये नहीं, डॉक्टर नही, स्टाफ नहीं, राज्य की हालत खराब है, महाराष्ट्र के स्वाथ्य विभाग की स्थिति गंभीर है. इसे बोलने का अधिकार हैं, बगल मे एक सेक्रेटरी रखो और उससे पूछो, उस दिन नहीं पूछ रहा था कि कितने साल हो गए देश को आजाद हुए. अरे हिरक महोत्सव है क्या, मैं होता तो कान के नीचे बजाता, ये क्या देश का स्वतंत्रता दिवस है और इसे मालूम नहीं.


    3 अलग-अलग जगहों पर एफआईआर दर्ज
    नारायण राणे (Narayan Rane) के इस बयान को लेकर महाराष्ट्र में तीन अलग अलग जगहों पर FIR दर्ज हुई है. जब उन्हें रत्नागिरी जिले से गिरफ्तार किया गया तो वो खाना खा रहे थे, लेकिन पुलिस ने कार्रवाई में जरा भी देर नहीं की. नारायण राणे भारत सरकार में मंत्री होने के साथ महाराष्ट्र के भी बड़े नेता हैं.

    बाल ठाकरे के करीबी रहे हैं नारायण राणे
    नारायण राणे (Narayan Rane) 1999 में बनी शिवसेना बीजेपी की गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री थे और उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे (Bal Thackeray) के करीबी थे. नारायण राणे का राजनीतिक सफर शिवसेना के साथ ही शुरू हुआ था, लेकिन आज उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के खिलाफ बोलने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उद्धव ठाकरे और नारायण राणे के बीच ये पहला टकराव नहीं है.

    18 साल पहले शुरू हुई थी राजनीतिक दुश्मनी
    साल 2003 में जब बाल ठाकरे ने उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था तो नारायण राणे (Narayan Rane) ने इस फैसले का विरोध किया था. यहीं से नारायण राणे और उद्धव ठाकरे के बीच राजनीतिक दुश्मनी शुरू हुई. साल 2005 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए बाल ठाकरे ने उन्हें शिवसेना से निकाल दिया और फिर वो कांग्रेस में शामिल हो गए और बाद में बीजेपी से जुड़ गए, लेकिन उद्धव ठाकरे के साथ उनका ये टकराव आज तक जारी है.

    शिवसेना कार्यकर्ताओं के खिलाफ क्यों नहीं हुआ एक्शन
    हालांकि, हमें लगता है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ बोलने पर एक केंद्रीय मंत्री को गिरफ्तार करना गलत परंपरा की शुरुआत है. इस समय गैर बीजेपी शासित राज्यों में खास कर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में राज्यपालों पर सबसे ज्यादा टिप्पणी की जाती है. पिछले दिनों शिवशेना ने अपने मुखपत्र सामना में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) को राजनीतिक एजेंट तक बता दिया था, लेकिन तब महाराष्ट्र में कोई FIR दर्ज नहीं हुई. जबकि भारतीय संविधान के मुताबिक राज्यपाल का संवैधानिक दर्जा मुख्यमंत्री से भी बड़ा होता है, लेकिन केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के मामले में FIR से लेकर गिरफ्तारी तक के काम में ज्यादा समय नहीं लगा.

    नारायण राणे के खिलाफ शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने नासिक में बीजेपी दफ्तर पर पत्थरबाजी की. नारायण राणे के खिलाफ अपशब्दों को इस्तेमाल करते हुए कुछ लोगों ने पुणे के बीजेपी दफ्तर में मुर्गियों को छोड़ दिया. शिवसेना के इन कार्यकर्ताओं ने ये भी कहा कि अगर नारायण राणे उन्हें कहीं मिल गए तो वो उनको बीच सड़क पर पीटेंगे. सोचिए.. शिवसेना के ये कार्यकर्ता एक केंद्रीय मंत्री के लिए ऐसी बातें कहते हैं, लेकिन उन पर कोई FIR दर्ज नहीं होती.

    उद्धव ठाकरे के खिलाफ बयान देने पर एक्शन
    महाराष्ट्र की उद्धव सरकार की असहनशीलता को आप कुछ उदाहरणों से भी समझ सकते हैं. इसी साल फरवरी में महाराष्ट्र के सोलापुर में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने एक बीजेपी कार्यकर्ता के चेहरे पर स्याही पोत कर और उसे साड़ी पहना कर शहर में उसका जुलूस निकाला था. बीजेपी नेता की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बयान दिया था. पिछले साल अक्टूबर में सुनैना होले नाम की एक महिला को उद्धव ठाकरे के खिलाफ बोलने पर FIR दर्ज करके उसे गिरफ्तर कर लिया गया था. बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस FIR को खारिज कर दिया था.

    पिछले साल सुशांत सिंह राजपूत के मामले में उद्धव ठाकरे के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखने और बयान देने वाले लोगों के खिलाफ 10 FIR दर्ज हुई थीं. कोरोना की पहली लहर के दौरान मुंबई पुलिस ने एक विवादास्पद आदेश जारी करते हुए कहा था कि जो व्यक्ति सरकार द्वारा लिए गए फैसलों के खिलाफ असंतोष फैलाएगा तो ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी. ये वो उदाहरण हैं, जिनसे महाराष्ट्र सरकार की असहनशीलता के बारे में पता चलता है और नारायण राणे की गिरफ्तारी भी इसी में से एक है.

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