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राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का आंदोलन

October 07, 2020

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

विपक्षी दल प्रायः चुनावी वर्ष में किसी कानून को निरस्त करने का वादा करते हैं। चुनावी समय में संबंधित कानून के लाभ-हानि व उसपर आमजन की प्रतिक्रिया सामने आ जाती है। संबंधित कानून से यदि लोगों की नाराजगी है तो उसे निरस्त करने का वायदा लाभ दे जाता है। राहुल गांधी ने भी वादा किया है कि जिस दिन कांग्रेस सत्ता में आई, उसी दिन तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर दिया जाएगा। इन कानूनों को फाड़कर कूड़ेदान में फेंका जाएगा, जिससे देश का किसान बच सके। यह विचार उन्होंने खेती बचाओ, किसान बचाओ ट्रैक्टर यात्रा शुरू करने से पहले व्यक्त किये।

राहुल गांधी को अपना यह वादा पूरा करने के लिए न्यूनतम 2024 तक तो इंतजार करना ही होगा। उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है। इस बीच यदि नए कानून से लाभ दिखने लगे तब भी क्या राहुल गांधी इसे हटाकर दम लेंगे। क्योंकि वे किसी बेहतर विकल्प की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि नए कानून पर हमला कर रहे हैं। पुराने कानून की अच्छाईयों व स्वामीनाथन रिपोर्ट पर मौन हैं।

किसानों के लिए स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करने की जिम्मेदारी तत्कालीन यूपीए सरकार की थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। रिपोर्ट में न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की जो सिफारिश की गई थी, कांग्रेस उससे बचती रही। मोदी सरकार ने स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिश पर अमल किया। किसानों को उसका लाभ दिया। जबकि नरेंद्र मोदी के पिछले कार्यकाल में कांग्रेस सवाल करती थी कि स्वामीनाथन रिपोर्ट कब लागू होगी। सरकार का साफ कहना है कि न तो कृषि मंडियां समाप्त होंगी, न न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना को हटाया जाएगा। ऐसे में किसानों के नाम पर आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है।

वैसे यह दावा कोई नहीं कर सकता कि इस आंदोलन में कितने किसान और कितने बिचौलिए व राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता हैं। ट्रक पर लादकर ट्रैक्टर लाना, उसे मुख्य मार्ग पर आग लगाना, यह कार्य किसान कभी नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक कहा कि किसान व हमारा समाज जिन यंत्रों की विधिवत पूजा करता है, उसे जलाया जा रहा है। अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों के नाम पर जमकर राजनीति चल रही है। इस आंदोलन के नेतृत्व को देखकर ही बहुत कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में राहुल-प्रियंका सक्रिय हुए तो अन्य विपक्षी भी सामने आ गए।

पंजाब का आंदोलन सर्वाधिक दिलचस्प है। यहां मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह किसान आंदोलन की कमान अपने पास रखना चाहते थे। यह देखकर अकाली दल बेचैन हो गया। सिमरनजीत बादल केंद्रीय मंत्री पद छोड़कर आंदोलन में कूद पड़ीं। अकाली दल किसी भी दशा में अमरिंदर सिंह को वॉकओवर नहीं देना चाहता। यह राजनीति यहीं तक सीमित नहीं है। अमरिंदर की राह रोकने के लिए राहुल गांधी स्वयं नवजोत सिद्धू को लेकर आ गए। राहुल गांधी के प्रयासों से नवजोत सिंह सिद्धू डेढ़ साल बाद कांग्रेस के मंच पर नजर आए। वह कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस द्वारा निकाली गई ट्रैक्टर रैली में शामिल हुए। राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली गई रैली के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने उस ट्रैक्टर को चलाया जिसपर कैप्टन अमरिंदर सिंह और राहुल गांधी सवार थे।

कैप्टन व सिद्धू में छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। बताया जाता है कि राहुल ने इस मिशन पर हरीश रावत को लगाया था। हरीश रावत ने सिद्धू को कांग्रेस का भविष्य करार दिया था। इस बयान से कांग्रेस की आंतरिक राजनीति तेज हो गई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह खेमा इस बयान से नाराज है। डेढ़ साल पहले नवजोत सिंह सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग वापस लेकर उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया था। इसके विरोध में नवजोत सिद्धू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद नवजोत सिंह सिद्धू न तो किसी भी विधानसभा सत्र में शामिल हुए और न ही उन्होंने कांग्रेस के किसी कार्यक्रम में भाग लिया।

दूसरी ओर भाजपा का कहना है कि किसानों के लिए मोदी सरकार ने जितने काम किए हैं उतने किसी दूसरी सरकार ने नहीं किए। किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में अनेक कदम उठाए हैं। स्वामीनाथन आयोग की जिन सिफारिशों को कांग्रेस सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था, मोदी सरकार ने उन सिफारिशों को स्वीकार किया है। किसानों के लिए उनकी फसल का उत्पादन लागत का न्यूनतम डेढ़ गुना एमएसपी निर्धारित करने की घोषणा की। इसके बाद प्रति वर्ष रवी एवं खरीफ फसलों की एमएसपी में लगातार वृद्धि की जा रही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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