इंदौर। उनका कोई दोष नहीं, फिर भी पुलिस (Police) ने आंसू गैस (tear gas) छोड़ दिए। आंखों में जलन (burning) मची तो गाड़ी को सडक़ के किनारे खड़ी कर आंसू (tears) पोंछे। फिर भी आंसू (tears) नहीं रूके तो पुलिस को कोसा। ये परेशानी हुई पुलिस की बलवा परेड से, जो पिछले चार दिनों से पुलिस लाइन (police lines) में चल रही है।
दरअसल पुलिस त्योहारों पर कानून व्यवस्था को लेकर तैयारियां करती हैं और बलवा परेड भी उसी का एक हिस्सा है। अगर असामाजिक तत्व (anti-social elements) या उपद्रवी त्योहारों (riotous festivals) पर हुड़दंग मचाए तो उन्हें कैसे नियंत्रित किया जाए?, लेकिन रिहर्सल (rehearsals) के चक्कर में पुलिस ने सडक़ से गुजर रहे निरपराधों पर ही बलवा परेड कर डाली। शहर के बीचोंबीच डीआरपी लाइन पर चल रही परेड में जब नकली दंगाइयों को नियंत्रण में रखने के लिए आंसू गैस के गोले दागे गए तो उसका असर सडक़ पर चल रहे वाहन चालकों (drivers) पर भी हुआ और उनकी आंखों में जलन होने लगी। अधिकांश लोग तो इसका कारण समझ नहीं पाए और सडक़ के किनारे वाहन खड़े कर आंसू पोंछने लगे। आंसू गैस का असर लंबे समय तक रहा और आसपास के लोग भी परेशान होते रहे। पिछले चार दिनों से यही हाल है, लेकिन पुलिस के अधिकारियों ने आम नागरिकों की परेशानी को नहीं समझा। हालांकि इस तरह की बलवा परेड शहर के बाहर होना चाहिए, लेकिन शहर के बढऩे के कारण डीआरपी लाइन (DRP lines) शहर के बीचोंबीच आ गई है, इसलिए यहां ही पुलिस हर तरह की रिहर्सल करती है, जबकि इस प्रकार की रिहर्सल शहर के बाहर होना चाहिए।
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