आपदा को अवसर बनाने वाले सिटी बस वालों के आगे सब बेबस…
इंदौर, रोहित पचौरिया।
साहब! हम घूमने नहीं, जरूरी काम से निकले हैं… आप हमारा पास देख लो…सर, हम दवाई की डिलीवरी करने वाले हैं, आप कार्ड देख लें… हमें तो छूट दी गई है… इस तरह की तमाम गुहारें और दलीलें कल पुलिस वालों के समक्ष लोगों द्वारा सुबह 7 बजे से ही कई प्रमुख चौराहों पर दी जा रही थीं। आलम यह था कि पुलिस न आस देख रही थी न पास। ऐसा लग रहा था मानों थाना क्षेत्रों में होड़ लगी हो कि कौन सबसे ज्यादा लोगों को अस्थायी जेल (Temporary Jails) भेजता है। इधर इस आपदा में सिटी बस वालों को जरूर नया अवसर हाथ लग गया। बस वाले जहां 25 से 30 या उससे अधिक लोगों को एक बार में अस्थायी जेल भले ही नि:शुल्क छोड़ रहे थे, वहीं उनकी सजा पूरी होने पर लोग जब पूछते कि भिया वापस चौराहे चलना है, जहां हमारी गाड़ी रखी है तो जवाब मिलता कि 50 रुपए एक सवारी के लगेंगे, नहीं तो पैदल जाओ। कई लोगों ने मजबूरी में इन सिटी बसों का सहारा लिया और 50-50 रुपए तक चुकाए तो कई कुछ किलोमीटर पैदल चलकर ई-रिक्शा से अपने वाहन लेने पहुंच रहे थे। कुछ ऐसे भी थे जो मजदूरी केे लिए निकले थे और उनके पास पैसे नहीं होने की वजह से वे पैदल ही घर को रवाना हो गए।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chauhan) के इंदौर दौरे के बाद ही प्रशासन ने आदेश जारी किया कि 28 मई तक इंदौर में सख्त लॉकडाउन (Lockdown) रहेगा। जरूरी सुविधाओं को छोडक़र किसी को भी बाहर निकलने की अनुमति नहीं रहेगी। इसके बाद शुक्रवार सुबह 7 बजे से पुलिस एक्शन मोड में आ गई। स्पष्ट तौर पर ऊपरी निर्देश थे कि 31 मई तक सख्ती करना है। इसके बाद पुलिस ने आने-जाने वालों को रोकना शुरू कर दिया। आलम यह था कि जो थानेवार सिटी बसें पुलिस को दी गई हैं वे चंद घंटों में भरा रही थीं और उन्हें अस्थायी जेल भेजा जा रहा था। जिन लोगों को अस्थायी जेलों में ठूंसा गया उनमें अधिकांश लोग ऐसे थे जो या तो जरूरी काम से घर से निकले थे या उन्हें इस सख्त कफ्र्यू में भी छूट दी गई है या ऐसे मजदूर, जिन्हें इस तरह की सख्ती की कोई जानकारी नहीं थी। इस बीच एक जानकारी यह सामने आई कि लोगों को पकडऩे और अस्थायी जेल ((Temporary Jails)) भेजने तक जो ज्यादती हुई वहां तक तो ठीक, लेकिन जेल से छूटने के बाद सिटी बस वालों ने एक नया खेल शुरू कर दिया। दरअसल थानावार प्रशासन ने एक-एक सिटी बस पुलिस वालों को मुहैया करवाई है, ताकि बेवजह घूमने वालों को अस्थायी जेलों में भिजवाया जा सके। यहां तक हो भी लगभग ऐसा ही रहा है। अस्थायी जेलों तक लोगों को भले ही नि:शुल्क भेजा जा रहा हो, लेकिन जब ये लोग अपनी तीन घंटे की सजा पूरी करके बाहर आ रहे हैं तो उसके बाद जब बस वालों से पूछते हैं कि फलां चौराहे पर वापस चलना है, हमारी गाड़ी वहीं खड़ी है। इस मजबूरी का फायदा सिटी बस वाले उठा रहे हैं और एक सवारी से 50 रुपए या उससे अधिक तक वसूले जा रहे हैं। ऐसा ही नजारा कल पत्थर गोदाम के पास स्थित गुजराती समाज की धर्मशाला पर बनाई अस्थायी जेल पर देखा गया। जब लोग वहां से छूटे और सिटी बस वालों से पूछा कि भैया हमें लैंटर्न चौराहा तक जाना है, ले चलोगे…? तो बस चालक ने कहा कि 50 रुपए एक सवारी के लगेंगे। जिनके पास थे वह तो मजबूरी में 50 रुपए देकर सिटी बस में बैठ गए और जिनके पास सिर्फ 20 या 30 रुपए ही थे वे कुछ किलोमीटर दूर चलकर ई-रिक्शा में बैठकर रवाना हो गए। वहीं कुछ मजदूर ऐसे भी थे जिनकी जेब खाली थी, वे तो पैदल ही घर की ओर रवाना हो गए।
इमरजेंसी सेवा का कार्ड बताया फिर भी जेल का रास्ता दिखाया
अंकित भाटी नाम के युवक ने बताया कि मैं डाबर कम्पनी में कार्यरत हूं और हमारी कम्पनी इस समय जहां इम्यूनिटी प्रोडक्ट पर काम कर रही है, वहीं सेनिटाइजेशन से लेकर अन्य मेडिकल उत्पादन भी तैयार कर रही है। हम भी इमरजेंसी सेवा में आते हैं और बाकायदा अनुमति भी दी गई है और कम्पनी ने सभी के कार्ड भी बनाए हैं। मैंने पुलिस वालों को कार्ड बताया और जाने की गुहार लगाई तो भी पुलिसकर्मियों ने एक न सुनी और सीधे सिटी बस में बैठाकर अस्थायी जेल भेज दिया।
बुजुर्ग को भी नहीं बख्शा
एक हाथ में मकान का पलस्तर करने वाली कन्नी और दूसरे हाथ में खाने का टिफिन तथा मन में दो पैसे कमाने की उम्मीद लेकर निकले एक 60 वर्षीय गुलाबसिंह नामक बुजुर्ग को भी बेरहमों ने नहीं बख्शा और अस्थायी जेल भेज दिया।
ई-रिक्शा वाले भी मंडराने लगे
अभी जनता कफ्र्यू (Public Curfew) में सख्ती के चलते ऑटो रिक्शा, ई-रिक्शा व अन्य सवारी वाहन दौड़ाने वालों का धंधा बंद पड़ा है, लेकिन मरीजों को लाने-ले जाने के लिए रिक्शा और ई-रिक्शा वालों को छूट दी गई है। इधर यह भी देखने में आया कि जहां अस्थायी जेल बनाई गई है, उसके आसपास भी अब ये ई-रिक्शा वाले मंडराने लगे हैं…
जेल में पानी तक नहीं पी रहे
अस्थायी जेल में हालांकि पीने के पानी की व्यवस्था तो थी, लेकिन वहां इतने सारे लोगों की संख्या में सिर्फ एक ही गिलास उपलब्ध है। इस डर से कि कहीं किसी में कोरोना के लक्षण न हों और उसने पानी पी लिया तो हमें भी कोरोना न हो जाए, कई लोग तीन घंटे तक प्यासे ही बैठे रहे।
बिल भरने गया था… जेल की हवा खाकर आया
अनिल नामक एक युवक घर का बिजली का बिल भरने निकला था। उसने पुलिस वालों को बिल भी बताया और कहा कि सर आज आखिरी तारीख है। मैं बिल भरकर सीधे घर चला जाऊंगा, लेकिन पुलिस वालों ने एक न सुनी और पूछा कि पहले क्यों नहीं भरा…? इस पर अनिल ने कहा कि सर पैसे नहीं थे। आज ही बड़ी मुश्किल से पैसे उधार मिले हैं, इसलिए मजबूरी में आज बिल भरने निकलना पड़ा। अनिल के लाख गिड़गिड़ाने के बावजूद पुलिस ने एक न सुनी और उसे सिटी बस में बैठाकर अस्थायी जेल रवाना कर दिया और उसे अस्थायी जेल की हवा खाकर ही घर लौटना पड़ा।
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