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    पति-पत्‍नी के झगड़े में पुलिस का कोई रोल नहीं, खुद बचांए शादी, सुप्रीम कोर्ट ने क्‍यों कही ये बात

  • May 04, 2024

    नई दिल्‍ली(New Delhi) । हाईकोर्ट (High Court)ने पुराने फैसले को पलट दिया और पति की याचिका को ख‍ारिच(dismiss the petition) कर दिया । इस मामले में कोर्ट ने बड़ी टिप्‍पणी की है । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने शुक्रवार को फैसला(Decision) सुनाते हुए एक महिला के द्वारा अपने पति के खिलाफ दायर दहेज उत्पीड़न (Dowry harassment filed)के केस को रद्द कर दिया। इस दौरान जज ने कहा कि सहिष्णुता और सम्मान एक अच्छे विवाह की नींव हैं और छोटे-मोटे झगड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, ”एक अच्छे विवाह की नींव सहिष्णुता, समायोजन और एक-दूसरे का सम्मान करना है। एक-दूसरे की गलतियों को एक सीमा तक सहन करना हर विवाह में अंतर्निहित होना चाहिए। छोटी-मोटी नोक-झोंक, छोटे-मोटे मतभेद सांसारिक मामले हैं और इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए।”

    इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने आदेश में एक पति की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया।


    अदालत ने कहा कि कई बार एक विवाहित महिला के माता-पिता और करीबी रिश्तेदार बहुत बड़ी बात बना देते हैं। स्थिति को संभालने और शादी को बचाने के बजाय, छोटी-छोटी बातों पर उनके कदम वैवाहिक बंधन को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि महिला, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के दिमाग में सबसे पहली चीज जो आती है वह है पुलिस। मानो की सभी बुराईयों का रामबाण इलाज पुलिस ही हो। पीठ ने कहा कि मामला पुलिस तक पहुंचते ही पति-पत्नी के बीच सुलह की संभावना नष्ट हो जाती है। अदालत ने यह भी कहा कि पति-पत्नी के बीच जो विवाद होते हैं, उसके मुख्य पीड़ित बच्चे होते हैं।

    कोर्ट ने कहा, “पति-पत्नी अपने दिल में इतना जहर लेकर लड़ते हैं कि वे एक पल के लिए भी नहीं सोचते कि अगर शादी खत्म हो जाएगी तो उनके बच्चों पर क्या असर होगा। हम पूरे मामले को नाजुक ढंग से संभालने के बजाय आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का प्रयास करते हैं। इससे एक-दूसरे के लिए नफरत के अलावा कुछ नहीं आएगा।”

    महिला पर अधिक दहेज के लिए दबाव डाला

    महिला के द्वारा दर्ज एफआईआर में कहा गया था कि महिला के परिवार ने उसकी शादी के समय एक बड़ी रकम खर्च की थी। परिवार ने अपना “स्त्रीधन” भी महिला के पति और उसके परिवार को सौंप दिया था। शादी के कुछ समय बाद पति और उसके परिवार ने कथित तौर पर उसे झूठे बहाने से परेशान करना शुरू कर दिया। महिला के मुताबिक, पति और ससुराल के लोग यह कहने लगे कि वह एक पत्नी और बहू के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रही और उस पर अधिक दहेज के लिए दबाव डाला।

    महिला द्वारा लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट

    पीठ ने कहा कि एफआईआर और आरोपपत्र को पढ़ने से पता चलता है कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप काफी अस्पष्ट हैं। इनमें आपराधिक आचरण का कोई उदाहरण नहीं दिया गया है। एफआईआर में अपराधों की कोई विशिष्ट तारीख या समय का खुलासा नहीं किया गया है। यहां तक कि पुलिस ने महिला क पति के परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करना उचित समझा। इस प्रकार हमारा विचार है कि प्रतिवादी नंबर 2 (महिला) द्वारा दर्ज की गई एफआईआर तलाक की याचिका और घरेलू हिंसा के मामले के अलावा और कुछ नहीं थी। उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यदि अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और न्याय का मखौल उड़ाने से कम नहीं होगा।

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