जबलपुर। शहर में इन दिनों किशोरों में एक अलग तरह के नशे की लत बढ़ती जा रही है। यह नशा शराब, गांजा व हेरोइन से भी ज्यादा खतरनाक है। बच्चे हर जगह आसानी से मिलने वाले बोनफिक्स को प्लास्टिक के माध्यम से सूंघ रहे हैं। इस नशे की चपेट में 10 से 15 वर्ष के बच्चे अधिक है। नशे के सौदागर अपने थोड़े से फायदे के लिए बचपन से लेकर युवा होती पीढ़ी को उस गहरी खाई में धकेल रहे हैं। शहर में तेजी से पांव पसार रहा बोनफिक्स, मैक्सो बॉण्ड, सुलेशन का नशा बच्चों से उनका बचपन छीन रहा है तो कई किशोरों को विक्षिप्तों सी हरकत करते देखा जा सकता है। कबाड़ बीन कर बेचने, भीख मांगकर गुजारा करने वाले परिवारों के बच्चों से शुरू हुई यह लत इस कदर बढ़ चली है कि प्राय: सभी स्लम बस्ती में ऐसे नशेड़ी बच्चे मिल जाएंगे। ये घुमन्तु बच्चे कचरों के ढेर से अपनी जरूरत का सामान खोजते हैं। कबाड़ी के पास लोहा, प्लास्टिक, पुठ्ठा बेचकर मिले रूपए से नशा का सामान खरीदते हैं। ये बच्चे बोनफिक्स का एक पैकेट खरीद कर कहीं अकेले में बैठ कर प्लास्टिक के पन्नी पर उसे पहले निचोड़ देते हैं। उसके बाद हथेली में बंद कर जोर लगा सूंघते हैं। सूंघने के पांच मिनट बाद उन पर नशा हावी होने लगता है। इसका नशा चार से पांच घंटे तक रहता है। नशा टूटने पर वे वहीं प्रक्रिया दोहराते है। इस तरह दिन में दो बार और कभी कभी शाम में भी इस का एक डोज लेते हैं। यह नशा शरीर को सुन्न कर देता है।
10 से 15 साल के बच्चों को आसानी से मिलता है नशा
इस नशे की गिरफ्त में कम उम्र के बच्चे हैं। यह नशा कहीं भी किराना या फिर स्टेशनरी की दुकान पर आसानी से मिल जाता है। दुकानदार इसे 40 से 45 रुपए तक में बेच रहे हैं। इसकी लत के शिकार बच्चे दिनभर मजदूरी करते हैं या फिर भीख मांगते हैं। जो पैसा उनको मिलता है, उसे वो नशा खरीदने में ही खर्च करते हैं। ज्यादातर नशा करने वाले बच्चे रेलवे स्टेशन या फिर एकांत में बैठकर नशा करते हैं और नशा करने के बाद घंटों वहीं डेरा जमाए रहते हैं। ये हाल सिर्फ यहां का ही नहीं है, शहर में जहां भी स्लम एरिया है या फिर डेरे वाले हैं वहां के बच्चे ऐसे नशे की गिरफ्त में हैं।
सोचने-समझने की शक्ति खत्म करता है नशा
नशा करने के बाद किशोर कही भी घंटों शांत बैठे रहते हैं। चार-पांच बच्चे अगर एक जगह बैठे भी हैं, तो आपस में बात तक नहीं करते हैं। खुद में सिमटे रहते हैं। इसी नशे का आदि एक बच्चे को विश्वास में लेकर पूछने पर बताया कि सूंघने के बाद शरीर हलका हो जाता है। रंग बिरंगी तस्वीरें नजर आती हैं। बोलने का मन नहीं करता है। मन करता है कि कहीं अकेले बैठे रहें। हेरोइन व गांजे की नशे की तरह इस का नशा होता है। यह नशा सेवन करने वाले को शिथिल कर देता है। सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। किसी से बात करने का मन नहीं करता।
हार्ट और फेफड़े पर पड़ता है असर
इस नशे के सेवन से हर्ट व फेफड़े पर जबरदस्त असर पड़ता है। लगातार सेवन करने से जान भी जा सकती है। चिकित्सकों के मुताबिक बोनफिक्स या सनफिक्स में रसायनिक तत्व होता है। बच्चे नशे के लिए जोर से सूंघते हैं। इससे रसायनिक तत्व सीधे फेफड़े में जाती है। लगातार सेवन से वही रसायनिक तत्व पानी में तब्दील हो जाता है। फेफड़े में सूजन आ जाती है व हर्ट पर इसका सीधा दुष्प्रभाव होता है। समय पर इस का इलाज नहीं हुआ तो नशा करने वाले की मौत भी हो सकती है।
बेचने वाले को 7 साल की कैद का प्रावधान
नशा का सामान बच्चों को बेचना दण्डनीय अपराध है। ऐसे दुकानदारों को 7 साल की कैद का प्रावधान है। किशोर न्याय और संरक्षण अधिनियम 2015 की धारा 77 में स्पष्ट है कि जो कोई सम्यक रूप से अर्हित चिकित्सा व्यवसायी आदेश के सिवाय अन्य प्रकार से किसी बालक को कोई नशीली मदिरा या स्वापक औषधि या तम्बाकू के उत्पाद या मन: प्रभावी पदार्थ बेचता है या दिलवाता है, ऐसी अविधि के सश्रम कारावास जो 7 वर्ष तक हो सकता है, से दण्डनीय होगा और अर्थदण्ड के लिए भी भागी होगा जो एक लाख रुपए तक हो सकता है।
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