स्टॉकहोम। बारिश (rain) आते ही हर देश में लोग उसका स्वागत बाहें फैला कर करते हैं. खुशी से आंखें मींज लेते हैं. मुंह खुल जाता है. बूंदें आपको गीला करती हैं. गर्मी से राहत मिलती है. लेकिन इस राहत में घुली जहर आपको दिखती नहीं. वो धीरे-धीरे आपके शरीर को नुकसान (Harm) पहुंचा सकती है.
पहले माना जाता था कि बारिश का पानी सबसे शुद्ध होता है. लेकिन अब नहीं है. क्योंकि हम इंसानों ने वायु, धरती, जल हर जगह गंदगी फैला रखी है. प्रदूषण फैला रहे हैं. पर एंड पॉली-फ्लोरोएल्किल सब्सटेंस (Per- and poly-fluoroalkyl substances – PFAS) रसायन इस पानी में मिला होता है. इसे ही साइंटिस्ट फॉरेवर केमिकल्स कहते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ स्टॉकहोम के वैज्ञानिकों ने दुनिया के ज्यादातर जगहों पर होने वाली बारिश को असुरक्षित पाया है. यहां तक कि अंटार्कटिका में भी बारिश का पानी शुद्ध नहीं बचा है. फॉरेवर केमिकल्स पर्यावरण में टूटते नहीं हैं. ये नॉन-स्टिक होते हैं. इनमें स्ट्रेन यानी गंदगी मिटाने की काबिलियत होती है. इनका उपयोग घर के पैकेजिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, कॉस्मेटिक्स और किचन के बर्तनों में होता है.
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— Latest in space (@latestinspace) August 9, 2022
फॉरेवर केमिकल्स को लेकर पूरी दुनिया में खास तरह के गाइडलाइंस हैं. लेकिन इनका स्तर धीरे-धीरे गिरता जा रहा है. पिछले दो दशकों में फॉरेवर केमिकल्स के जहरीलेपन को लेकर नई गाइडलाइंस जारी नहीं की गई हैं. उनमें किसी तरह का नया या सकारात्मक बदलाव नहीं किया गया है.
यूनिवर्सिटी ऑफ स्टॉकहोम में डिपार्टमेंट ऑफ एनवॉयरनमेंटल साइंस के प्रोफेसर और इस स्टडी के प्रमुख शोधकर्ता इयान कजिन्स ने बताया कि PFAS की गाइडलाइंस में लगातार गिरावट आ रही है. वहीं दुनिया भर में इन रसायनों की मात्रा बढ़ती जा रही है.
इयान ने बताया कि इन्हीं रसायनों में कैंसर पैदा करने वाले परफ्लोरोऑक्टेनोइक एसिड (PFOA) भी आते हैं. अमेरिका में इस रसायन को लेकर जो गाइडलाइंस का जो स्तर था उसमें 3.75 करोड़ गुना गिरावट आई है. अमेरिका ने अब जाकर नई गाइडलाइन जारी की है, जिसमें कहा गया है कि बारिश का पानी भी पीने के लिए असुरक्षित है. दुनिया में कहीं भी वर्षाजल सुरक्षित नहीं है.
दुनिया में कई जगहों पर बारिश के पानी को पीने योग्य माना जाता है. उनका स्टोरेज करके उन्हें पिया जाता है. कई देशों में तो भारी स्टोरेज करने के बाद महीनों तक लोग बारिश का पानी पीते हैं. लेकिन अब ये पानी भी सुरक्षित नहीं बचा है. अब सवाल ये उठता है कि फॉरेवर केमिकल्स (Forever Chemicals) से शरीर पर क्या नुकसान होता है.
अगर इस रसायन की शरीर में मात्रा बढ़ जाती है तो इससे प्रजनन क्षमता कम हो जाती है. कैंसर का खतरा रहता है. इसके अलावा बच्चों का विकास सही नहीं रहता. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि इन रसायनों और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के बीच किसी तरह के पुख्ता सबूत नहीं है. लेकिन नई स्टडी से यह मांग की गई है कि PFAS को लेकर नए और सख्त गाइडलाइंस की जरुरत है.
ज्यूरिख स्थित फूड पैकेजिंग फाउंडेशन की मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. जेन मन्के ने कहा कि यह तो संभव नहीं है कि करोड़ों लोगों के पीने के पानी को प्रदूषित करके कोई मुनाफा कमाए. हमें भी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों पर नजर रखना पड़ता है. लेकिन अब बड़े पैमाने पर PFAS का उत्सर्जन हो रहा है, जो कि खतरनाक है. (फोटोः गेटी)
जेन मन्के ने कहा कि पीने के पानी में PFAS की मात्रा बहुत तेजी से बढ़ रही है. यह रसायन हवा में भी घुला रहता है. ऐसे में बारिश का पानी भी इससे प्रदूषित हो जाता है. जहां तक वर्तमान वैज्ञानिक समझ की बात है तो इस रसायन का उपयोग करने वाली सभी इंडस्ट्रीज को इसकी खपत कम करनी होगी. इन रसायनों का उत्पादन कम करना होगा.
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