नई दिल्ली। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में होने जा रही शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की वार्षिक शिखर बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी भी वर्चुअली हिस्सा लेंगे। इस बैठक में आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा, अफगानिस्तान संकट, सहयोग व संपर्क पर बात होगी। इसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी शामिल हो रहे हैं। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से सभी देशों के सामने पाकिस्तान को बेनकाब करेंगे और आतंकवाद के मु्द्दे पर इमरान खान को खरी-खरी सुनाएंगे।
दरअसल, अफगान संकट में पाकिस्तान की भूमिका खुलकर दुनिया के सामने आ गई है। पाकिस्तान कैसे तालिबान और उसके आतंकियों को पाल रहा है, यह भी दुनिया ने देख लिया है। ऐसे में अफगान संकट के बाद यह पहला मौका होगा जब पीएम मोदी और इमरान खान आमने-सामने होंगे।
विदेश मंत्री एस जयशंकर दुशांबे रवाना
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बताया कि दुशांबे में शुक्रवार को होने जा रही इस बैठक में शामिल होने के लिए विदेश मंत्री पहले ही रवाना हो गए हैं। एससीओ के सदस्य देशों की यह 21वीं बैठक होगी, जिसकी अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमान करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो लिंक के जरिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे।
पूर्णकालिक सदस्य के रूप में भारत की चौथी बैठक
शंघाई सहयोग संगठन अपनी स्थापना की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है। ऐसे में यह बैठक काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। बता दें एससीओ की यह चौथी बैठक होगी, जिसमें भारत पूर्णकालिक सदस्य के रूप में प्रतिभाग करेगा। 15 जून 2001 में इस संगठन की स्थापना हुई थी और 2017 में भारत इसका पूर्णकालिक सदस्य बना था।
एस जयशंकर कर चुके हैं चीनी विदेश मंत्री के साथ बैठक
अपने दुशांबे दौरे के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात कर चुके हैं। यह मुलाकात एससीओ की बैठक से इतर हुई थी। इस मुलाकात के बाद, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट किया, “वैश्विक विकास पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया। इस बात पर जोर दिया कि भारत सभ्यताओं के टकराव संबंधी किसी भी सिद्धांत पर नहीं चलता है। यह भी जरूरी है कि भारत के साथ अपने संबंधों को चीन किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखे।’
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीनी विदेश मंत्री के साथ अपनी बैठक के दौरान, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रेखांकित किया कि ‘शेष मुद्दों के समाधान में प्रगति सुनिश्चित करना आवश्यक था ताकि पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर शांति और पहले जैसी स्थिति बहाल हो सके।’
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