नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi)दो दिनों की यात्रा पर दक्षिण पूर्वी एशियाई (South East Asians on Tour)देश लाओस (Country Laos)गए हुए हैं. यहां वह आसियान-भारत शिखर सम्मेलन(ASEAN-India Summit) और एशिया शिखर सम्मेलन में शिरकत करेंगे. लाओस कभी हिंदू देश था. दक्षिण पूर्व एशिया में हिंदू धर्म का प्रमुख केंद्र था. कभी यहां शिव और विष्णु की पूजा आम थी.आधुनिक लाओस में हिंदू धर्म के सभी निशान तब मिट गए जब इस क्षेत्र के प्रमुख साम्राज्यों, जैसे खमेर ने बौद्ध धर्म अपना लिया।
एशिया के ज्यादातर दक्षिण पूर्वी देशों की हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म या फिर मुस्लिम देश की कहानियां कुछ ऐसी ही हैं. 12वीं सदी से पहले तक ये हिंदू देश था. यहां हिंदू राजा शासन करते थे. अब ये मूल रूप से बौद्ध देश हैं।
लाओस चारों ओर से जमीन से घिरा देश है. इसके पड़ोसी देश वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार और चीन हैं. इसमें चीन को छोड़ दें तो सभी देशों में शुरुआती सालों में हिंदू धर्म का वर्चस्व रहा लेकिन फिर से बौद्ध धर्म में कन्वर्ट हो गए. अब भी हैं. कुछ ऐसी ही कहानी लाओस की है।
यूपी से थोड़ा छोटा
लाओस की जनसंख्या 77 लाख है. इसका क्षेत्रफल 236,800 वर्ग किलोमीटर है यानि ये उत्तर प्रदेश बहुत हल्का सा छोटा है. हालांकि यूपी की आबादी इससे कई गुना ज्यादा है. इस देश में अब नाममात्र के ही हिंदू रह गए हैं. इनकी संख्या 7000 के आसपास है. जो यहां की आबादी का 0.1 फीसदी है. यहां की 60 फीसदी आबादी बौद्ध है।
तब ताकतवर हिंदू राजाओं का शासन
सदियों पहले लाओस पर हिंदू खमेर साम्राज्य का मजबूत शासन था. यहां तब रामायण पढ़ी और सुनी जाती थी. रामायण को यहां फ्र लाक फ्रा लाम कहा जाता है. ये कह सकते हैं ये रामायण लाओसियन रूपांतरण है।
अब बड़े हिंदू मंदिरों के अवशेष
यहां के लोगों को लाओ कहा जाता है. लाओस में शुरुआती सदियों में हिंदू धर्म ही था. कम से कम 12वीं सदी तक ये देश हिंदू बहुतायत वाला था. हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे. हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां अक्सर मंदिरों के बाहर पाई जाती थीं. अब भी जो अवशेष बचे हुए हैं, वो भी इस तरह की चीजें पाई जाती हैं. मंदिरों का निर्माण प्राचीन हिंदू तीर्थस्थलों के स्थान पर किया गया था. वैसे लाओस के इतिहासकार मानते हैं कि वहां पहला मंदिर कामता नामक राजा ने बनवाया था।
चम्पासक प्रांत में एक प्रोटो-खमेर स्थल एक शिवलिंग जैसी दिखने वाली पर्वत संरचना के चारों ओर निर्मित किया गया था. वट फौ कभी यहां का एक प्रमुख हिंदू तीर्थस्थल था, लेकिन बाद में इसे बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर दिया गया. वट फौ दक्षिणी लाओस में एक खंडहर हिंदू मंदिर परिसर है. दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे पुराने पूजा स्थलों में एक है. अब यह बौद्ध तीर्थस्थल है. इसमें हिंदू और बौद्ध दोनों ही विद्याओं का प्रदर्शन दिखता है. लाओ लोग भी नागों का आदर करते हैं और पूजा करते हैं।
क्यों ये देश हिंदू से बौद्ध हो गया
लाओस में हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में बदलाव कई वजहों से हुआ, जिसमें ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आयाम शामिल थे. लाओस में हिंदू धर्म भारत से पहुंचा और फैला. इसके चलते वहां भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव का भी फैलाव हुआ. लेकिन 14वीं शताब्दी के आसपास बौद्ध धर्म प्रमुखता से बढ़ने लगा1
लाओस के हिंदुू मंदिर परिसर की दीवारों पर हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां नजर आ जाती हैं. ये प्रतिमा विष्णु और गरुड़ की है, जो दीवार पर उकेरी गई है।
खमेर वंश की राजकुमारी की शादी टर्निंग प्वाइंट थी
दरअसल खमेर हिंदू साम्राज्य था. इस वंश की राजकुमारी की शादी कंबोडिया में हुई. उसके बाद कंबोडिया से बौद्ध भिक्षुओं को जब यहां आमंत्रित किया जाने लगा तो बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ. माना जाता है कि खमेर राजा जब हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में कन्वर्ट हुए तो जनता ने भी इस धर्म में आना शुरू कर दिया. आमतौर पर एशिया के देशों के दूसरे धर्म मे्ं बदलने की कहानी एक जैसी है, कुछ देशों में अरब देशों से आए व्यापारियों का असर राजाओं पर हुआ तो कुछ देशों में बौद्ध भिक्षुओं ने राजसत्ता को प्रभावित कर पूरे देश के धर्म डायनामिक्स को बदलकर रख दिया।
तब हिंदू मंदिरों का विस्तार हुआ
खमेर साम्राज्य के चरम पर विशेष रूप से 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच यहां हिंदू मंदिरों का विस्तार किया गया और उनका जीर्णोद्धार भी. इस अवधि में ये मंदिर हिंदुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हुआ. जब धीरे-धीरे बौद्ध धर्म फैलने लगा तो ये बौद्ध स्थल में परिवर्तित हो गया. ऐसा ही कंबोडिया में भी जगह जगह हुआ।
जब लाओस में बौद्ध धर्म फैल गया और हिंदू धर्म करीब करीब खत्म हो गया तो हिंदू मंदिर में रखे देवी -देवताओं की मूर्ति को हटाकर वहां बुद्ध की मूर्ति रख दी गई।
ब्रह्मा, विष्णु और शिव की मूर्तियां, कृष्ण भी
इस मंदिर परिसर में हिंदू देवताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली कई मूर्तियाँ और नक्काशी हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव की छवियां शामिल हैं, तो कृष्ण और कंस की मूर्तियां भी हैं. जो बताता है कि किस तरह एक जमाने में यहां हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रभाव था. जैसे-जैसे लाओस में बौद्ध धर्म बड़ा होता गया, तब कई हिंदू मंदिरों को बौद्ध प्रथाओं में बदल दिया गया. जब खमेर साम्राज्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया, तो बाद में लिंगम को बुद्ध की मूर्तियों से बदल दिया गया।
लाओस में महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर
वाट फौ (वाट फु)
स्थान: चंपासक प्रांत
यह प्राचीन मंदिर परिसर शिव को समर्पित है. लाओस में सबसे पुराने मंदिरों में एक है. ये 5वीं शताब्दी ई.पू. का है. ये खमेर वास्तुकला को प्रदर्शित करता है।
वाट फौ का बड़ा मंदिर परिसर, हालांकि 5वीं सदी के इस भव्य और विशाल हिंदू मंदिर के अब अंवशेष ही हैं. ये यूनेस्को धरोहर सूची में शामिल है।
हाथी चट्टान वट फौ
स्थान: वट फौ के पास, चंपासक
– इस स्थल में हाथियों जैसी चट्टानें हैं. यह प्राचीन मंदिर परिसर से जुड़ी हुई है. हालांकि आज ये मुख्य रूप से बौद्ध स्थल है लेकिन इसमें अपने हिंदू अतीत के तत्व बरकरार हैं.
ओम मोंग
स्थान: चंपासक
-ओम मोंग एक और प्राचीन मंदिर है जो खमेर साम्राज्य के समय का है. इसमें हिंदू और बौद्ध दोनों तरह के प्रभावों को दर्शाते खंडहर हैं, जो जटिल नक्काशी और पत्थर की संरचनाओं को दिखाते हैं.
वाट दैट लुआंग नेउआ
स्थान: वियनतियाने
– बौद्ध स्थल होने के बावजूद, इस मंदिर परिसर की ऐतिहासिक जड़ें हिंदू प्रथाओं से जुड़ी हैं, खासकर इसकी स्थापत्य शैली और प्रतिमाएं.
वाट ज़ियांग थोंग
स्थान: लुआंग प्रबांग
– एक बौद्ध मंदिर होने के बावजूद इसमें पहले की हिंदू परंपराओं के तत्व शामिल हैं, जो लाओटियन आध्यात्मिकता को दिखाते हैं.
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