अहमदाबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात दौरे का आज तीसरा दिन है. उन्होंने सुरेंद्रनगर में एक चुनावी जनसभा के दौरान एक बार फिर राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी का नाम लिए बिना ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में मेधा पाटकर के शामिल होने को लेकर निशाना साधा. उन्होंने कहा, ‘जिनको भारत की जनता ने पद से हटा दिया, ऐसे लोग पद के लिए पदयात्रा कर रहे हैं. पद के लिए लोकशाही में यात्रा करें तो करें…लेकिन जिन्होंने गुजरात को प्यासा रखा, मां नर्मदा का पानी रोकने के लिए 40 साल तक कोर्ट-कचहरी करी, ऐसे नर्मदा विरोधियों के कंधे पर हाथ रखकर पद के लिए पदयात्रा करने वाले लोगों को गुजरात की जनता सजा देने वाली है. यह चुनाव नर्मदा प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों को हराने का चुनाव है.’ प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा, ‘चुनाव आते ही जानकार एंटी-इनकम्बेंसी की बात करते हैं. लेकिन गुजरात की जानता ने उन्हें गलत साबित किया है. पिछले 27 साल से गुजरात में बीजेपी ने प्रो-इनकम्बेंसी वाली नई राजनीति की शुरुआत की है.’
एक दिन पहले धोराजी की अपनी जनसभा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने यह मुद्दा उठाया था. अपने संबोधन में उन्होंने कहा था, ‘कांग्रेस से पूछिए कि जो लोग नर्मदा बांध के खिलाफ थे, आज उन्हीं के कंधों पर हाथ रखकर आप पदयात्रा निकाल रहे हैं. क्यों भाई? इन लोगों ने गुजरात में नर्मदा प्रोजेक्ट का इतना विरोध किया था कि इस प्रोजेक्ट के लिए राज्य को विश्व बैंक से 1 रुपया भी नहीं मिल सका था. अगर हमने नर्मदा प्रोजेक्ट को आगे नहीं बढ़ाया होता तो आज यहां की हालत पहले की तरह होती.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल अगस्त में जब कच्छ में नर्मदा का पानी लाने वाली एक नहर सहित कई अन्य परियोजनाओं का उद्घाटन किया था, तब उन्होंने कहा था, ‘मेधा पाटकर और उनके ‘अर्बन नक्सल’ दोस्तों ने नर्मदा परियोजना का विरोध किया था, जिस कारण यह प्रोजेक्ट 3 दशक तक लटका रहा. इससे गुजरात को बहुत नुकसान हुआ था. वास्तव में, इस परियोजना का विश्व बैंक के मोर्स आयोग सहित आलोचकों ने विरोध किया गया था.’
सरदार सरोवर डैम और नर्मदा बचाओ आंदोलन
सरदार सरोवर डैम विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कंक्रीट का बांध है. देश के सबसे बड़े इस बांध के निर्माण की नींव भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1961 में रखी थी, लेकिन इसका उद्घाटन 17 सितंम्बर 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 67वें जन्मदिन पर किया था. वर्ष 1980 के दशक के मध्य में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर सामने आईं और 1985 में पहली बार उन्होंने सरदार सरोवर डैम निर्माण स्थल का दौरा किया. उसके बाद पाटकर और उनके सहयोगियों ने इस बांध के निर्माण के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया. काशीनाथ त्रिवेदी, प्रभाकर मांडलिक, फूलचंद पटेल, बैजनाथ महोदय, शोभाराम जाट आदि ने मिलकर घाटी नवनिर्माण समिति का गठन किया और वर्ष 1986 से 88 के बीच इस परियोजना का पुरजोर विरोध किया. वर्ष 1987 में इन्होंने नर्मदा कलश यात्रा भी निकाली.
वर्ष 1988 के अंत में यह विरोध ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के रूप में सामने आया. मेधा पाटकर इस आंदोलन में समन्वयक की भूमिका में थीं और कई लोग जैसे राकेश दीवान, श्रीपाद धर्माधिकारी, आलोक अग्रवाल, नंदिनी ओझा और हिमांशु ठक्कर इसमें शामिल हुए. मेधा पाटकर के अलावा अनिल पटेल, अरुधंती रॉय, आमिर खान, बाबा आम्टे व 200 से अधिक गैर सरकारी संगठन भी सरदार सरोवर डैम प्रोजेक्ट के विरोध में शुरू ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ का हिस्सा बने. बांध के उद्घाटन के बावजूद मेधा पाटकर और अन्य कार्यकर्ताओं ने अपने ‘जल सत्याग्रह’ से पीछे हटने से इनकार कर दिया. पत्रकार एवं आर्थिक विश्लेषक स्वामीनाथन अय्यर ने हाल ही में सरदार सरोवर प्रोजेक्ट के समर्थन में टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा था. इस लेख में उन्होंने न केवल इसे एक जन कल्याणकारी परियोजना बताया बल्कि इसकी विशेषताएं गिनायीं, यह भी रेखांकित किया कि कैसे कुछ लोग इस परियोजना को अवरुद्ध करने में लगे हुए थे, जिनमें दुर्भाग्यवश वह स्वयं भी थे. उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कैसे मेधा पाटकर के नेतृत्व में इस परियोजना का विरोध बिल्कुल गलत और अनुचित था.
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