नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi)15 अगस्त को जब लाल किले(Red Fort) के प्राचीर से देश को संबोधित कर रहे थे तब उन्होंने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर काफी जोरदार तरीके से बोले। उनके इस भाषण के बाद देश में इस विषय पर गंभीर चर्चा छिड़ गई है। पीएम मोदी ने सेकुलर सिविल कोड का जिक्र कर विपक्ष पर जोरदार तंज कसा। आपको बता दें कि भाजपा ने हमेशा यूसीसी की वकालत की और लगभग हर चुनाव में इसे अपने घोषणापत्र में शामिल करती है।
1985 में जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पांच बच्चों वाली तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाह बानो के पूर्व पति को शरिया कानूनों के तहत तीन महीने (इद्दत) की अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता के रूप में उसे 179 रुपये प्रति माह देना होगा तो रूढ़िवादी मुस्लिम वर्गों में विरोध शुरू हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसदीय बहुमत का इस्तेमाल करते हुए मुस्लिम महिला (तलाक पर सुरक्षा का अधिकार) अधिनियम, 1986 पारित करके इस फैसले को पलट दिया। उसमें कहा गया कि सीआरपीसी की धारा 125 (महिलाओं के भरण-पोषण से संबंधित) मुस्लिम महिलाओं पर लागू नहीं होती।
एक रिपोर्ट में भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा “माई कंट्री माई लाइफ” के हवाले से कहा है कि उन्होंने इस मामले पर विस्तार से चर्चा की है। शाहबानो विवाद के संदर्भ में पुस्तक में पहली बार यूसीसी शब्द का इस्तेमाल किया है। राजीव गांधी ने कानून पारित होने से पहले उनसे पूछा था कि क्या किया जाना चाहिए। इसपर आडवाणी ने जवाब दिया कि कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय का एक ठोस फैसला था।
मई 1986 में दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भाजपा अध्यक्ष के रूप में अपने भाषण में आडवाणी ने शाह बानो के फैसले को पलटने की आलोचना की थई। उन्होंने कहा था, “शाह बानो के फैसले पर इस साल की लंबी बहस का एक अच्छा परिणाम यह हुआ है कि इसने देश में संविधान के अनुच्छेद 44 (यूसीसी) के बारे में गहरी जागरूकता पैदा की है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।”
पुणे में वी डी सावरकर की याद में एक कार्यक्रम में बोलते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने भी राजीव सरकार के फैसले की आलोचना की थी। उन्होंने याद दिलाया कि सावरकर ने महिलाओं के बीच कोई भेदभाव नहीं किया। कांग्रेस ने मुस्लिम समाज के शक्तिशाली वर्गों को खुश करने के लिए महिलाओं के बीच धार्मिक भेदभाव किया है।
इसके बाद यूसीसी जल्द ही भाजपा के उभरते हुए मुख्य एजेंडे का हिस्सा बन गया। इनमें अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाना भी शामिल था।
1998 से 2004 तक वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सत्ता में आया तो भाजपा ने अपने मुख्य एजेंडे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। उन्हें इस बात का डर था कि मुस्लिम समर्थन वाले सहयोगियों को अलग-थलग न किया जा सके। 1980 के दशक के उत्तरार्ध से यह हिंदुत्व की मांग बन गई और गैर-भाजपा हलकों में इसे अल्पसंख्यक समुदाय को परेशान करने की चाल के रूप में देखा गया।
मोदी सरकार के पहले दो कार्यकालों के दौरान अयोध्या में राम मंदिर बना और अनुच्छेद 370 को भी खत्म कर दिया गया। समान नागरिक संहिता फिलहाल भाजपा का आखिरी अधूरा वैचारिक एजेंडा है। पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में स्पष्ट संकेत दिया कि वे इसे लागू करने पर विचार करेंगे। हालांकि उन्होंने इसे “धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता” के रूप में प्रस्तुत करने का विकल्प चुना। ऐसा कहा जा रहा है कि उन्होंने विपक्ष को बैकफुट पर धकेलने के लिए यह कदम उठाया है।
2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तत्काल तीन तलाक को रद्द करने के बाद भाजपा ने यूसीसी की मांग को फिर से उठाया था। भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार पहले ही यूसीसी को लागू करने के लिए कानून बना चुकी है। उम्मीद है कि पार्टी शासित कुछ अन्य राज्य भी ऐसा ही करेंगे। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार 3.0 टीडीपी और जेडी(यू) जैसे एनडीए सहयोगियों पर गंभीर रूप से निर्भर है। अब देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे से कैसे निपटती है।
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