नई दिल्ली (New Delhi) । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने मंगलवार को भोपाल (Bhopal) से वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) की पांच ट्रेनों (five trains) को हरी झंडी देकर रवाना किया. पीएम मोदी वंदे भारत एक्सप्रेस की हर ट्रेन का शुभारंभ (launch) करते हैं. 2019 में जब से वंदे भारत एक्सप्रेस की शुरुआत हुई है. रेल मंत्री की जगह प्रधानमंत्री मोदी ही इन ट्रेनों को हरी झंडी दिखाते हैं. सवाल है क्यों?
पूछने वाली बात है कि पीएम मोदी रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव को हरी झंडी क्यों नहीं दिखाने देते? बेशक वंदे भारत एक्सप्रेस सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है लेकिन विपक्ष उन पर इसका पूरा क्रेडिट लेने का आरोप लगाता रहा है. लेकिन क्या यही इस सवाल का जवाब है?
इस सवाल का एक सरल जवाब यह हो सकता है कि मोदी प्रधानमंत्री हैं और वह यह खुद तय कर सकते हैं कि उन्हें किन कार्यक्रमों में शामिल होना है. पीएम मोदी इन ट्रेनों को जिस तरह की प्राथमिकता देते हैं उसे समझा जा सकता है. उन्होंने पिछले साल दिसंबर में बंगाल के हावड़ा को जलपाईगुड़ी से जोड़ने वाली वंदे भारत ट्रेन को वर्चु्अली हरी झंडी दिखाई थी. यह वह समय था जब उनकी मां हीराबा का निधन हो गया था लेकिन फिर भी उन्होंने बिना शेड्यूल में बदलाव के इसे हरी झंडी दिखाई थी.
लेकिन वंदे भारत को लेकर उनकी प्राथमिकता और प्रतिबद्धता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रेलवे की आय घटी है और दुर्घटनाएं बढ़ी हैं और यह आमतौर पर अपर्याप्त आधुनिकीकरण की वजह से हुआ है.
साल 2013 में देश में नरेंद्र मोदी की शख्सियत में उभार के प्रमुख कारणों में से एक कारण उनका आशावादी बातें करना रहा है. शायद यही वजह है कि सरकार वंदे भारत के जरिए वोट भुनाना चाहती है. वंदे भारत ट्रेन की अधिकतम स्पीड 160 किलोमीटर प्रतिघंटा है. यह देश की अन्य पैसेंजर ट्रेनों की स्पीड (50 किलोमीटर प्रतिघंटा) की तुलना में बहुत अधिक है.
लेकिन क्या वंदे भारत के पीछे कोई राजनीतिक सोच है? यकीनन है. वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनें न केवल भारत में बनी हैं बल्कि इसके नाम को भी राष्ट्रीय भावना से जोड़कर रखा गया है. अगर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव अकेले वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाते हैं तो हो सकता है कि ज्यादा लोगों का ध्यान इसकी और ना जाए. जब पीएम मोदी खुद इससे जुड़ जाते हैं तो यकीनन एक बड़ी आबादी इससे जुड़ जाती है. पीएम मोदी यह दिखाना चाहते हैं कि विकास, आधुनिकीकरण और कनेक्टिविटी सिर्फ चर्चा में आने वाले शब्द नहीं हैं.
भारत एक ऐसा देश है, जहां हर साल चुनाव होते रहते हैं. 2023 इस लिहाज से और भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले साल अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं और पीएम मोदी लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुनावी मैदान में होंगे. मध्य प्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में पीएम मोदी इस चुनावी राज्य में होंगे. ठीक इसी तरह वह राजस्थान के दौरे पर भी होंगे. राजस्थान में भी इसी साल चुनाव होने हैं.
सरकार की 2024 तक 75 वंदे भारत ट्रेनें चलाने की योजना है. ये ट्रेनें पूर्वोत्तर को जोड़कर सभी राज्यों को एक दूसरे से जोड़ती है. अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले वंदे भारत ट्रेनों के स्लीपर क्लास मॉडल को लाने की भी योजना है. सरकार का कहना है कि वह देश के लोकप्रिय तीर्थस्थलों तक बिना किसी परेशानी के लोगों को ट्रैवलिंग की योजना है.
लेकिन 2024 के बाद क्या शायद वंदे भारत एक ऐसी लेगेसी होगी, जिसे पीएम मोदी जाने के बाद पीछे छोड़ना चाहते हैं. क्या इस तरह की रेल पॉलिटिक्स मदद करेगी.
यह पहली बार नहीं है कि किसी ट्रेन को विशेष ब्रांडिंग की गई है. उदाहरण के लिए, इंदिरा गांधी के रेल मंत्री के रूप में, एलएन मिश्रा ने बिहार के बरौनी और दिल्ली के बीच जयंती जनता एक्सप्रेस की शुरुआत की थी. इसमें मधुबनी पेंटिंग को प्रदर्शित किया गया था. एसी कोच में डेढ़ रुपये में बेडरोल (दरी, चादर, तकिया और तौलिया) मिलता था. एक कंबल के लिए 50 पैसे अतिरिक्त देने पड़ते थे. अब इस ट्रेन को वैशाली एक्सप्रेस कहा जाता है और यह सुपरफास्ट ट्रेन के रूप में अभी भी बरौली-वैशाली के बीच चलती है.
2006 में, तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव ने गरीबों को लुभाने की कोशिश करते हुए गरीब रथ ट्रेनें शुरू कीं. हालांकि इस ट्रेन का मकसद शायद बहुत प्रभावी ढंग से हासिल नहीं किया जा सका. जब ममता बनर्जी रेल मंत्री बनीं, तो उन्होंने तेज गति वाली दुरंतो ट्रेनें शुरू कीं, जिनमें उनकी पेंटिंग प्रदर्शित की गईं. अब इसका बंगाल में सत्ता परिवर्तन से संबंध कह सकते हैं या नहीं भी लेकिन इसके जल्द बाद ही ममता ने अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल में 34 साल के वामपंथी शासन को समाप्त कर दिया.
इससे पहले रामविलास पासवान, ममता बनर्जी और नीतीश कुमार जैसे रेल मंत्री अपने बजट भाषणों में नई ट्रेनों का ऐलान करते थे लेकिन राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में इसका खास असर दिखाई नहीं देता था. बाद में 2017 में रेल बजट को केंद्रीय आम बजट में मिला दिया गया. और दो सालों के भीतर वंदे भारत सामने आई.
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