नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने सोमवार को कहा कि एक बड़े पेड़ को मजबूती से खड़े रहने के लिए अपनी जड़ों से मजबूत होना पड़ता है और आत्मनिर्भर भारत अपनी जड़ों से जुडने और मजबूत बनने का ही संकल्प है। आगे उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा (Lord Birsa Munda) के आशीर्वाद से देश अपने अमृत संकल्पों को पूरा करेगा और विश्व को भी दिशा देगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “भगवान बिरसा मुंडा ने अस्तित्व, अस्मिता और आत्मनिर्भरता का सपना देखा था। देश भी इसी संकल्प को लेकर आगे बढ़ रहा।”
भारत सरकार ने घोषणा की है कि अब से भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाएगा। आज इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से रांची में भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय का उद्घाटन किया।
उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान, सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्वाधीनता संग्राम में आदिवासी नायक-नायिकाओं के योगदान का, विविधताओं से भरी हमारी आदिवासी संस्कृति का जीवंत अधिष्ठान बनेगा।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के इस अमृतकाल में देश ने तय किया है कि भारत की जनजातीय परम्पराओं को, इसकी शौर्य गाथाओं को देश अब और भी भव्य पहचान देगा। इसी क्रम में ऐतिहासिक फैसला लिया गया है कि आज से हर वर्ष देश 15 नवम्बर यानी भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस को ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाएगा।
उन्होंने कहा कि आज के ही दिन हमारे श्रद्धेय अटल जी की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण झारखण्ड राज्य भी अस्तित्व में आया था। वे अटल जी ही थे, जिन्होंने देश की सरकार में सबसे पहले अलग आदिवासी मंत्रालय का गठन कर आदिवासी हितों को देश की नीतियों से जोड़ी था।
बिरसा मुंडा के आजादी की लड़ाई में योगदान का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘धरती आबा’ की आजादी की लड़ाई भारत की आदिवासी समाज की पहचान को मिटाने वाली सोच के भी खिलाफ थी। आधुनिकता के नाम पर विविधता पर हमला, प्राचीन पहचान और प्रकृति से छेड़छाड़, भगवान बिरसा जानते थे कि यह समाज के कल्याण का रास्ता नहीं है। वे आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे और बदलावों की वकालत करते थे। उन्होंने अपने ही समाज की कुरीतियों की कमियों के खिलाफ बोलने का साहस दिखाया।
उन्होंने कहा कि आज सरकार इतिहास के अनगिनत पृष्ठों में खो गए आजादी के नायकों की गाथाओं को पुनर्जीवित कर रही है, जिन्हें बीते दिनों भूला दिया गया था। गुलामी का कोई कालखंड ऐसा नहीं रहा है जिसमें कोई आदिवासी आंदोलन न चल रहा हो। आदिवासियों ने अंग्रेजी सत्ता को हर बार चुनौती दी है। उनका इतिहास देश को नई ऊर्जा देगा।
उल्लेखनीय है कि भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय झारखंड राज्य सरकार के सहयोग से रांची के पुराने केंद्रीय कारावास में बनाया गया है, जहां भगवान बिरसा मुंडा ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह राष्ट्र और जनजातीय समुदायों के लिए उनके बलिदान को श्रद्धांजलि होगी।
जनजातीय संस्कृति एवं इतिहास को संरक्षित और बढ़ावा देने में संग्रहालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह भी प्रदर्शित करेगा कि किस तरह आदिवासियों ने अपने जंगलों, भूमि अधिकारों, अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
संग्रहालय भगवान बिरसा मुंडा के साथ, शहीद बुधु भगत, सिद्धू-कान्हू, नीलांबर-पीतांबर, दिवा-किसुन, तेलंगा खड़िया, गया मुंडा, जात्रा भगत, पोटो एच, भगीरथ मांझी और गंगा नारायण सिंह जैसे विभिन्न आंदोलनों से जुड़े अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में भी जानकारी प्रदर्शित करेगा। संग्रहालय में भगवान बिरसा मुंडा की 25 फीट की प्रतिमा और क्षेत्र के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की 9 फीट की प्रतिमा मौजूद होगी।
स्मृति उद्यान को 25 एकड़ क्षेत्र में विकसित किया गया है और इसमें संगीतमय झरना, खान-पान परिसर, बाल उद्यान, इन्फिनिटी पूल, गार्डन और अन्य मनोरंजन सुविधाएं उपलब्ध होंगी। कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा भी उपस्थित रहे।
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