भोपाल। मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) के महाकौशल इलाके में 2018 के चुनाव में कांग्रेस (Congress) ने अहम बढ़त के साथ 15 साल बाद प्रदेश में 15 महीने के लिए सत्ता हासिल की थी। इसी वजह से इस बार भाजपा का महाकौशल पर खास ध्यान है। 8 जिलों की 38 सीटों के नतीजे लगभग यह तय कर देंगे कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी।
17 अगस्त को घोषित भाजपा के 39 उम्मीदवारों की पहली सूची में सबसे ज्यादा 11 प्रत्याशी इसी इलाके की हारी हुई सीटों के हैं। दोनों ही दल महाकौशल के जरिए विंध्य और बुंदेलखंड (Bundelkhand) को भी साधने की कोशिश में हैं। माना जाता है कि महाकौशल की तर्ज पर ही विंध्य और बुंदेलखंड भी व्यवहार करता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है भाजपा ने चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले ही 39 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर मास्टर स्ट्रोक मारा है। आदिवासी सीटों पर फोकस 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को महाकौशल से निराशा हाथ लगी थी। इसकी सबसे बड़ी वजह आदिवासियों की नाराजगी मानी गई थी। कांग्रेस ने क्षेत्र के आठ जिलों में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 13 सीटों में से 11 पर जीत हासिल की थी जबकि दो सीटों पर ही भाजपा को जीत मिली थी।
इसी कमी को दुरुस्त करने के लिए भाजपा का फोकस पूरी तरह आदिवासियों पर है। 2018 में कांग्रेस ने कमलनाथ को सीएम का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा था। इससे उनके गृह जिले छिंदवाड़ा की सभी सात सीटें कांग्रेस ने जीत ली थीं। जबलपुर जिले में कांग्रेस को आठ में से चार सीटें मिलीं थीं।
शीर्ष नेतृत्व ने संभाली कमान
महाकौशल का किला फतह करने के लिए दोनों पार्टियों ने इस बार शीर्ष नेतृत्व को मैदान में उतार दिया है। पिछले तीन माह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) तीन बार महाकौशल और आसपास के इलाकों का दौरा कर चुके है। आदिवासी वोटरों की बहुलता वाले महाकौशल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी लगातार चक्कर लगा रहे है। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते भी पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
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