नई दिल्ली: देश में आम चुनाव का महामुकाबला नतीजों की घोषणा के साथ ही अपने अंजाम तक पहुंच चुका है. नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस ने भाजपा की अगुवाई में स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है. वहीं, इंडिया गठबंधन भी काफी अच्छी स्थिति में सामने आया है. एनडीए में शामिल भाजपा को अकेले 240 सीटें मिली हैं, जबकि सहयोगी दल टीडीपी को 16 और जेडीयू के पास 12 सीटें हैं. अन्य घटक दलों को मिलाकर एनडीए पूर्ण बहुमत में पहुंच रहा है. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है.
वहीं, इंडिया में कांग्रेस के पास 99, सपा के पास 37 सीटें हैं. तृणमूल कांग्रेस की 29 सीटें भी इसमें शामिल की जा सकती हैं. अन्य घटक दलों को भी मिला लें तो भी आंकड़ा बहुमत के करीब भी नहीं पहुंचता. इसके बावजूद इंडिया के कुछ नेता भी सरकार बनाने का दावा करते नजर आ रहे हैं. इसलिए सवाल उठता है कि क्या इंडिया गठबंधन भी दावा पेश कर सकता है. आइए जानने की कोशिश करते हैं.
देश में तय नियमों के अनुसार, सरकार बनाने का दावा कोई भी यूं ही नहीं पेश नहीं कर सकता है. सबसे पहले सरकार बनाने का हक सबसे अधिक संख्या वाले राजनीतिक दल के पास होता है. इस मामले में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है. फिर उसकी अगुवाई वाले गठबंधन के पास पूर्ण बहुमत है. यानी नियम के अनुसार सरकार बनाने का पहला अधिकार एनडीए के पास ही है.
अगर भाजपा का किसी के साथ गठबंधन नहीं भी होता तो भी वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में केंद्र में सरकार बनाने की हकदार होती. इसलिए नियमत: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अब भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगी. चूंकि एनडीए के पास बहुमत भी है और भाजपा सबसे बड़ा दल भी, इसलिए यह बात बेमानी है कि इंडिया भी केंद्र में सरकार बनाने का दावा कर सकता है.
नियमों के अनुसार, यह जरूर है कि राष्ट्रपति ने जिस दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया है, अगर वह दल मना कर दे तो जरूर दूसरे सबसे बड़े दल को बुलाया जा सकता है. इसकी संभावना इसलिए भी कम है, क्योंकि भाजपा सरकार बनाने की घोषणा कर चुकी है. दिल्ली में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हो रही है और आठ जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार शपथ लेने की सूचना आ रही है. ऐसे में फिलहाल इंडिया के पास सरकार बनाने के लिए दावा पेश करने का कोई विकल्प नहीं है.
वैसे देश में नई केंद्र सरकार के गठन को लेकर हलचल काफी तेज हो चुकी है. एनडीए में शामिल दलों की महत्वाकांक्षा बढ़ी हुई दिख रही है. क्योंकि भाजपा के पास इस बार अकेले दम पर बहुमत नहीं है, इसलिए एनडीए के घटक दलों की भूमिका बढ़ गई है. सभी भाजपा को दबाव में लेकर अपनी-अपनी शर्तें मनवाने की कोशिश कर रहे हैं. दिल्ली में भाजपा की अगुवाई में एनडीए की बैठक में टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जदयू के नीतीश कुमार के साथ ही अन्य घटक दलों के नेता शामिल होंगे. इसके बाद सरकार का स्वरूप तय होगा.
मान लीजिए कि किसी कारण से एनडीए के घटक दलों में से कुछ या सभी भाजपा को समर्थन देने से मना कर देते हैं, तब भी सरकार बनाने का पहला अधिकार उसी के पास रहेगा. यानी राष्ट्रपति तब भी भाजपा को ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगी. ऐसे में इंडिया दावा कर सकता है कि भाजपा के पास बहुमत नहीं है, इसलिए उसे सरकार बनाने दिया जाए. फिर भी ऐसा नहीं होगा और भाजपा को सरकार बनाने का मौका देने के साथ ही सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा जाएगा. इसलिए इंडिया के सामने यह विकल्प भी नहीं बचता.
इंडिया के सामने इकलौता विकल्प यह है कि भाजपा या तो सरकार न बनाए या बनाए तो वह सदन में बहुमत न साबित कर पाए. इसके बाद ही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिलेगा. यह मौका मिलने के बाद अगर कांग्रेस की अगुवाई में केंद्र में इंडिया की सरकार बनती है तो उसे बहुमत के लिए सभी घटक दलों के साथ ही दूसरे अन्य दलों का समर्थन चाहिए होगा. साथ ही सरकार बनाने के लिए 272 सांसदों का आंकड़ा पूरा करने के लिए इंडिया सरकार को सदन में बहुमत साबित करने के लिए भी कहा जा सकता है. कुल मिलाकर फिलहाल इंडिया के नेताओं के सरकार बनाने के दावों में कोई दम दिखाई नहीं दे रहा है.
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