लंदन। यूक्रेन संकट अभी पूरी तरह टला नहीं है। ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन का कहना है कि यूक्रेन सीमा से रूसी सेना की वापसी के बहुत मामूली सबूत हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस से फोन पर चर्चा में यह बात कही। इस बीच, अमेरिका ने भारत से उम्मीद जताई है। उसने कहा है कि यदि यूक्रेन पर रूसी हमला हुआ तो भारत उनके साथ खड़ा होगा।
पीएम जॉनसन के दफ्तर ने दोनों नेताओं के बीच हुई बातचीत को लेकर एक बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि दोनों नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत अपने दायित्वों का पालन करने और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की जिम्मेदारी को दोहराया।
विनाशकारी व दूरगामी परिणाम होंगे
जॉनसन व गुतेरस ने यह भी सहमति प्रकट की कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के ‘विनाशकारी और दूरगामी परिणाम’ होंगे। दोनों नेताओं के बीच यूक्रेन की सीमाओं पर उत्पन्न संकट पर विस्तार से चर्चा हुई। जॉनसन ने गुरुवार को होने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की पूर्व संध्या पर यूएन प्रमुख को कॉल किया। रूस ने यूक्रेन सीमा पर एक लाख से ज्यादा सैनिकों व भारी गोलाबारूद व लड़ाकू विमानों को तैनात कर रखा है।
अमेरिका को भारत से उम्मीद
उधर, वॉशिंगटन से खबर है कि यूक्रेन संकट को लेकर अमेरिका को भारत से सहयोग की दरकार है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि भारत नियम आधारित विश्व व्यवस्था के प्रति वचनबद्ध है। अमेरिका उम्मीद करता है कि यदि यूक्रेन पर रूसी हमला हुआ तो भारत हमारे साथ खड़ा होगा। प्राइस ने कहा कि हाल ही में मेलबोर्न में संपन्न क्वाड देशों की विदेश मंत्री स्तरीय बैठक में रूस और यूक्रेन को लेकर विचार विमर्श हुआ था।
मेलबोर्न में मेजबान आस्ट्रेलिया, भारत, जापान व अमेरिका के विदेश मंत्रियों की हाल ही में बैठक हुई थी। उस बैठक में इस बात पर एक मजबूत सहमति थी कि यूक्रेन संकट का राजनयिक व शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए। क्वाड के मुख्य लक्ष्यों में से एक नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को सुदृढ़ करना है। नियम आधारित व्यवस्था भारत-प्रशांत क्षेत्र, यूरोप और अन्य सभी दूर समान रूप से लागू होना चाहिए। एक सवाल के जवाब में प्राइस ने कहा कि हम जानते हैं कि हमारे भारतीय साझेदार नियम आधारित विश्व व्यवस्था के प्रति वचनबद्ध हैं। इस व्यवस्था के नियम हैं, इनमें से एक यह है कि ताकत के दम पर सीमाओं में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।
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