नई दिल्ली। श्राद्ध पक्ष (Shraddha Paksha) या पितृ पक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से पितृ पक्ष श्राद्ध आरंभ होता है। इस वर्ष 10 सितंबर पूर्णिमा को ऋषि तर्पण और श्राद्ध होगा इसके बाद 11 सितंबर से पितृ पक्ष (Pitru Paksh ) श्राद्ध आरंभ हो जाएगा जो 25 सितंबर तक चलेगा। पितृ पक्ष का नाम लेते ही हमारे मन में आस्था और श्रद्धा स्वतः ही प्रकट हो जाती है। पितृ अर्थात हमारे पूर्वज, जो अब हमारे बीच में नहीं हैं, उनके प्रति सम्मान का समय होता है पितृपक्ष अर्थात महालय। अपने पूर्वजों को समर्पित यह विशेष समय आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से प्रारंभ होकर अमावस्या तक के 16 दिनों की अवधि पितृ पक्ष अर्थात श्राद्ध पक्ष कहलाती है। हिंदू धर्म पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्वास रखता है और इसलिए ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पितृ अर्थात हमारे पूर्वज जो अपना देह त्याग चुके होते हैं, पृथ्वी लोक पर अपने सगे-संबंधी और परिवार के लोगों से अपनी मुक्ति और भोजन लेने के लिए मिलने आते हैं। वास्तव में अपने पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक (reverently) किया हुआ कार्य ही श्राद्ध है।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध जरूरी
श्राद्ध एक ऐसा कर्म है जिसमें परिवार के दिवंगत व्यक्तियों (मातृकुल और पितृकुल), अपने ईष्ट देवताओं, गुरूओं आदि के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि हमारी देह में मातृ और पितृ दोनों ही कुलों के गुणसूत्र विद्यमान होते हैं। इसलिए अपने दिवंगतजनों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना हमारा कर्तव्य बन जाता है। उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह (Bhadrapada month) की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या (amaavasya) (जिसे सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं) तक किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार पितरों को लक्ष्य कर शास्त्रसम्मत विधि-विधान से श्रद्धापूर्वक जो भी ब्राह्मणों को दिया जाता है वह श्राद्ध कहलाता है।
सनातन परंपरा में पितरों की आत्मा की शांति व उन्हें मोक्ष प्राप्ति की कामना के लिए उनके लिए श्राद्ध करना बहुत ही आवश्यक माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों (mythological texts) के अनुसार श्राद्ध करने की भी विधि होती है। यदि पूरे विधि विधान से श्राद्ध कर्म न किया जाए तो मान्यता है कि वह श्राद्ध कर्म निष्फल होता है और पूर्वज़ों की आत्मा अतृप्त ही रहती है।
दोपहर को आरंभ करें पूजा
श्राद्ध पूजा दोपहर के समय आरंभ करनी चाहिए। योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें व पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, काले कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिये व इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए। मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए। मान्यता है कि इस प्रकार विधि विधान से श्राद्ध पूजा कर जातक पितृ ऋण से मुक्ति पा लेता है व श्राद्ध पक्ष में किए गए उनके श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं व आपके घर परिवार व जीवन में सुख, समृद्धि होने का आशीर्वाद देते हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved