भोपाल। कोरोना संक्रमण और आवागमन के सीमित साधन होने के कारण तीर्थ स्थलों पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या कम हुई है। 2 सितंबर से पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है। ऐसे में देश-विदेश से अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध करने उज्जैन आने वाले श्रद्धालु इस बार नहीं आ पा रहे हैं। लिहाजा इस बार श्रद्धालु घर पर बैठकर ही श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। इसके लिए पुजारियों ने वीडियो कॉल के जरिये पूजन आदि की व्यवस्था की है। कई लोगों ने इसकी अग्रिम बुकिंग भी करा ली है।
शहर के रामघाट स्थित पिशाच मोचन तीर्थ, अंकपात मार्ग स्थित गया कोठा तीर्थ, शिप्रा तट के सिद्धवट घाट पर श्राद्ध कर्म करने की मान्यता है। धर्म शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इन स्थानों पर पितरों का श्राद्ध करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है। लिहाजा यहां कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड, सिंगापुर आदि स्थानों के श्रद्धालु भी आते हैं। कोरोना काल में यहां श्राद्ध पक्ष में एक नया नजारा देखने को मिल रहा है। कोरोना के चलते जो लोग उज्जैन में आकर तर्पण या अन्य विधि नहीं कर पा रहे हैं, उनके लिए यहां के पंडितों ने ऑनलाइन और वीडियो कॉल के जरिए तर्पण कराने की व्यवस्था की है। जिसमें दिल्ली,उप्र,बिहार सहित अन्य राज्य और कनाडा जैसे देशों में बैठे श्रद्धालु भी शामिल हैं, जो सोशल साइट के माध्यम से अपने पूर्वजों का तर्पण करवा रहे हैं।
ऑनलाइन ट्रांसफर हो रही दक्षिणा
इन दिनों घाट पर बैठे पंडित अपने मोबाइल पर ऑनलाइन मंत्र पढ़ रहे हैं और यजमान अपने घर में ही बैठकर बात कर रहे हैं। पूजन की दक्षिणा भी यजमान ऑनलाइन ही पंडित को बैंक अकाउंट में डाल रहे हैं। कई श्रद्धालु इस परंपरा को निभाते आए हैं, आज के समय में ऐसे कई यजमान हैं, जो धार्मिक परंपरा में विश्वास रखते हैं और पूर्वजों का नियमित श्राद्ध कराना चाहते हैं। वो कोरोना काल में भी व्हाट्सएप वीडियो कॉलिंग और अन्य प्लेटफॉर्म के जरिए ऑनलाइन ही श्राद्ध कर रहे हैं। ऐसे होती है पूजासबसे पहले पंडित मोबाइल पर ऑनलाइन मंत्र पढ़ते हैं और उधर यजमान अपने घर के पूजन वाले स्थल पर अपना लैपटॉप खोलकर बैठता है। पंडितों के बताए निर्देश के अनुसार यजमान पूजन विधि संपन्न करते हैं। पूजन शुरू करने से पहले बाकायदा फोन पर यजमान को एक बार पूरी विधि समझाई जाती है, ताकि पूजा के दौरान उसे समझने में परेशानी ना आए।
तर्पण-पिंडदान के लिए क्या है मान्यता
पंडित राजेश त्रिवेदी ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में उज्जैन का अपना महत्व है। आदि अनादि काल में भगवान राम वनवास के दौरान उज्जैन पहुंचे थे और उसी दौरान उन्होंने अपने पिता दशरथ की मृत्यु के बाद राम घाट पर तर्पण किया था। इसलिए सिद्धवट घाट का अपना अलग महत्व इसलिए भी है, क्योंकि घाट का वर्णन स्कंद पुराण में भी है। यही वजह है कि श्राद्ध पक्ष में दूर-दूर से तर्पण और पूजन के लिए श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं। कोरोना के इस दौर में जो लोग उज्जैन नहीं आ सकते हैं, वो ऑनलाइन ही पिंडदान कर रहे हैं। इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है।
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