नई दिल्ली: काशी में ज्ञानवापी, मथुरा में ईदगाह मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद के बाद अब दिल्ली का कुतुब मीनार सुर्खियों में है. कुतुब मीनार को लेकर चल रहा विवाद कोर्ट पहुंच चुका है. इसको लेकर इतिहासकार से लेकर शोधकर्ता तक अलग-अलग तथ्य और तर्क पेश कर रहे हैं, लेकिम हम आपको एक ऐसी रिपोर्ट के बारे में बता रहा हैं, जिसमें साक्ष्यों के साथ कुतुब मीनार को लेकर कई बड़े खुलासे किए गए हैं.
इस रिपोर्ट को ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) द्वारा साल 1871-72 में तैयार किया गया था. इस रिपोर्ट को ASI के वरिष्ठ ऑफिसर जेडी बेगलर ने तैयार किया था. इसमें कई ऐसे तथ्य मौजूद हैं, जो इस बात को साबित करते हैं कि उस परिसर में बनाई गई मस्जिद से पहले एक मंदिर था. साथ ही साथ ऐसे साक्ष्य भी हैं, जो इस ओर इशारा करते हैं कि सभी चीजों की बनावट हिंदू संस्कृति की है. वहीं, मौजूदा वक्त में पुरातत्व विभाग से जुड़े एक्सपर्ट भी मानते हैं कि जेडी बेगलर के शोध में सामने आए तथ्यों को नकारा नहीं जा सकता.
इस रिपोर्ट के दूसरे पन्ने के पहले अनुच्छेद में यह कहा गया है कि कुतुब मीनार के परिसर में जो स्तंभ मौजूद हैं, वो इस बात की गवाही देते हैं कि यह मूल रूप से एक हिंदू मंदिर colonnade (खंभे) हैं और उनकी वर्तमान लंबाई किसी हिंदू मंदिर के colonnade के बराबर है.
जेडी बेगलर ने शोध में दावा किया कि मस्जिद की बाहर और अंदर की दोनों दीवारों पर हिंदू सभ्यता से जुड़े प्रतीक मौजूद हैं. कोने के गुंबद पर भी हिंदू संस्कृति की झलक साफ दिखती है. भले ही मीनार का निर्माण मुस्लिम शासकों द्वारा किया गया था और इसकी नींव मंदिर की दीवारों के लंबे समय बाद रखी गई थी. खुदाई के दौरान पाया गया कि बाहरी दक्षिण द्वार, उन अधिरचनाओं की नींव और कारीगरी से मेल खाती है. इसके अलावा अंदर के उत्तरी द्वार पर भी कई सारे बदलाव किए जाने के सबूत मिले हैं.
जेडी बेगलर का उस समय तर्क था कि हिंदू स्वयं, स्तंभ पर अपना दावा करते हैं और मानते हैं कि इसे पृथ्वीराज ने अपनी बेटी को गंगा देखने के लिए बनवाया था. खुदाई के दौरान खाइयों में काली स्लेट में लक्ष्मी के दो चित्र और कुछ पुराने मिट्टी के दीये भी मिले हैं. स्तम्भ को ही विष्णु की भुजा कहा जाता है.
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