नई दिल्ली। देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों ने आसमान छू लिया है। कोरोना काल में पेट्रोल की कीमतों ने लोगों को हलकान किया हुआ है। पिछले महीने से हर दूसरे दिन ईंधन की कीमतें बढ़ रही हैं। सरकारी तेल विपणन कंपनियां (ओएमसी) अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में मजबूती के कारण कीमत बढ़ा रही हैं। सरकार भी तेल पर लगने वाले टैक्स में कटौती करने के पक्ष में नहीं है। मई के पहले सप्ताह से 35 से अधिक बार पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान ईंधन की दरों में सात से आठ रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई।
ओएमसी पर दरों को बनाए रखने का दबाव है क्योंकि देश में पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। हालांकि, यह संभावना नहीं है कि वे वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि को देखते हुए दरों को बनाए रखने में सक्षम होंगे।
इस महीने पेट्रोल और डीजल की कीमतें और बढ़ने की उम्मीद है। इसकी वजह कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतें होंगी। कच्चे तेल की कीमत में इजाफा इसलिए होगा क्योंकि सऊदी अरब और यूएई में तेल के उत्पादन को लेकर के ठन गई है। ओपेक+ तेल के उत्पादन पर नियंत्रण चाहता है, जिसपर यूएई को एतराज है।
ब्रेंट क्रूड ऑयल अक्तूबर 2018 के बाद पहली बार 77 डॉलर के पार निकला है। उत्पादन बढ़ाने पर ओपेक+ की बात नहीं बनी। साथ ही अगली बैठक की तारीख अभी तय नहीं हुई है। ओपेक+ के सदस्य सऊदी अरब और रूस अगस्त से वर्ष के अंत तक प्रतिदिन 4,00,000 बैरल तेल उत्पादन बढ़ाने के पक्ष में हैं। यूएई अभी तक इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुआ है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, यदि तेल उत्पादन और आपूर्ति का स्तर बढ़ती वैश्विक मांग के अनुरूप नहीं बढ़ता है, तो इससे कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।
हाल ही में भारत ने कहा था कि कच्चे तेल का मौजूदा मूल्य काफी चुनौतीपूर्ण है और दरों को थोड़ा नीचे लाए जाने की जरूरत है। तेल निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) की बैठक से पहले भारत ने कहा कि कहीं ऐसा न हो कि तेल की ऊंची कीमत का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो उपभोग आधारित पुनरुद्धार की प्रक्रिया शुरू हुई है, उस पर पड़ने लगे। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि भारत कीमत को लेकर संवेदनशील बाजार है और वह जहां कहीं भी प्रतिस्पर्धी दर होगी, वहां से तेल खरीदेगा।
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