नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दायर की गई है जिसमें केंद्र को सच्चर समिति (Sachar Committee) की रिपोर्ट पर आगे बढ़ने से रोकने का आग्रह किया गया है। यह रिपोर्ट नवंबर 2006 में सौंपी गई थी। यूपीए सरकार (UPA Government) ने मार्च 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया था। समिति को देश में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार करनी थी।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के 5 लोगों की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि 9 मार्च 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से समिति के गठन के लिए जारी अधिसूचना में ‘कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि यह मंत्रिमंडल के किसी निर्णय के बाद जारी की जा रही है।’
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘इस तरह, यह स्पष्ट है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति जानने के लिए खुद अपनी तरफ से ही निर्देश जारी किया, जबकि अनुच्छेद 14 और 15 में कहा गया है कि किसी धार्मिक समुदाय के साथ अलग से व्यवहार नहीं किया जा सकता।’
याचिका में कहा गया है कि इस तरह के आयोग का गठन करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत राष्ट्रपति (President) के पास है। याचिका में दावा किया गया है कि समिति की नियुक्ति अनुच्छेद 77 का उल्लंघन थी और यह ‘असंवैधानिक तथा अवैध’ है।
याचिका में कहा गया है कि पूरे मुस्लिम समुदाय की पहचान सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में नहीं की गई है लिहाजा मुसलमानों को एक धार्मिक समुदाय के रूप में, पिछड़े वर्गों के लिए उपलब्ध लाभों के हकदार ‘विशेष वर्ग’ नहीं माना जा सकता।
याचिका में आग्रह किया गया है कि केंद्र को मुस्लिम समुदाय के लिए कोई योजना शुरू करने के लिए रिपोर्ट का क्रियान्वयन करने से रोका जाए।
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