मुंबई। कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज बहस का मुद्दा है। कुछ देशों में इसे स्वीकृत किया गया है तो बहुत से देशों में अभी तक इस पर सहमति नहीं बन पाई है। भारत भी उन देशों में से है जहां कोरोना की बूस्टर डोज स्वीकृत नहीं की गई है। इसके बावजूद खबर आ रही है कि मुंबई के कई अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों व नेताओं को बूस्टर डोज लगाई गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से सामने आई खबर के तहत बूस्टर डोज के रूप में वैक्सीन वायल की 11वीं डोज का इस्तेमाल किया गया है। वहीं कुछ अस्पतालों में वैक्सीन वायल की उस डोज का इस्तेमाल किया गया है, जिसे लेने वाला कोई नहीं था। अस्पतालों का कहना है कि कोविशील्ड वैक्सीन का इस्तेमाल बूस्टर डोज के रूप में किया गया है। उनका कहना है कि स्वास्थ्य कर्मियों में संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। इसलिए वे उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंतित हैं।
खबर सामने आने के बाद एडिशनल चीफ सेक्रेटरी डॉ. प्रतीप व्यास का कहना है कि यह लोगों को गुमराह करने के लिए है। हो सकता है कि कुछ केस में वैक्सीन की तीसरी डोज फायदा करे। इसके बावजूद लोगों को वैज्ञानिक नतीजों का इंतजार करना चाहिए, भावनाओं में न बहें। एडिशनल म्युनिसिपल कमिश्नर सुरेश काकानी का कहना है कि बूस्टर डोज लेने के लिए किसी प्रकार के रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं है, लेकिन मेरा सवाल यह है कि जो यह डोज ले रहे हैं वे इस नतीजे पर कैसे पहुंचे कि यह उनके लिए फायदेमंद रहेगा।
हालांकि कोरोना वायरस से बचाव के लिए पूरे देश में स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीके की बूस्टर डोज लगाने पर विचार चल रहा है। केंद्र सरकार जल्द ही अंतिम निर्णय लेगी। मेडिकल जर्नल नेचर में प्रकाशित कई देशों के वैज्ञानिकों के संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि कोरोना टीका लेने के बाद भी स्वास्थ्य कर्मचारी डेल्टा वैरिएंट के चलते संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। हालांकि ज्यादातर स्वास्थ्य कर्मचारियों में दोबारा संक्रमण के बाद गंभीर लक्षण नहीं दिखे हैं, लेकिन उन्हें आइसोलेशन में जाना पड़ रहा है।
अध्ययन में शामिल रहे नई दिल्ली स्थित आईजीआईबी के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल ने कहा है कि इस स्थिति के कारण स्वास्थ्य कर्मचारियों की संभावित कमी को रोकने के लिए उन्हें जल्द से जल्द बूस्टर डोज देना जरूरी है। वहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, बूस्टर डोज पर वैज्ञानिक साक्ष्य कम होने के चलते भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की एक टीम कार्य कर रही है।
टीकाकरण को लेकर गठित राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समिति के एक सदस्य ने भी बताया कि कोविशील्ड और कोवाक्सिन की बूस्टर डोज पर चर्चा चल रही है। वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर स्वास्थ्य कर्मचारियों को टीकाकरण के छह महीने बाद बूस्टर डोज देने का निर्णय हो सकता है।
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