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    पेयजल की बजाए धीमा जहर पी रहे हैं हरियाणा में 17 जिलों के लोग – पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा

  • December 29, 2023


    चंडीगढ़ । पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा (Former Union Minister Kumari Sailja) ने कहा कि हरियाणा में (In Haryana) 17 जिलों के लोग (People of 17 Districts) पेयजल की बजाए (Instead of Drinking Water) धीमा जहर पी रहे हैं (Are Drinking Slow Poison) । कुमारी सैलजा ने कहा कि एनजीटी की रिपोर्ट से खुलासा हो रहा है कि पेयजल में आर्सेनिक व फ्लोराइड की मात्रा कहीं अधिक है, जिसे देखकर लगता है कि 17 जिलों के लोग तो पेयजल की बजाए धीमा जहर पी रहे हैं। इससे पहले कैग और जल जीवन मिशन की रिपोर्ट भी प्रदेश में पेयजल की गुणवत्ता पर सवाल खड़े कर चुकी हैं।


    मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि प्रदेश के लोगों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने में भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। प्रदेश के 22 में से 17 जिलों अंबाला, भिवानी, फरीदाबाद, झज्जर, जींद, करनाल, पानीपत, रोहतक, सिरसा, सोनीपत, यमुनानगर, महेंद्रगढ़, पलवल, पंचकूला, रेवाड़ी और कैथल के भू-जल में आर्सेनिक 0.05 से .50 मिलीग्राम और फ्लोराइड की मात्रा दो से पांच मिलीग्राम तक है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंड के मुताबिक पेयजल में आर्सेनिक की 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर और फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।

    पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आर्सेनिक के कारण सबसे अधिक गंभीर बीमारी कैंसर होने लगती है। आर्सेनिक के अधिक सेवन से मोटापा, हथेलियों, तलवों और पीठ के निचले हिस्से में दर्द, पेट दर्द, उल्टी, दस्त, असामान्य दिल की धडक़न, आंशिक पक्षघात, अंधापन, ऐंठन जैसी बीमारी होने लगती हैं। इसी तरह पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण गठिया रोग होने की संभावना अधिक रहती है।

    कुमारी सैलजा ने कहा कि पिछले दिनों कैग की रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि दूषित जल पीने से 2016-21 के दौरान प्रदेश में 14 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि जल जनित बीमारियों के 2901 मामले सामने आए। पेयजल के 25 नमूनों में से 23 में क्लोरीन की मात्रा बिल्कुल नहीं मिली। इससे पहले जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश के ग्रामीण जल आपूर्ति के स्त्रोतों, वाटर सप्लाई पाइंट के साथ ही सार्वजनिक और निजी जल निकायों से करीब 77 हजार सैंपल लिए थे। इनमें से 20194 नमूनों की जांच की गई, जिसमें से 13828 परीक्षण में फेल पाए गए। पानी के 5126 नमूनों में तो आर्सेनिक, मरकरी व यूरेनियम की मात्रा भी अधिक पाई गई।

    पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि स्वच्छ पेयजल देने के नाम पर प्रदेश सरकार साल भर में करीब 1700 करोड़ रुपये खर्च करती है, लेकिन जब पानी में क्लोरीन तक नहीं डाली जा रही है तो साफ है कि पूरा बजट आपसी मिलीभगत से भ्रष्टाचारियों की जेबों में पहुंच रहा है। तीन-तीन बड़ी रिसर्च रिपोर्ट से बड़े-बड़े दावे करने वाली गठबंधन सरकार की पोल पूरी तरह खुल चुकी है कि वह राज्य के लोगों को उनकी मूलभूत जरूरत स्वच्छ पेयजल तक उपलब्ध नहीं करवा पा रही है।

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