नई दिल्ली: बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ छिड़े आंदोलन ने नाम पर वहां कट्टरपंथी हिन्दू अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं. यहां हाल के दिनों में हिंदू समुदाय के लोगों पर हमले की 200 से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं. इन हमलों को लेकर भारत सहित दुनिया के कई देशों में हिन्दुओं की रक्षा को लेकर आवाज भी उठने लगी है. वहीं भारत में कई लोग इन घटनाओं पर बांग्ला भद्रलोक की चुप्पी पर सवाल उठाने लगे हैं.
प्रसिद्ध लेखर और अर्थशास्त्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा, ‘बांग्लादेशी हिंदुओं के साथ जो कुछ भी हो रहा है, उसके सामने बंगाली ‘बुद्धिजीवियों’ की चुप्पी घृणित और अप्रत्याशित दोनों है. ‘आंतेल’ (बांग्ला भद्रलोक) के पास ब्रह्मांड के हर मुद्दे पर एक राय होती है, सिवाय उन मुद्दों के जहां रीढ़ की हड्डी की ज़रूरत होती है. उन्होंने नेताजी के साथ अपनी गद्दारी को उचित ठहराया; उन्होंने श्री अरबिंदो को एक ‘साधु’ तक सीमित कर दिया, उन्होंने कोलकाता की हत्या कर दी.’
वहीं उसने इस पोस्ट पर कई लोगों की प्रतिक्रिया आई है. इन्हीं में से एक केन नामक यूजर ने लिखा, ‘बंगाली बुद्धिजीवी (आंतेल), कवि लेखक वर्ग और स्वतंत्रता सेनानियों, नेताजी, प्रीतिलता, अरबिंदो से उनके संबंध को इस तरह आसानी से समझाया जा सकता है: ‘आमार दादुर हाथी छिलो, आज आमरा शिकोर निये घुरछी. यानी मेरे दादा के पास हाथी थे. अब मैं जंजीरों के साथ दिखावा करता हूं.’
वहीं द कमेंट्री नामक एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘अवार्ड वापसी केवल भारतीय अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के लिए आरक्षित है. भगवान का शुक्र है, मोदी ने उन्हें अनदेखा कर दिया जब वे ऐसा कर रहे थे.’ जबकि शर्मिष्ठा शर्मा लिखती हैं, ‘आपकी भावनाओं और टिप्पणियों से पूरी तरह सहमत हूं! बंगाली ‘बुद्धिजीवी’ कम्युनिस्ट और वोक्स (जागरूक लोगों) के अलावा कुछ नहीं हैं. वे अपनी विरासत और मूल्यों से मीलों दूर हैं. उन्होंने बंगाली नाम और संस्कृति को नष्ट कर दिया है.’
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved