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    रीवा में यहां गायब हो जाते हैं लोग! नहीं मिलता नामोनिशान, आज तक नहीं सुलझा रहस्य

  • September 25, 2024

    रीवा: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के रीवा शहर (Rewa City) से 20 किमी दूर गोविंदगढ़ (Govindgarh) नाम का कस्बा है. गोविंदगढ़ में खंदो माता मंदिर (Khando Mata Temple) है, जो न केवल एक धार्मिक स्थान है, बल्कि इसे टूरिस्ट स्पॉट के रूप में भी जाना जाता है. खंदो में खूबसूरत लैंडस्केप्स हैं, बड़ी-बड़ी चट्टानें और प्राकृतिक जलस्रोत भी हैं. खंदो मंदिर के पास कई छोटे-छोटे जलकुंड हैं, जो दिखने में जितने खूबसूरत हैं, उतने ही जानलेवा भी हैं. असल में, खंदो कुंड बदनाम हैं क्योंकि यहां तैरने वाले अचानक गायब हो जाते हैं. कभी डूबने वालों का शव मिलता है, तो कभी नहीं. आश्चर्य की बात यह है कि सब कुछ जानने के बाद भी लोग इन कुंडों में नहाने के लिए उतरते हैं और मौत को निमंत्रण देते हैं.

    खंदो कुंड के बाहर एक बड़ा चेतावनी बोर्ड लगा है, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि कुंड में न उतरें. फिर भी कुछ लोग इसे नेचुरल स्विमिंग पूल मानकर उतर जाते हैं और उछल-कूद करते हैं. कुछ ऐसे भी “शक्तिमान” टाइप लोग होते हैं जो चट्टानों से छलांग लगाकर कुंड में डाइव मारते हैं. ऐसे लोग अक्सर डुबकी के बाद वापस जिंदा नहीं निकलते. बारिश के मौसम में कुंड का पानी और उफान मारता है, लेकिन यहां आने वाले दर्शनार्थियों को यह अधिक रोमांचक और साहसिक लगता है.


    स्थानीय लोग बताते हैं कि खंदो कुंड में अक्सर लोगों की मौत होती रहती है. यह उतना गहरा नहीं है, फिर भी बड़े-बड़े तैराक यहां डूबकर मर जाते हैं. अधिकतम इन कुंडों की गहराई 4 फीट से लेकर 8 फीट तक हो सकती है. आखिर क्या वजह है कि तैराकी सीखे हुए लोग भी यहां तैर नहीं पाते? स्थानीय लोगों का मानना है कि खंदो कुंड में उन मरे हुए लोगों की आत्माएं रहती हैं, जो जिंदा लोगों को खींच लेती हैं और तब तक ऊपर नहीं आने देती जब तक उनकी मौत न हो जाए. हालांकि, ऐसी अंधविश्वासी बातों पर कोई विश्वास नहीं करता. खंदो कुंड के जानलेवा होने का कारण इनमे रहने वाली “सो-काल्ड” आत्माएं नहीं, बल्कि कुछ और है.

    पूरा खंदो पहाड़ की चट्टानों से बना हुआ है. यहां जगह-जगह पानी के स्त्रोत हैं और पानी जमीन के अंदर से निकलता है. बारिश के मौसम में तो पूरा खंदो पानी से भर जाता है. जहां-जहां प्राकृतिक जलधारा होती है, वहां निरंतर पानी के बहाव से जमीन कटने लगती है. चट्टानों में भी गड्ढे हो जाते हैं. पानी के प्रवाह से गुफाएं तक बन जाती हैं. यह एक-दो साल में नहीं, बल्कि लाखों-हजारों सालों की प्रक्रिया होती है. ‘पानी अपना रास्ता खुद बना लेता है’, चाहे वह चट्टान को काटना हो या धरती में बड़े-बड़े कुंडों का निर्माण करना.

    खंदो में जो कुंड हैं, वे भी पानी के निरंतर प्रवाह से बने हैं. ये आज के या 100-200 साल पुराने नहीं, बल्कि लाखों वर्ष पुराने हो सकते हैं. इन कुंडों के अंदर भी पानी के बहाव से कटी हुई दरारें हैं. कहीं-कहीं बहुत गहरे छेद भी हैं. ऊपर से ये भले ही नेचुरल स्विमिंग पूल जैसे लगें, लेकिन इनके अंदर कई दरारें, संधियां और बड़े-बड़े छेद होते हैं. जो कोई कुंड में अधिक उछल-कूद मचाता है या ऊंची जगह से छलांग लगाता है, उसका पैर इन्हीं दरारों में फंस जाता है और वह खुद को बाहर नहीं निकाल पाता. कई लोग कुंड के अंदर बड़े गड्ढों में समा जाते हैं और पानी के साथ बहते हुए जमीन के अंदर चले जाते हैं. ऐसे लोगों का शव भी नहीं मिलता.

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