लखनऊ । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections) में हर बार की तरह ही इस बार भी सियासी रण में कई बाहुबली मैदान में रहे। कई छोटे दलों ने भी बाहुबलियों को मैदान में उतारा। लेकिन आज अनेक नाम ऐसे हैं जिन्हें जनता ने धूल चटा दी है।वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें जनता ने फिर सत्ता में बैठने और जनप्रतिनिधि बनने का मौका दिया है।
पूर्वांचल के बाहुबलियों में वयोवृद्ध हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) का नाम प्राय: आता है । 80 के दशक में दबंग चेहरे के रूप में सामने आए हरिशंकर तिवारी 22 साल विधायक रहे। कई बार मंत्री भी रहे। इस बार उनके बेटे विनय शंकर सपा के टिकट पर चिल्लूपार सीट से मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें भाजपा के राजेश त्रिपाठी के खिलाफ करीब 21,842 वोटों से हार का मुहं देखना पड़ा। पिछली बार विनय शंकर इस सीट पर बसपा के टिकट पर विधायक बने थे। वर्ष 2007 और 2012 में हरिशंकर चुनाव खुद हारकर सियासत से दूर हो गए, लेकिन उनके हाते की हनक बेटे विनय शंकर तिवारी ने बनाए रखी। इस सीट पर करीब 37 साल से ब्राह्मणों का कब्जा है। यहां ब्राह्मण के बाद दलित और निषाद निर्णायक भूमिका में हैं। यहां बसपा के राजेंद्र सेही तीसरे स्थान पर रहे।
मऊ सीट पर 1996 से लगातार विधायक मुख्तार अंसारी इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वह बांदा जेल में हैं। लेकिन लंबे समय से सियासी धमक रखने वाले अंसारी परिवार की नई पीढ़ी से दो उम्मीदवारों ने उनके बाहुबल को साबित किया है। बेटे अब्बास अंसारी सपा के साथ गठबंधन में शामिल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर मैदान में हैं और मऊ पर 37,785 के बड़े अंतर से जीत हासिल कर चुके हैं। मुस्लिम बहुल इस सीट पर मुस्लिमों के साथ अनुसूचित जाति का गठजोड़ मुख्तार अंसारी के सिर पर जीत का सेहरा सजाती रही है। यहां बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर और भाजपा के अशोक कुमार सिंह मैदान में हैं। इसी तरह अब्बास के चचेरे भाई मन्नू अंसारी मोहम्मदाबाद सीट से सपा के टिकट पर मैदान में उतरे और 5,689 वोटों से जीत हासिल की।
भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में विधानसभा चुनाव के दौरान दो बाहुबलियों में सीधी जंग रही। संवेदनशील गोसाईंगंज विधानसभा सीट पर सपा से पूर्व विधायक अभय सिंह और भाजपा से पूर्व विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी की पत्नी आरती तिवारी मैदान में उतरीं। अभय सिंह ने इस सीट पर 12,774 वोटों से जीत हासिल कर ली। गौरतलब है कि फर्जी अंकपत्र मामले में सजा सुनाए जाने के बाद खब्बू तिवारी जेल में हैं। इन दोनों गुटों के बीच फायरिंग भी हो चुकी है। ऐसे में लोगों की निगाहें इस सीट पर लगी हुई हैं।
जौनपुर और आजमगढ़ के बाहुबलियों में पूर्व सांसद उमाकांत यादव और पूर्व सांसद रमाकांत यादव का नाम सुर्खियों में रहता है। इस बार पूर्व सांसद उमाकांत यादव चुनावी मैदान से दूर हैं। लेकिन आजमगढ़ के पूर्व सांसद रमाकांत यादव फूलपुर पवई से सपा के टिकट पर मैदान में उतरे। उन्होंने भाजपा के राम सूरत को 24,747 वोटों से शिकस्त दी। इसी सीट से उनके बेटे अरुणकांत यादव भाजपा के विधायक रहे हैं। सपा ने पिता रमाकांत यादव को विधानसभा का टिकट दे दिया तो बेटे ने चुनाव मैदान छोड़ दिया। यादव और मुस्लिम बहुल इस सीट पर बसपा ने शकील अहमद को मैदान में उतारा है।
भदोही के बाहुबली चेहरों में शुमार ज्ञानपुर के विधायक विजय मिश्रा को इस बार निषाद पार्टी ने टिकट नहीं दिया। वह प्रगतिशील मानव समाज पार्टी से मैदान में रहे। विजय मिश्रा जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, उन्हें इस सीट पर तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। यहां निषाद पार्टी के विपुल दुबे को 73,251 से ज्यादा वोट मिले। उधर सपा के रामकिशोर बिंद 66,550 वोट के साथ दूसरे स्थान पर आए।
पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी के धुर विरोधी बृजेश सिंह जेल में हैं। वह एमएलसी हैं। वह खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनके भतीजे सुशील सिंह भाजपा के टिकट पर चंदौली जिले की सैयदराजा सीट से 11,226 वोटों से जीतने में सफल रहे। सुशील पहली बार चंदौली के धानापुर से विधायक बने थे। इसके बाद सैयदराजा से भाजपा के विधायक हैं। इस बार वे चौथी बार विधायक बने हैं। सैयदराजा सीट पर बसपा ने अमित कुमार यादव और सपा ने मनोज कुमार को मैदान में उतारा था।
जौनपुर जिले में पहले रारी विधानसभा सीट हुआ करती थी। इसी सीट से सियासी सफर शुरू करने वाले धनंजय सिंह दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे। इन पर कई मुकदमे हैं। धनंजय की पत्नी श्रीकला रेड्डी जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। नए परिसीमन में बनी मल्हनी विधानसभा सीट यादव बहुल है। क्षत्रिय, ब्राह्मण के साथ निषाद निर्णायक भूमिका में होते हैं। वर्ष 2017 में धनंजय सिंह निषाद पार्टी से उतरे, लेकिन सपा के पारसनाथ यादव से पराजित हुए। पारसनाथ की मौत के बाद वर्ष 2020 के उपचुनाव में निर्दल मैदान में उतरे, लेकिन पारस के बेटे लकी यादव से पराजित हो गए। इस बार सपा ने विधायक लकी यादव को मैदान में उतारा है, जिन्होंने जदयू के टिकट पर उतरे धनंजय को 16,446 वोटों से हरा दिया। यहां भाजपा ने पूर्व सांसद केपी सिंह और बसपा ने शैलेंद्र यादव पर दांव लगाया है।
सियासत में भदरी राजघराने की धमक बनी हुई है। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजभैया 1993 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कुंडा से विधानसभा में पहुंचे। तबसे वे लगातार इस सीट पर जीत दर्ज करते रहे हैं। वे कल्याण सिंह व मुलायम सिंह की सरकार में मंत्री रहे। अखिलेश यादव की सरकार में भी वे कैबिनेट मंत्री रहे। हालांकि, अब सपा से उनकी राहें जुदा हैं। वे जनता दल-लोकतांत्रिक का गठन कर चुके हैं। पहली बार रघुराज प्रताप सिंह निर्दलीय के बजाय अपने दल से मैदान में हैं। उन्होंने इस सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार और अपने शागिर्द गुलशन यादव पर 68,843 वोटों से जीत हासिल की। भाजपा ने इस सीट पर सिंधुजा मिश्रा और बसपा ने मो. फहीम पर दांव लगाया था।
महराजगंज विधानसभा की नौतनवां से बसपा ने अमनमणि त्रिपाठी को मैदान में उतारा है, फिलहाल वे निषाद पार्टी के ऋषि और समाजवादी पार्टी के कुवंर कौशल सिंह से भी पीछे तीसरे नंबर पर आए। मधुमिता शुक्ला हत्याकांड से सुर्खियों में आए अमरमणि के बेटे अमनमणि त्रिपाठी पर भी पत्नी सारा की हत्या का आरोप है। यहां से निषाद पार्टी के ऋषि ने 90,122 वोट हासिल किए, जबकि दूसरे स्थान पर रहे कुंवर कौशल सिंह को 74,252 वोट मिले। अमनमणि सिर्फ 45, 963 वोट ही हासिल कर पाए। प्रयागराज में 90 की दशक में सामने आए बाहुबली अतीक अहमद ने सपा से सियासी सफर की शुरुआत की। लेकिन इस चुनाव में उन्हें तवज्जो नहीं मिली। औराई के पूर्व विधायक उदयभान सिंह उर्फ डॉक्टर सिंह उम्र कैद की सजा काट रहे हैं।
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