नई दिल्ली: गृह मंत्री ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) Bill, 2023); भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS) Bill, 2023); और भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक, 2023 (Bharatiya Sakshya (BS) Bill, 2023)पेश किए। ये सभी भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860), आपराधिक प्रक्रिया अधिनियम, 1973 (Criminal Procedure Act, 1973), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (the Indian Evidence Act, 1872 )की जगह लेंगे। साथ ही यह भी कहा कि परिवर्तन जल्द न्याय प्रदान करने और एक आधुनिक कानूनी प्रणाली बनाने के लिए किए गए थे।
गृह मंत्री ने कहा, बीएनएस विधेयक में ऐसे प्रावधान हैं जो राजद्रोह, मॉब लिंचिंग और नाबालिगों से बलात्कार जैसे अपराधों के लिए अधिकतम मृत्युदंड देने का प्रावधान रखेंगे। विधेयक में छोटे अपराधों के लिए दंड के रूप में पहली बार सामुदायिक सेवा प्रदान करने का भी प्रावधान है। विधेयक में अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियाँ, अलगाववादी गतिविधियाँ या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने जैसे नए अपराधों को भी सूचीबद्ध किया गया है।
धोखे से, गलत परिचय देकर किसी महिला से शादी करना या उसके साथ यौन संबंध बनाना अपराध की एक अलग श्रेणी में लाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पुलिस को 90 दिनों में शिकायत की स्थिति के बारे में सूचित करना होगा। अगर सात साल या उससे अधिक की सजा वाला कोई मामला वापस लेना है, तो ऐसा करने से पहले पुलिस को पीड़ित से परामर्श करना चाहिए।
आरोप पत्र (Charge Sheet) दाखिल करने के लिए अधिकतम 180 दिन की सीमा तय की जाएगी। पुलिस अनिश्चितकालीन दलील नहीं दे सकती कि जांच जारी है। पुलिस को आरोप पत्र दायर करने के लिए 90 दिन मिलेंगे, अदालत द्वारा अतिरिक्त 90 दिन दिए जा सकते हैं, लेकिन इससे अधिक नहीं दिया जाएगा।
अक्सर देखा जाता है कि सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों को साक्ष्य दर्ज करने के लिए अदालतों द्वारा बुलाया जाता है, हमने फैसला किया है कि वर्तमान में कार्यभार संभाल रहे एसपी (पुलिस अधीक्षक) फाइलों को देखने के बाद अदालत के समक्ष तथ्य पेश करेंगे। उन्होंने कहा कि तलाशी और जब्ती (Search & Seizure) की वीडियोग्राफी (Videography) अनिवार्य होगी और इसके बिना आरोप पत्र स्वीकार नहीं किया जाएगा।
अमित शाह ने कहा, “वर्तमान में गुनहगारों में सजा की दर कम है, हमारा लक्ष्य इसे 90% तक ले जाना है, सात साल की सजा वाले सभी अपराधों में साक्ष्य का फोरेंसिक संग्रह अनिवार्य होगा।” उन्होंने कहा कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो आरोपी के रिश्तेदारों को बताएगा कि उनके परिचित पुलिस हिरासत में है। कई बार पुलिस संदिग्धों को पकड़ती है और उन्हें कई दिनों तक अवैध हिरासत में रखती है। जानकारी ऑनलाइन और भौतिक दोनों तरीकों से प्रदान करनी होगी।
हमने निर्णय लिया है कि मौत की सज़ा को केवल आजीवन कारावास में बदला जा सकता है, आजीवन सज़ा को केवल सात साल तक के लिए माफ़ किया जा सकता है। सात साल की कैद को केवल तीन साल तक ही माफ किया जा सकता है। राजनीतिक रसूख वाले लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।
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