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पेला कमल, पाछे खमण, आणि नी संभले तो रमन-भ्रमण

May 07, 2024

  • गुजरात चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट… मतदान की गति धीमी… ग्रामीण खेती-बाड़ी में तो आदिवासी शादियों में जुटे

आज जब तक अग्निबाण आपके हाथ में पहुंचेगा गुजरात के मौसम का पारा 40 डिग्री को छूने की जल्दबाजी में होगा, वहीं सियासी पारा भी आज गरम ही रहेगा, जिसका कोई पैमाना नहीं है। गुजरात की 26 लोकसभा सीटों में से आज 25 पर सुबह से वोट डाले जा रहे हैं। एक इसलिए नहीं कि वह पहले ही भाजपा जीत चुकी है। सूरत में कांग्रेस प्रत्याशी के नीलेश कुंभानी का नामांकन निरस्त कर दिया था और बचे-कूचों ने अपना नामांकन वापस ले लिया।, इसलिए यहां से मुकेश दलाल चुनाव लड़े बिना ही सांसद बन गए। खैर मोदी का गृहप्रदेश होने के कारण यहां चुनाव की कुछ ज्यादा ही गहमागहमी है। आज सुबह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपने-अपने क्षेत्र में मतदान भी किया।

इस बार के प्रचार में भाजपा ने एक गुजराती मैसेज का खूब उपयोग किया, जिसमें लिखा है ‘पेला कमल, पाछे खमण…आणि नी संभले तो रमन-भ्रमण’ और यह मैसेज लोगों के मोबाइल तक पहुंचा भी, जिसकी चर्चा आज सुबह मतदान शुरू होने से शुरू हो गई है। मैसेज के माध्यम से कहा गया है कि सबसे पहले कमल को वोट दो और उसके बाद खमण खाओ यानि नाश्ता करो और अगर नहीं संभले तो फिर पांच साल तक इधर-उधर भागना पड़ेगा। हर गुजराती कह रहा है कि इस बार 400 पार का नारा है और गुजरात में सभी 26 सीटें भाजपा की झोली में जा रही है। बावजूद इसके छोटा उदयपुर जैसी लोकसभा सीट के बोडेली शहर में मतदान धीमी गति से चल रहा है। खेती-बाड़ी से फ्री हो चुके किसान और ग्रामीण मतदान केन्द्रों पर कम नजर आ रहे हैं। कारण गुजरात में अभी भी आदिवासी परिवारों में शादियां चल रही हैं और यह क्षेत्र आदिवासियों से भरा पड़ा है। शादी में शामिल होने के लिए यहां पूरा परिवार ही अपने रिश्तेदारों के यहां चला जाता है। इसका एक असर मतदान के प्रतिशत पर पड़ सकता है, क्योंकि इस बार संगठन ने फरमान जारी किया है कि हर सांसद प्रत्याशी को 5 लाख से अधिक वोटों से जीतना चाहिए। चूंकि यहां मौसम का पारा भी 40 डिग्री के आसपास ही मंडरा रहा है, इसलिए हो सकता है कि शाम को लोग घरों से निकले। मध्यप्रदेश की तरह ही गुजरात में मतदाताओं को घर से निकालकर मतदान केन्द्र तक ले जाने में भाजपा कार्यकर्ता अहम भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि यहां कांग्रेस बदलाव के नारे पर अपना चुनावी कैम्पेन कर चुकी है, लेकिन भाजपा के इस गढ़ को भेदना उसके लिए चुनौती ही साबित हो रहा है। 2014 और 2019 में यहां 26 की 26 सीटों पर भाजपा काबिज थी और ‘पेले कमल’ चल गया तो इस बार भी पिछली बार की तरह ही 4 जून को चौंकाने वाले नतीजे सामने आएंगे।

भाजपा को हमेशा से मिलीं ज्यादा सीटें
गुजरात में लोकसभा का इतिहास भी बड़ा है। 1996 में यहां भाजपा के पास 16 तो कांग्रेस के पास 10 सीटें थीं, जो 1998 में बढक़र 19 हो गई और कांग्रेस 7 पर आ गई। 1999 में 1 सीट बढक़र 20 हो गई तो 2004 में ऐसा माहौल भी बना जब भाजपा की सीटें 20 से सीधे 14 पर आ गई, फिर भी कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा ही रही। 2009 में भाजपा को 15 तो कांग्रेस को 11 सीटों से संतोष करना पड़ा और अब पिछले दो चुनाव से एक तरह से कांग्रेस का खाता गुजरात में बंद ही हो गया है।

दर्शना जरदोश लाई थी सबसे ज्यादा वोट
पिछले चुनाव के अंाकड़े देखे जाए तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल नवसारी सीट से जीते थे और कुल मतदान का 74.4 प्रतिशत मत उनके खाते में डला था, जबकि सबसे ज्यादा वोट लाने का रिकार्ड केन्द्रीय मंत्री दर्शना जरदोश के खाते में गया। उन्हें पाटिल से 0.1 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले। वडोदरा में रंजनाबेन भट्ट को 72.3 प्रतिशत वोट मिले थे तो केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को कुल मतदान का 69.7 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। हालांकि 15 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने 4 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी।

कांग्रेस के लिए ‘खाम’ ही सहारा
कांग्रेस के राहुल गांधी 400 पार सीटें आने के बाद भाजपा पर आरोप लगा रहे हैं कि वह संविधान बदल देगी और आरक्षण भी खत्म कर देगी। कांग्रेस ने इसके लिए खाम (्य॥्ररू) फार्मूला तैयार किया है। इसके तहत क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के वोटों को लेकर कैम्पेन कर रही है। इन्हीं के वोट बैंक पर कांग्रेस ने फोकस किया है और यह वर्ग साथ दे देता है तो कांग्रेस यहां से कुछ सीटों को वापस अपनी झोली में डाल सकती है।
(छोटा उदयपुर से संजीव मालवीय)

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