नई दिल्ली। विपक्ष (Opposition) लगातार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi government) पर इजरायली स्पाइवेयर पेगासस (israeli spyware pegasus) का उपयोग कर नेताओं और पत्रकारों की जासूसी करने का आरोप तो लगा रहा है, लेकिन जांच में शामिल होने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा गठित तीन सदस्यीय पैनल ने कहा है कि अब तक सिर्फ दो डिवाइस जांच के लिए जमा किए गए हैं। पैनल ने लोगों को स्कैन के लिए अपने फोन जमा करने के लिए 8 फरवरी तक का समय दिया है। पहले यह समय सीमा 7 जनवरी निर्धारित की गई थी। पैनल ने 3 फरवरी को एक सार्वजनिक नोटिस जारी कर और लोगों से अपने डिवाइस जमा करने के लिए कहा था।
फ्रांस स्थित पत्रकारों के एक संघ ने पिछले साल 50,000 नंबरों का एक लीक हुआ डेटाबेस एक्सेस किया था, जिन्हें एनएसओ समूह के ग्राहकों द्वारा निगरानी के लिए टारगेट किया गया था।
पैनल में कौन-कौन हैं शामिल?
पैनल में गांधीनगर में राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के डीन नवीन कुमार चौधरी, केरल में अमृता विश्व विद्यापीठम में प्रोफेसर प्रभरण पी, और आईआईटी बॉम्बे में संस्थान के अध्यक्ष और एसोसिएट प्रोफेसर अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल हैं।
सरकार ने किया था आरोपों का खंडन
19 जुलाई, 2021 को संसद को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने उन रिपोर्टों का खंडन किया जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार ने पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं और मंत्रियों के फोन हैक करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया। रिपोर्ट को उन्होंने भारतीय लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों को बदनाम करने की कोशिश बताया था।
NYT की रिपोर्ट से फिर मचा हंगामा
इस बीच 28 जनवरी को न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि 2017 में भारत और इज़राइल के बीच दो अरब अमेरिकी डॉलर की डिफेंस डील में पेगासस की खरीद भी शामिल है। रिपोर्ट सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने शीर्ष अदालत से फिर से कदम उठाने के लिए कहा।
रिटायर जज की निगरानी में पैनल का गठन
कांग्रेस पार्टी ने पिछले हफ्ते कहा था कि भाजपपा सरकार ने “लोकतंत्र का अपहरण” किया और सुप्रीम कोर्ट को धोखा दिया है। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से मामले का संज्ञान लेने और सरकार के खिलाफ उचित दंडात्मक कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया। सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर, 2021 को आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर वी रवींद्रन की देखरेख में तीन सदस्यीय पैनल नियुक्त किया। मामले में याचिकाकर्ताओं ने यह जांचने के लिए साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों से मदद मांगी है कि क्या फोन पर मैलवेयर का इस्तेमाल किया गया था।
साइबर एक्सपर्ट्स ने भी किए दावे
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ आनंद वेंकटनारायणन ने कथित रूप से दो फोनों का निरीक्षण करने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें पेगासस के सबूत मिले थे। वह दिल्ली स्थित थिंक टैंक डीपस्ट्रैट के साथ रणनीतिक सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं। पैनल को दिए अपने हलफनामे में उन्होंने कहा कि तकनीकी भाषा में ऐसे हमलों को “शून्य-क्लिक” कहा जाता है। यहां पेगासस को सक्रिय करने के लिए किसी यूजर की कार्रवाई की आवश्यकता नहीं होती है।
एक दूसरे साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ संदीप शुक्ला, जो IIT कानपुर में कंप्यूटर विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं, ने बयान दिया है कि उन्होंने कम से कम सात Android मैलवेयर नमूनों को स्कैन किया है। उन्होंने हलफनामे में कहा कि मैलवेयर वायरसटोटल पर ट्रोजन और स्पाइवेयर के रूप में पहचाने गए थे।
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