श्रीनगर (Srinagar) । जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में बुधवार को तीन दशकों से अधिक समय तक प्रतिबंधित रहने के बाद गुरुवार को श्रीनगर (Srinagar) के मध्य से 8वें मुहर्रम जुलूस (muharram procession) की अनुमति दी गई। हालांकि, प्रशासन ने जुलूस के लिए एक समय सीमा निर्धारित की है। आदेश के अनुसार, “27 जुलाई को सुबह 6 बजे से सुबह 8 बजे तक गुरु बाजार से बुडशाह कदल और एम.ए. रोड से डलगेट तक मुहर्रम जुलूस निकालने की अनुमति दी गई है।” श्रीनगर उपायुक्त अजाज असद द्वारा यह अनुमति दी गई है।
आदेश में कहा गया है, “व्यापक सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए समय सीमा को अंतिम रूप दिया गया है। जुलूस मार्ग में बड़े पैमाने पर व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं। इन रास्तों से एम्बुलेंस भी गुजरते हैं। साथ ही छात्रों, कार्यालय कर्मचारियों, सामान्य यात्रियों की आवाजाही भी होती है।”
जुलूस की अनुमति इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि तीन दशकों के बाद ऐसा हुआ है। सरकार जुलूस निकालने वालों को अलगाववादी आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखने वाला मानती थी। 1990 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआती दिनों में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
बुधवार को अपने आदेश में प्रशासन ने जुलूस निकालने वालों से कहा कि इस दौरान किसी भी तरह के राष्ट्र-विरोधी भाषण या नारेबाजी नहीं हों। आदेश में कहा गया है कि जुलूस के दौरान ऐसी कोई गतिविधि नहीं होनी चाहिए जो राज्य की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए हानिकारक हो। साथ ही इसमे शामिल लोगों को किसी भी राष्ट्रीय प्रतीक का अनादर नहीं करना चाहिए।
आदेश में कहा गया है, ”जुलूस निकालने वाले उत्तेजक नारे या आतंकी संगठनों की तस्वीरें, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर प्रतिबंधित संगठनों के लोगो वाला कोई झंडा नहीं फहराएंगे। जुलूस में शामिल होने वाले प्रतिभागियों की गतिविधियां पूर्णतः कार्यक्रम तक ही सीमित रहनी चाहिए। वे स्थानीय पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ उनकी इच्छानुसार सहयोग करेंगे।”
परंपरागत रूप से शिया मुसलमान घाटी में दो बड़े जुलूसों का आयोजन करते हैं। 8वीं मुहर्रम का जुलूस शहर के शहीद गुंज इलाके से शुरू होकर लालचौक से होकर गुजरते हुए श्रीनगर के डलगेट इलाके में समाप्त होता है। 10वीं मुहर्रम का जुलूस शहर के शिया बहुल इलाकों से होकर गुजरता है। प्रशासन ने 10वीं मुहर्रम के जुलूस की भी इजाजत दे दी है।
आठवीं मुहर्रम के जुलूस पारंपरिक रूप से अलगाववादी समूह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के घटक इत्तिहादुल मुस्लिमीन द्वारा आयोजित किए जाते थे। इसमें बड़ी संख्या में सुन्नी मुसलमानों ने भी हिस्सा लिया था।
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