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शांति के पंथ इस्लाम की असहिष्णुता

September 27, 2022

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

दुनिया भर में इस्लाम को लेकर बहस छिड़ी हुई है। इसे शांति का पंथ बताने वालों की कोई कमी नहीं, किंतु पूरी दुनिया से जो बोलती तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे कुछ ओर ही कह रही हैं। विश्व के किसी भी कोने में घट रही पांथिक घटनाओं पर गौर कीजिए! आप पाएंगे कि अधिकांश में इस्लाम को माननेवाले सीधे या पीछे से सहभागी हैं। भारत में तत्काल की दो घटनाओं को देखिए- कर्नाटक में दलित युवक का जबरन मुस्लिम मतांतरण करा दिया गया। उसे बीफ खाने को मजबूर किया गया। श्रीधर का बेंगलुरु की एक मस्जिद में जबरन ‘खतना’ कर दिया गया। ‘खतना’ करने के बाद उसे इस्लाम का प्रशिक्षण दिया गया। फिर उससे कहा गया कि हर साल कम-से-कम तीन लोगों का मतांतरण उसे कराना है।

इससे जुड़ी दूसरी घटना में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने केरल की अदालत को बताया है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) ने भारत में इस्लामी शासन स्थापित करने के लिए कुछ प्रभावशाली लोगों की एक ‘हिट लिस्ट’ बना रखी थी। जिन्हें मारने की साजिश रची गई वे सभी दूसरे धर्मों के हैं। कई ऐसे दस्तावेज जब्त हुए हैं, जिससे पता चलता है कि कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पीएफआई ने देश के माहौल को बिगाड़ने की पूरी तैयारी कर रखी थी। वस्तुत: देश भर में घट रही इन्हीं पांथिक घटनाओं ने आज विवश किया है कि इस्लाम के अंतरताने को समझा जाए और मजहबी तौर पर स्वयं इस्लाम की शिक्षा क्या कहती है? यह जाना जाए। वैसे इस्लाम का शाब्दिक अर्थ सलामती है, ये अलग बात है कि अनेक मुसलमान इस मत से भिन्न व्यवहार कर रहे हैं।

कुरान में आयतों में कहा गया-निश्चित रूप से, अल्लाह आदेश देता है पूर्ण न्याय का और अच्छे बर्ताव का और रिश्तेदारों को मदद देने का और वहअश्लीलता, बुराई और अत्याचार से तुम्हें रोकता है (कुराना, अन-नहल 90) । एक अन्य आयत में पुरुषों को आदेश देते हुए कहा गया ; उनकी इच्छा के विरुद्ध महिलाओं के वारिस न बनें और उनसे उनकी सहमति और मर्ज़ी के बिना शादी न करें और उनके धन को हाथ न लगाएं बल्कि उनकी वित्तीय स्थिति को सुधारें। इस्लाम तुम्हें आदेश देता है कि तुम लोगों के साथ न्याय करो और उनके लिए वही चीज़ पसंद करो जो अपने लिए पसंद करते हो। किसी क़ौम की शत्रुता तुम्हें न्याय से काम न लेने पर न उभारे, न्याय किया करो जो परहेज़गारी के बहुत निकट है। क़ुरआन (5:8)।

कुरान में कुल 32 आयतें मिलती हैं, जिन्हें पढ़कर सीधे तौर पर लगता है कि इस्लाम शांति का धर्म है। जिसको अपनाने से एक सभ्य समाज का निर्माण संभव है। यथा- अपमान मत करो ( कुरान, आयत 49/11), गरीबो को खिलाओ ( 22/36), चुगली मत करो (49/12), अपनी शपथ को पूरा करो (5/89), रिश्वत मत लो (27/36), अपने गुस्से को रोको (3/134), अफवाह मत फैलाओ (24/15), दूसरो के लिये भला सोचो (24/12)। इसी तरह से अन्य आयतों में कहा गया है। अब इन सभी श्रेष्ठ बातों को पढ़कर और सुनकर कौन कहेगा कि दुनिया भर में जो टेररिज्म का दौर चल रहा है, वह इस्लामिक है?

आज मध्य प्रदेश के आईएएस नियाज खान अकेले नहीं हैं जो यह कहते हैं कि दुनिया में मुस्लिम ही आतंकवाद फैला रहे हैं। वर्तमान में जो टेरेरिज्म दिख रहा है, वह पूरा एंटी इस्लामिक है। चाहे बोको हराम, अलसबाब, अलकायदाए तालिबान हो या कश्मीर के संगठन यह सभी कुरान की गलत व्याख्या करके मुस्लिम युवकों का ब्रेन वॉश कर रहे हैं। किंतु क्या इतना ही सच है? इस्लाम की तमाम अच्छी शिक्षाओं के बीच उस पर जो आरोप लग रहे हैं, कहना होगा उसका कारण भी इसी कुरान में निहित है। क्योंकि सभी कट्टरपंथी इसी कुरान से ही अपने लिए प्रेरणा ग्रहण करते हैं।

कुरान कह रहा है, ‘फिर जब हराम महीना बीत जाए तो मुशरिकों को जहां कहीं पाओ कत्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज कायम करें और जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्त्य ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है’ (चैप्टर 9, सूरा-5)। हे ईमान लाने वालों मुश्रिक (मूर्तिपूजक) नापाक है। अत: इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे-हराम के पास न आएं (चैप्टर 9, सूरा 28)। जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुम पर कोई गुनाह नहीं कि नमाज को कुछ संक्षिप्त कर दो। यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएंगे और कष्ट पहुंचाएंगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु हैं (चैप्टर 4, सूरा 101)।

हे ईमान लाने वालों (मुसलमानों) उन काफिरों से लड़ो जो तुम्हारे आसपास हैं और चाहिए ये कि वे तुमसे सख्ती पाएं (चैप्टर 9, सूरा 123)। जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएंगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मजा चखते ही रहे (चैप्टर 4, सूरा 56)। वे तो चाहते हैं कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी हैं, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घर-बार न छोड़ें। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कहीं भी उन्हें पाओ- तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक (चैप्टर 4, सूरा 89)।

फिटकारे (मुनाफिक) हुए होंगे। जहाँ कहीं पाए गए पकड़े जाएँगे और बुरी तरह जान से मारे जाएँगे (चैप्टर 33, सूरा 61)। निश्चय ही तुम और वह कुछ जिनको तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो सब जहन्नम के ईंधन हो। तुम उसके घाट उतरोगे (चैप्टर 21, सूरा 98)। और उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जिसे उसके रब की आयतों के द्वारा याद दिलाया जाए, फिर वह उनसे मुँह फेर ले? निश्चय ही हम अपराधियों से बदला लेकर रहेंगे (चैप्टर 32, सूरा 22)।

अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ…चैप्टर 8, सूरा 69)। ऐ नबी! इनकार करनेवालों और कपटाचारियों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अन्ततः पहुँचने की बहुत बुरी जगह है (चैप्टर 66, सूरा 9) । अतः हम अवश्य ही उन लोगों को, जिन्होंने इनकार किया, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे,(चैप्टर 41, सूरा 27) । वह है अल्लाह के शत्रुओं का बदला – आग। उसी में उनका सदा का घर है, उसके बदले में जो वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे (चैप्टर 41, सूरा 28)।

वस्तुत: कुरान की इन आयतों के अतिरिक्त भी अन्य अनेक आयते हैं जिन पर सदैव से विवाद है। इन्हें पढ़कर और समझकर आप कह सकते हैं कि दुनिया भर में जो आज इस्लाम के नाम पर आतंक का जिहादी खेल खेला जा रहा है, वह इसी इस्लाम की देन है। जिसके मानने वालों के लिए राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना ही उनका अंतिम ध्येय है । फिर इसके लिए उन्हें कुछ भी क्यों न करना पड़े। इस्लाम की इसी असहिष्णुता को आज हम सभी को समझने की आवश्यकता है और जो भी इस्लाम में इस तरह की सोच को सही नहीं ठहराते, आज आवश्यकता उनकी विश्व शांति स्थापना के लिए मुखरता से आगे आने की है।

(लेखक न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार की पत्रिका नवोत्थान, युगवार्ता के प्रबंध सम्पादक एवं मप्र ब्यूरो प्रमुख हैं।)

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