नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFC) पर निगरानी बढ़ाने का फैसला किया है। इसके तहत बैंकों की तर्ज पर प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) के संशोधित दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। रिजर्व बैंक ने इस संबंध में एक बयान जारी कर कहा है कि एनबीएफसी के लिए संशोधित पीसीए मानक 1 अक्तूबर, 2022 से प्रभावी होंगे।
इन्हें रखा गया है दायरे से बाहर
आरबीआई के बयान के मुताबिक, सार्वजनिक स्वामित्व वाली एनबीएफसी को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि संशोधित पीसीए प्रारूप जमा स्वीकार करने वाली सभी एनबीएफसी, जमा नहीं लेने वाली एनबीएफसी, निवेश एवं साख कंपनियों और सूक्ष्म वित्त संस्थानों पर भी लागू होंगे।
जबकि सार्वजनिक कोष स्वीकार नहीं करने वाली एनबीएफसी इसके दायरे से बाहर रहेंगी। रिजर्व बैंक ने कहा कि एनबीएफसी पर सख्त पीसीए मानक लागू होने की स्थिति में डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन पर रोक लगने के साथ ही गारंटी देने से भी इन्हें रोका जाएगा। इसके अलावा रणनीति, शासन, प्रमुख पूंजी, ऋण जोखिम में गड़बड़ी पर भी विशेष कदम उठाए जाएंगे।
बैंकों पर पहले से लागू पीसीए प्रारूप
गौरतलब है कि आरबीआई इससे पहले बैंकों के लिए पीसीए प्रारूप लागू कर चुका है जिसमें बकाया कर्ज के बोझ तले दबे बैंकों पर सख्त निगरानी लागू की गई है। पीसीए प्रारूप के तहत दरअसल, बैंकों को नए कर्ज जारी करने और भर्तियों से भी रोका जाता है। आरबीआई को जब लगता है कि किसी बैंक के पास जोखिम का सामना करने को पर्याप्त पूंजी नहीं है, उधार दिए धन से आय नहीं हो रही और मुनाफा नहीं हो रहा है तो उस बैंक को पीसीए में डाल दिया जाता है, ताकि उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाए जा सकें।
पीसीए फ्रेमवर्क को इस तरह समझें
आरबीआई के पीसीए फ्रेमवर्क के तहत कुछ खास मापदंडों के आधार पर बैंकों की वित्तीय सेहत की निगरानी की जाती है। संशोधित ढांचे में निगरानी के लिए कैपिटल, परिसंपत्ति गुणवत्ता और लेवरेज जैसे मापदंड शामिल होंगे। आमतौर पर एक बैंक को उसके सालाना नतीजे और आरबीआई की ओर से की गई सुपरवाइजरी मूल्यांकन के आधार पर पीसीए फ्रेमवर्क में डाला जाता है।
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