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    पवन सोनी की आंख में लगता है 30 हज़ार का इंजेक्शन, आर्थिक रूप से टूटा पत्रकार

  • November 28, 2022

    हर एक आंख में होती है मुंतजिर कोई आंख
    हर एक दिल में कहीं कुछ जगह निकलती है।

    भोपाल के सीनियर सहाफियों (पत्रकारों) में शुमार पवन सोनी साब इन दिनों आंख से बावस्ता मजऱ् से निहायत परेशान हैं। इस मजऱ् के चलते पत्रकार की ज़हनी, दिमाग़ी और जिस्मानी हालत तो गिर ही गई है, इनकी माली हालत भी बहुत खराब हो गई। है। पवन सोनी गुजिश्ता 34 बरसों से सहाफत (पत्रकारिता) में हैं। इन्होंने दैनिक जागरण, नवभारत, राष्ट्रीय सहारा , राज एक्सप्रेस और पीपुल्स समाचार में लपक काम किया। पवन भाई सेंट्रल डेस्क के माहिर सहाफी माने जाते हैं। पांच बरस पेले इने ब्रेन स्ट्रोक हुआ था। कोई 3 महीने रिकवर होने में लगे। नोकरी छूट गई। किसी तरह ईएमएस मीडिया में नोकरी लगी। लेकिन कोई साल भर से पवन भाई की एक आंख के रेटीना में दिक्कत हो गई है। इनके रेटीना में ब्लड क्लॉट हो गया है। इससे उस आंख से दिखना लगभग खत्म हो गया है। डाक्टरों का कहना है कि आंख के ब्लड क्लॉट की सर्जरी नहीं की जा सकती। क्लॉट की वजह से आंख में दर्द भी बहुत होता है। आई स्पेशलिस्ट ने क्लॉट हटाने के लिए आंख में इंजेक्शन की सलाह दी है। ये इंजेक्शन हर महीने लगवाना होता है। इसकी बाज़ार में कीमत 30 हज़ार रुपये है। जब तक आंख के रेटीना का ब्लड क्लॉट खत्म नहीं हो जाता ये महंगा इंजेक्शन लगवाना पड़ेगा।



    कोई मरीज़ दो तीन इंजेक्शन में ठीक हो जाते हैं तो किसी को 10 से 12 इंजेक्शन लगते हैं। पत्रकार पवन सोनी आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। पहले इनकी जनसम्पर्क में अधिमान्यता थी जो बड़े अखबारों में नोकरी न होने से रिन्यू नही हो सकी। लिहाज़ा पत्रकार को सरकारी हेल्थ बीमा का फ़ायदा भी नहीं मिल पा रहा है। इन्हें इलाज के लिए ढाई से तीन लाख रुपये दरकार हैं। इस मुसीबत में ईएमएस संस्थान इनकी कुछ मदद ज़रूर कर रहा है। पवन कहते हैं कि पांच सालों से हालात की गर्दिश से मैं टूट चुका हूं। बीवी और बच्चों ने पूरी मेहनत करके मुझे फालिज की बीमारी से खड़ा किया ही था कि अब आंख के मजऱ् ने मुझे घेर लिया है। हर महीने 30 हज़ार का खर्च उठाना नामुमकिन लग रहा है। घर की तमाम बचत खर्च हो चुकी है। पवन भाई आपको हिम्मत रखनी होगी। कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा। सूरमा का मानना है कि पत्रकार को इस गर्दिशे अय्याम से निकालने के लिए पत्रकार संगठनों को आगे आ कर सरकारी इमदाद की कोशिश करना चाहिए।

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