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    ‘पावर स्टार’ के नाम से मशहूर पवन कल्याण का दिल्ली में भी शो रहा हिट, मोदी ने की प्रशंसा

  • June 09, 2024

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । ‘ये पवन नहीं है, आंधी है.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने संसद भवन के अंदर एनडीए (NDA) परिवार की विशाल सभा में पवन कल्याण (Pawan Kalyan) का परिचय इस तरह से कराया. पवन ने मोदी की उदार प्रशंसा को स्वीकार किया, लेकिन यह क्षण इस बात का सबूत था कि ‘पावर स्टार’ के नाम से मशहूर अभिनेता ने आखिरकार आंध्र प्रदेश और भारत के पावर मैप पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है.

    मोदी ने ‘पवन’ शब्द का इस्तेमाल किया. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि ‘पवन’ उनके माता-पिता द्वारा दिया गया नाम नहीं था. वे मूल रूप से कल्याण बाबू थे, जो वरप्रसाद राव (जिन्होंने बाद में चिरंजीवी के रूप में स्क्रीन पर पहचान मिली) और नागाबाबू के छोटे भाई थे. ‘पवन’ टीइटल उन्हें एक मार्शल आर्ट इवेंट के बाद दिया मिला था और 1996 में ‘अक्कडा अम्मई इक्काडा अब्बाई’ (Akkada Ammayi Ikkada Abbayi) के साथ तेलुगु फिल्मों में अपनी शुरुआत करने के बाद यही उनका ऑन स्क्रीन नाम बन गया. पवन कल्याण के पास कराटे में ब्लैक बेल्ट है और वो बॉडी डबल का उपयोग किए बिना ज़्यादातर स्टंट करने के लिए जाने जाते हैं.

    इतना ही नहीं, पवन खुद को पढ़ने-लिखने में बहुत प्रतिभावान नहीं मानते हैं और वो स्कूल के दिनों के असफलताओं के बारे में खुलकर बातें भी करते हैं. लेकिन अब पवन ने 2024 के चुनावों में 100 प्रतिशत अंक हासिल किया है. जिन-जिन सीटों पर भी उनकी जन सेना पार्टी ने चुनाव लड़ा था वहां उनका स्ट्राइक रेट 100 फीसदी रहा. यानी उनकी पार्टी ने सभी 21 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों पर चुनाव जीता. यह एक शानदार वापसी थी क्योंकि महज पांच साल पहले, जब वह खुद गजुवाका और भीमावरम दोनों विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव में उतरे थे, तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. उस समय उनका मजाक बनाया गया था. अगर राजनीति टॉलीवुड होती, तो पवन की एंट्री सबसे ज्यादा ग्रांड होती.


    आंध्र प्रदेश में वाईएस जगनमोहन रेड्डी को सत्ता से हटाने की मुहिम में पवन कल्याण इतने महत्वपूर्ण आखिर कैसे हो गए? सरल शब्दों में कहें तो, पवन ही वह उत्प्रेरक (catalyst) रहे जिन्होंने चुनाव की प्रयोगशाला में राजनीतिक रूप से धमाका करने के लिए अलग-अलग लोगों को एक साथ ले आए.

    स्पोर्ट्स की ही तरह अगर कोई वाईएसआरसीपी के खिलाफ मैच में निर्णायक मोड़ की पहचान के बारे में पूछे, तो मैं कहूंगा कि यह छन सितंबर 2023 में आया. तब पवन कल्याण न्यायिक हिरासत में बंद चंद्रबाबू नायडू से मिलने राजमुंदरी सेंट्रल जेल पहुंचे थे. ऐसे समय में जब टीडीपी प्रमुख को भाजपा और वाईएसआरसीपी सरकार सहित किसी भी राजनीतिक वर्ग से समर्थन नहीं मिल रहा था, तब पवन आंध्र की राजनीति में एक सभ्य व्यक्ति के रूप में निकलकर सामने आए. उन्होंने न केवल समर्थन व्यक्त किया, बल्कि यह भी घोषणा की कि जन सेना 2024 का चुनाव टीडीपी के साथ लड़ेगी. यह सब तब हो रहा था जब नायडू भाजपा नेतृत्व के लिए अभिशाप बने हुए थे और जेएसपी एनडीए का हिस्सा थी. पवन ने एक ऐसे साहस और गुण का परिचय दिया जो जीतने वाले को हारने वाले से अलग करता है.

    अगले कुछ महीनों में पवन कल्याण ने अपनी ताकतों का अच्छा इस्तेमाल किया. वह मोदी और अमित शाह को यह समझाने में कामयाब रहे कि हवा जगन के खिलाफ बह रही है. ऐसे में अगर वाईएसआरसीपी विरोधी वोटों का बंटवारा नहीं होता है तो चुनाव में जीत सुनिश्चित हो सकती है. पवन एकजुट मोर्चा बनाने पर इतने अड़े थे कि उन्हें ‘कैमरामैन गंगटो रामबाबू’ का उनका एक संवाद याद आ गया, जिसमें उनके किरदार ने कहा था, ‘नाकू टिक्का लेस्ते, चीमा आइना ओक्काते, सीएम आइना ओक्काते’ (अगर मैं भड़क गया, चाहे वह चींटी हो या सीएम, उनका हश्र एक जैसा होगा).

    राजनीतिक लाभ और हर सीट के लिए टफ नेगोशिएशन करने वाले नेताओं के विपरीत पवन ने बड़ा दिल दिखाया. उन्होंने टीडीपी के साथ गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए पहले उन्होंने 60 से 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की अपनी योजना को घटाकर 24 किया. बाद में भाजपा को तीन अतिरिक्त सीटें देने के लिए इसे 24 से और भी कम करके 21 कर दिया. इस बात से उनके कैडर परेशान हो गए थे क्योंकि वो इसे उनके महत्व को कम करने के प्रयास के रूप में देखने लगे. लेकिन पवन ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि युद्ध जीतना सीटों के बंटवारे पर छोटी-छोटी लड़ाइयां जीतने से ज़्यादा जरूरी है.

    पवन के लिए यह आसान नहीं रहा. ऐसा कहा जाता है कि उन्हें सलाह मिली थी कि नायडू के साथ जाने के बजाय उन्हें इंतजार करना चाहिए. इसके पीछे का तर्क यह था कि अगर जगन 2024 में सत्ता में लौटे तो टीडीपी इस हार से उभर नहीं पाएगी. जिसके बाद पवन की पार्टी जनसेना पार्टी वाईएसआरसीपी के सामने मु्ख्य विपक्षी दल के रूप में आ सकते हैं. लेकिन पवन 2029 तक इंतजार करने के मूड में नहीं थे और उन्होंने साल 2024 को ही अपना बनाने का फैसला किया.

    नायडू ने बुजुर्ग मतदाताओं को अपनी ओर खींचना शुरु किया क्योंकि उन्होंने उनके काम को हैदराबाद और एकीकृत आंध्र प्रदेश में प्रत्यक्ष रूप से देखा था. दूसरी ओर पवन ने नारा लोकेश के साथ मिलकर युवा वोटों को आकर्षित किया. जबकि मोदी ने एनडीए सरकार बनने पर अमरावती के लिए केंद्रीय सहायता का वादा किया. ऐसा कर के एनडीए ने सभी तरह के वोट बैंक को कवर किया जबकि जगन के लिए उनके मूल निर्वाचन क्षेत्र के वोट के अलावा कुछ नहीं बचा.

    पवन अब आगे क्या करेंगे? भीड़ को आकर्षित करने वाले और उनमें जोश पैदा करने की उनकी क्षमता के कारण आंध्र प्रदेश की राजनीति में उनका कोई जोड़ नहीं है. इस बात को लेकर फिलहाल कोई स्पष्टता नहीं है कि वे उपमुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं? उनके योगदान और उनके द्वारा अर्जित कद को देखते हुए उन्हें उपमुख्यमंत्री बनना चाहिए. इससे कापू समुदाय और गठबंधन को वोट देने वाले युवाओं में भी यह संदेश जाएगा कि उनके साथ आगे कोई धोखा नहीं होगा.

    जहां तक ​​उनके राजनीतिक ग्राफ की बात है तो परिवार के भीतर उन्होंने चिरंजीवी पर बढ़त हासिल कर ली है. 2008 में चिरंजीवी ने प्रजा राज्यम की शुरुआत की. एनटीआर की तरह उन्होंने भी मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद की. ऐसा नहीं हो सका और चिरंजीवी एक तरह से सूबे की राजनीति से निकलकर सिल्वर स्क्रीन की दुनिया में वापस लौट गए. पवन ने जगन और उनकी पार्टी के लोगों द्वारा उनकी तीन शादियों के बारे में व्यक्तिगत ताने सहे और अपने काम पर ध्यान केंद्रित किया.

    तेलुगु सिनेमा में पवन सबसे अधिक बिकने वाले स्टार्स में से एक हैं. दक्षिण भारतीय फिल्म जगत में पवन की दीवानगी के बराबर सिर्फ रजनीकांत या विजय ही खड़े होते हैं. अपनी पार्टी और घर को चलाने के लिए वो अब कभी-कभार ही अभिनय में हाथ आजमाते दिखेंगे. लेकिन फिलहाल कुछ समय के लिए, उन्हें ‘वकील साब’ (अमिताभ बच्चन की ‘पिंक’ की रीमेक) में उनके किरदार द्वारा कहा गया संवाद याद रखना चाहिए – ‘इप्पुडु जनलकी नुव्वु कवाली’ (अभी लोगों को आपकी जरूरत है).

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