शिमला (Shimla)। दुर्लभ लाइम रोग ( rare Lyme disease Patients) के मरीज पहली बार (first time) हिमाचल (Himachal) में मिले हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research) के एक प्रोजेक्ट के तहत इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला (Indira Gandhi Medical College (IGMC) Shimla) के विशेषज्ञों ने लाइम रोग के संदेह पर 232 लोगों के नमूने एकत्रित किए थे। इनमें से जांच में 144 मामले पॉजिटिव पाए गए हैं। नमूने आगामी पुष्टि के लिए एम्स नई दिल्ली भेजे गए हैं। रिपोर्ट आने पर स्पष्ट होगा कि इनमें से कितने लोगों में लाइम रोग है।
रोग की जांच के लिए डायग्नोस्टिक किट चिकित्सा अनुसंधान परिषद की वित्तीय सहायता से चेक गणराज्य से खरीदी गई। प्रदेश में लाइम रोग की उपस्थिति की खोज वर्ष 2022 से हो रही है। बीते साल 173 नमूने लिए गए थे। लाइम रोग एक छोटे बैक्टीरिया स्पाइरोकीट यानी बोरेलिया बर्गडोरफेरी सेंसु लेटो के कारण होता है, जो टिक कीड़े की इक्सोडेस प्रजाति के काटने से होता है।
रोग मई से सितंबर के बीच होता है। यह टिक जंगल और आसपास के इलाकों में पाया जाता है। यह पशुओं से चिपककर रक्त चूसता रहता है। टिक चूहों, बैलों-गायों व पक्षियों की कुछ प्रजातियों में पाया जाता है। लाइम रोग अमेरिका और यूरोप में तेजी से बढ़ने वाली वायरस जनित बीमारी है। यूरोप से यह पिछले 25 वर्षों से दुनियाभर में फैल रही है।
ऐसे होता है इस रोग का संक्रमण
पहला चरण : टिक के काटने की जगह दाने दिखाई देते हैं। इससे बुखार, सिरदर्द, अधिक थकान और मांसपेशियों में दर्द होता है।
दूसरा चरण : उपचार के बिना 3-10 सप्ताह में कई चकत्ते दिखाई दे सकते हैं। इससे गर्दन में दर्द और अकड़न, चेहरे के एक या दोनों तरफ की मांसपेशियों में कमजोरी, अनियमित दिल की धड़कन, पीठ में दर्द, हाथों या पैरों का सुन्न होना, आंखों में दर्द, अंधापन और घुटने में दर्द रहता है।
तीसरा चरण : टिक के काटने के 2-12 महीने बाद शुरू होता है। हाथों और पैरों के पीछे की त्वचा पतली पड़ जाती है।
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