इंदौर। संक्रमण का आक्रमण इंदौर से लगे शहरों और गांवों की गलियों तक फैल रहा है। इंदौर के कोविड अस्पतालों में जहां सामान्य मरीज धक्के खा रहे हैं, वहीं प्राइवेट हास्पिटलों में समृद्ध लोगों की कतारें लगी हैं। शहर का कोई भी अस्पताल ऐसा नहीं बचा है, जहां कोरोना मरीजों के लिए रूम से लेकर जनरल वार्ड के बेड खाली हों। इंदौर के ही अरबिंदो और इंडेक्स मेडिकल कालेज में 80 प्रतिशत बेड पर ग्रामीण मरीजों को रखा जा रहा है, वहीं मरीज एमटीएच और एमआरटीबी अस्पताल में जाने से ही घबरा रहे हैं।
इंदौर से लगे ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों के लिए कोई चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध नहीं होने से गांव के लोग इंदौर का रुख कर रहे हैं। मुसीबत यह भी है कि जो चिकित्सा व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्रों या शहरों में है वह न तो पर्याप्त है और न ही वहां के डॉक्टर्स कोई खतरा मोल लेना चाहते हैं। जैसे ही कोई मरीज लगातार बुखार की शिकायत लेकर आता है तो उसे कोविड टेस्ट कराने की सलाह दे दी जाती है और टेस्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं होने पर उन्हें इंदौर भेज दिया जाता है। इनमें से कई मरीज तो साधारण बुखार के ही होते हैं, लेकिन उचित इलाज नहीं होने और कोविड अस्पतालों की ओर धकेल देने से वे स्वस्थ होने के बावजूद कोरोना के शिकार हो जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही अव्यवस्थाओं के कारण भी जहां कोरोना फैल रहा है, वहीं इंदौर शहर पर भी बोझ बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि शहर के मरीजों के लिए अस्पतालों में जगह ही नहीं बची।
गांवों से आ रहे हैं केवल गंभीर मरीज
ग्रामीण क्षेत्रों से जो मरीज आ रहे हैं उनमें से अधिकांश की हालत गंभीर होती है। यह मरीज पहले तो कई दिनों तक न अस्पताल जाते हैं और न ही डॉक्टर को बीमारी बताते हैं। साधारण दवाइयां लेकर ठीक होने की कोशिश में उनकी स्थिति गंभीर होती जाती है और जब सांस लेने में तकलीफ होने लगती है तब वे अस्पतालों की ओर दौडऩे लगते हैं। ऐसी स्थिति में डॉक्टर उन्हें इंदौर भिजवाते हैं। यहां भी न तो उन्हें तत्काल एडमिट किया जाता है और न ही ऑक्सीजन वाला बेड मिल पाता है। ऐसी स्थिति में उनकी जान बचना मुश्किल रहता है।
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