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    धीर-वीर, गंभीर… मोदी क्यों हुए इतने अधीर कि टूट गई मर्यादाएं… शब्द हो गए फकीर

  • May 31, 2024

    हो गई चुनाव प्रचार की खमोशी…अब न कोई नारे गुंजाएगा…न कोई किसी पर तोहमतें लगाएगा…न कोई किसी को निशाना बनाएगा… न कोई शहजादा शब्द जुबां पर लाएगा और न ही कोई शहंशाह पर उंगली उठाएगा…न कोई धर्म-जाति का मुद्दा बनाएगा… न कोई हिंदू-मुसलमान को बांटकर चक्रव्यूह रचाएगा… सच कहें तो कान पक गए थे सुनते-सुनते…पहली बार ऐसा भाषाई संग्राम नजर आया, जिससे देश का हर व्यक्ति कहीं न कहीं आहत नजर आया…जिन मुद्दों को उठाना था… जिन आशाओं को जगाना था…जिन निराशाओं को मिटाना था…जिन सवालों की आग को बुझाना था…जिन संकीर्णताओं से देश को उबारना था…विश्वास के जिस समुद्र को लांघना था, वहां चरित्र और चेहरे पर कीचड़ उछाला गया…धर्म, जाति और मजहब के मुद्दे बनाए गए…ऐसे-ऐसे शब्दों के तीर चलाए गए कि वार नेताओं ने नेताओं पर किया, मगर जनता आहत होती रही…बात बेबात की होती रही और आघात जनता सहती रही…चैनलों के भोंपू चिंघाड़ते रहे…नेताओं को मंच पर बैठाकर भिड़ाते रहे… एक-दूसरे के दामन पर दाग लगवाते रहे और देशभर के घरों में विचारों की गंदगी फैलाते रहे… उधर मंचों पर एक-दूसरे पर तोहमतें लगाते और अतीत से लेकर वर्तमान तक के विकास पर उंगली उठाते नेताओं ने देशवासियों को इस तरह भ्रमित कर डाला कि कोई यह समझ नहीं पा रहा था कि देश ने विकास किया या वक्त का विनाश किया… मोदीजी नेहरू, इंदिरा से लेकर राजीव गांधी तक के कार्यकाल को नाकारा बता रहे थे तो विपक्षी मोदी की उपलब्धियों पर महंगाई और बेरोजगारी का पलीता लगा रहे थे…ऐसा लग रहा था कि हम आजादी के बाद से अब तक जहां थे वहीं हैं…यदि कुछ बदला है तो हिंदू-मुसलमानों के बीच की खाई और अगड़ों और पिछड़ों की लड़ाई…सारे के सारे नेता सत्ता के लिए लटूम रहे थे…वैचारिक भिन्नता रखने वाले इंडिया के नेता झूठी एकता के नाम पर झूम रहे थे तो मोदीजी बेवजह 400 पार की जिद में छोटे-छोटे नेताओं पर आरोप-प्रत्यारोप कर अपनी ऊंचाई का कद बौना कर रहे थे…जरूरत ही नहीं थी उन्हें किसी विपक्षी नेता का नाम लेने की…जरूरत ही नहीं थी कि उन्हें दलित, पिछड़ों पर बात करने की…जरूरत ही नहीं थी उन्हें हिंदुओं को भडक़ाने और मुसलमानों को डराने की… वो जीत रहे थे…वो जीत रहे हैं…वो बन रहे थे…वो बन रहे हैं…फिर बात तो बनने के बाद की और देश को अगले पांच सालों में मिलने वाली सौगात की होना चाहिए…महंगाई घटाने और बेरोजगारी मिटाने की होना चाहिए…देश को विश्व गुरु बनाने… विकासशील देशों की दौड़ में जुटाने… अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और मंजिल की ऊंचाई बताने की होना चाहिए थी… मोदीजी को लोग धीर.. वीर.. गंभीर और शब्दों का वीर मानते हैं… लेकिन इस बार वे ऐसे अधीर हुए कि कई शब्द गिरते नजर आए तो कई फिसलते नजर आए… पहला चुनाव उन्होंने विश्वास पर जीता… दूसरा चुनाव विकास और राष्ट्र पर जीता तो तीसरा चुनाव रफ्तार पर होना चाहिए था…अड़े-सड़े मुद्दे उठाना ही नहीं चाहिए थे… आरोप-प्रत्यारोप के तीर चलना ही नहीं चाहिए थे…विपक्ष के छोटे से छोटे नेता की बातों का जवाब देना…किसी के लिए शहजादा तो किसी के लिए बुआ-बबुआ जैसे शब्द गढऩा उसे उसकी हैसियत से ऊपर उठाना साबित हुआ…चार दिन बाद फैसला आ जाएगा…देश आपको ही शिरोधार्य बनाएगा… फिर आपको खुद अपने शब्दों पर एतराज नजर आएगा… वक्त तो चला जाएगा… लेकिन वाकये छोड़ जाएगा…

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    700 कर्मचारी लगेंगे मतगणना में, आज देंगे अंतिम प्रशिक्षण

    Fri May 31 , 2024
    इंदौरी बिजली कम्पनी के जिम्मे 15 जिलों की जिम्मेदारी बिजली नहीं होगी गुल 116 प्रेक्षक भी आयोग ने किए तैनात इंदौर। 4 जून (4 June) को नेहरू स्टेडियम (Nehru Stadium) में होने वाली मतगणना (counting) में लगने वाले 700 कर्मचारियों (700 employees) को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आज दोपहर प्रशिक्षण का दूसरा और अंतिम […]
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