नई दिल्ली (New Dehli)। भाजपा के मिशन 370 (BJP’s mission 370)की रणनीति में दक्षिण भारत सबसे अहम(South India is most important in strategy) है। यहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसकी रणनीति (Narendra Modi his strategy)के केंद्र में हैं। पार्टी मोदी के व्यक्तित्व, उनके इस क्षेत्र के लगातार दौरों, अयोध्या में राम मंदिर (Ram temple in Ayodhya)की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान अनुष्ठान में दक्षिण में रामेश्वरम, श्री रंगम समेत प्रमुख मंदिरों के दर्शन, काशी तमिल संगमम, काशी तेलुगु संगमम जैसे आयोजनों को जनता तक लेकर जा रही है। इसमें केंद्र की विकसित भारत यात्रा भी उसकी मददगार है। चुनाव अभियान में भी मोदी दक्षिण भारत में पिछली बार से ज्यादा प्रचार करेंगे।
पूरे देश की तरह दक्षिण भारत में भी भाजपा का सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। फर्क यह है कि अन्य राज्यों में उसके राज्यों के बड़े नेता और संगठन भी काफी प्रभावी हैं, लेकिन दक्षिण का अधिकांश दारोमदार मोदी के व्यक्तित्व पर ही है। खुद मोदी लगातार दक्षिण भारत के दौरे कर रहे हैं। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान अनुष्ठान में उन्होंने दक्षिण में रामेश्वरम, श्रीरंगम समेत प्रमुख मंदिरों के दर्शन किए। काशी तमिल संगमम, काशी तेलुगु संगमम जैसे आयोजनों से उत्तर दक्षिण के साथ भाजपा को भी दक्षिण के साथ जोड़ने की कोशिश की है।
भाजपा ने धार्मिक के साथ सामाजिक रूप से भी दक्षिण को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है। सरकार द्वारा देशभर में चलाई गई विकसित भारत यात्रा में भी दक्षिण पर ध्यान दिया गया और करोड़ों लोगों तक केंद्र सरकार सीधे पहुंची है। लोगों को बताया गया कि केंद्र सरकार क्या-क्या कर रही है। साथ ही, क्षेत्रीय दलों की राज्य सरकारों के दावों की असलियत क्या है।
50 सीट का लक्ष्य
गौरतलब है कि दक्षिण भारत में भाजपा के पास सबसे कम सीटें हैं और उसके लिए अपनी जगह बनाने के लिए काफी ज्यादा जगह भी है। हालांकि, संगठनात्मक और राजनीतिक नेतृत्व की कमी उसकी सबसे बड़ी बाधा है। ऐसे में पार्टी जमीनी मेहनत व क्षेत्रीय दलों को तो साध ही रही है, लेकिन सबसे ज्यादा उम्मीदें मोदी पर टिकी हैं। भाजपा ने इस बार दक्षिण भारत से कम से कम पचास सीटों का लक्ष्य रखा है। बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने देशभर में अब तक की सबसे ज्यादा 303 सीटें जीती थी। इनमें दक्षिण भारत की 131 सीटों में से उसके पास महज 29 सीटें थी। इनमें भी अकेले कर्नाटक से 25 और तेलंगाना से चार। बाकी तीन राज्यों तमिलनाडु, केरल एवं आंध्र प्रदेश और केंद्र शासित पद्दुचेरी व लक्षद्वीप में उसका खाता भी नहीं खुला था। तमिलनाडु में उसकी अन्नाद्रमुक एवं अन्य दलों से गठबंधन था, लेकिन खुद अन्नाद्रमुक को मात्र एक सीट मिली थी।
इस बार हालात जुदा
हालांकि, इस बार तमिलनाडु, केरल एवं आंध्र प्रदेश में हालात बदले हुए हैं। भाजपा ने इन सभी राज्यों में अपना विस्तार किया है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद भाजपा ने वहां पर लोकसभा के लिए खुद को मजबूत रखा है। साथ ही जद (एस) के साथ गठबंधन कर ताकत को बढ़ाया है। तेलंगाना में भी भाजपा का जनाधार बढ़ा है। आंध्र प्रदेश में वह तेलुगुदेशम के साथ तालमेल की चर्चा में हैं। अगर यह होता है तो इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। तमिलनाडु में कमजोर और विभाजित अन्नाद्रमुक के बजाय भाजपा अन्य छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ेगी। केरल में भी वह स्थानीय दलों के साथ तालमेल की कोशिश में है।
क्षेत्रीय दलों को साधा
भाजपा ने इस बार अपने विरोधी क्षेत्रीय दलों को भी अंदरूनी तौर पर साधकर रखा है। इनमें तेंलगाना में बीआरएस, आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी एवं तमिलनाडु में कुछ हद तक द्रमुक भी शामिल है। वाईएसआरसीपी तो संसद में अधिकांश मौकों पर सरकार के साथ ही रही। भाजपा की कोशिश इन दलों को अपने साथ लाने से ज्यादा कांग्रेस से दूर रखने पर है। अगर वह इसमें सफल रहती है, तो वह भी बड़ी कामयाबी होगी।
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