नई दिल्ली। मनरेगा के तहत कम मजदूरी पर चिंता जताते हुए एक संसदीय समिति ने सवाल उठाया है कि इस प्रमुख योजना के तहत पारिश्रमिक को मुद्रास्फीति सूचकांक से क्यों नहीं जोड़ा जा रहा। समिति ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय से इस योजना के तहत मजदूरी बढ़ाने के लिए एक तंत्र तैयार करने का भी अनुरोध किया।
कांग्रेस सांसद सप्तगिरि शंकर उलाका की अध्यक्षता वाली ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने गुरुवार को लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में मंत्रालय की आलोचना की और कहा कि उसके रुख में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वेतन संशोधन के संबंध में सरकार “रूढ़ीवादी प्रतिक्रियाएं” दे रही है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “चाहे शहरी हो या ग्रामीण, महंगाई और जीवन-यापन की लागत कई गुना बढ़ गई है और यह सभी के लिए स्पष्ट है। यहां तक कि इस समय भी, मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) की अधिसूचित मजदूरी दरों के अनुसार, कई राज्यों में प्रति दिन लगभग 200 रुपये की मजदूरी किसी भी तर्क को चुनौती देती है, जबकि उसी राज्य में श्रम दरें इससे कहीं अधिक हैं।”
समिति ने कहा, “यह समझ से परे है कि मनरेगा के तहत मजदूरी को अभी भी मौजूदा मुद्रास्फीति के अनुरूप उपयुक्त सूचकांक से क्यों नहीं जोड़ा जा सका है। विभिन्न क्षेत्रों से मनरेगा के तहत मजदूरी में वृद्धि की मांग को देखते हुए समिति ग्रामीण विकास विभाग साफ तौर पर अपने रुख पर फिर से विचार करने और मनरेगा के तहत मजदूरी बढ़ाने के लिए एक तंत्र विकसित करने का आग्रह करती है।” समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न राज्यों में मजदूरी में असमानता भी चिंता का विषय है।
इस योजना को अक्सर मनरेगा या नरेगा कहा जाता है- इसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है, और प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत मजदूरी रोजगार उपलब्ध कराना है। मनरेगा के तहत मजदूरी में आखिरी बार अप्रैल में संशोधन किया गया था, उस दौरान विभिन्न राज्यों के लिए मजदूरी में 4 से 10 प्रतिशत के बीच की बढ़ोतरी की गई थी।
एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार, इस योजना के तहत अकुशल श्रमिकों के लिए हरियाणा में सबसे अधिक मजदूरी 374 रुपये प्रतिदिन है, जबकि अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में सबसे कम 234 रुपये प्रतिदिन है। अनूप सत्पथी की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति ने 2019 में जारी एक रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि एमजीएनआरईजीएस के तहत मजदूरी 375 रुपये प्रतिदिन होनी चाहिए।
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