नई दिल्ली। रक्षा क्षेत्र (defense sector) में देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशों के बीच रक्षा अनुसंधान (defense research) के लिए डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (Defense Research and Development Organization) यानी DRDO को मिलने वाला बजट जीडीपी के अनुपात में घटा है। मौजूदा समय में रक्षा अनुसंधान पर जीडीपी का एक फीसदी से भी कम खर्च होता है। इसमें भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान कमी आई है।
रक्षा मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति ने हाल में संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में इस बात पर गहरी चिंता प्रकट की और सरकार से कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि जीडीपी की कम से एक फीसदी राशि रक्षा अनुसंधान पर खर्च की जानी चाहिए। समिति ने इस बात पर भी चिंता जताई है कि जीडीपी के अनुपात में डीआरडीओ को दी जाने वाली अनुसंधान राशि घट रही है।
समिति ने पाया कि 2016-17 के दौरान डीआरडीओ ने जीडीपी का 0.088 फीसदी बजट रक्षा अनुसंधान पर खर्च किया था। इसमें अगले कुछ सालों के दौरान बढ़ोत्तरी दिखी। लेकिन 2021-22 के दौरान इस मद के आवंटन में 0.084 फीसदी रह गया है। कमी का रुझान चिंताजनक है। देखना यह भी होगा कि वास्तव में कितनी राशि इसमें से खर्च होती है।
रिपोर्ट में डीआरडीओ के समिति के समक्ष दिए प्रजेंटेशन में कहा कि जितना बजट सरकार से मांगा जाता है, उतना कभी नहीं मिलता है। संस्थान ने कहा कि 2021-22 के दौरान 23,460 करोड़ रुपये की जरूरत बताई गई थी लेकिन 20,457 करोड़ रुपये की राशि ही बजट में स्वीकृत हुई है। इसके बाद इस राशि के हिसाब से योजनाओं का नए सिरे से निर्धारण करना पड़ता है। डीआरडीओ ने कहा कि इससे प्राथमिकताओं को फिर से तय करना पड़ता है। यह एक समस्या है। दूसरे, भावी रक्षा परियोजनाओं के लिए भी अलग से बजट की जरूरत है जो इस आवंटन से संभव नहीं है।
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