Parivartini Ekadashi 2020: परिवर्तिनी एकादशी की तिथि पंचांग के अनुसार 29 अगस्त को पड़ रही है. एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. परिवर्तिनी एकादशी के महत्व के बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था. परिवर्तिनी एकादशी की कथा पाप और अंहकार को समाप्त करने वाली मानी गई है. आइए जानते हैं परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा.
राजा बलि था असुरों का राजा
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में राजा बलि नाम का एक राजा राज्य करता था. बलि एक असुर था और असुरों का राजा का कहलाता था. असुर राज होने के बाद भी बलि धर्म-कर्म विशेष रूचि रखता था और भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसका संपूर्ण समय भगवान की आराधना में बीतता था. वह धर्म का पालन करने वाला राजा था. राजा बलि के बारे में यह बात चारों दिशाओं में फैल गई कि राजा बलि के दरबार से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता है.
इंद्र को सताने लगा भय
राजा बलि की ख्याति चारों दिशाओं में फैलने लगी तो देवराज इंद्र को चिंता सताने लगी. इंद्र को लगने लगा कि यदि राज बलि इसी तरह से धर्म कर्म के कार्यों को करता रहा तो वो एक दिन स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त कर सकता है. इंद्र के साथ स्वर्ग के अन्य देवताओं में भी खलबली मच गई. इंद्र राजा बलि से बैर रखने लगे. राजा बलि का जप-तप बढ़ने लगा तो सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और अपनी चिंता को व्यक्त किया.
वामन अवतार में प्रकट हुए भगवान विष्णु
स्वर्ग के देवताओं की बात को सुनकर भगवान विष्णु ने समस्या का समाधान का भरोसा दिया और राजा बलि के राज्य में वामन अवतार के रूप में प्रकट हुए. वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु राजा बलि के दरबार में पहुंचे. जहां उन्होने राजा बलि से वचन लेते हुए कहा कि वह वामन देव को तीन पग भूमि दान करेंगे. राजा बलि ने भगवान को वचन दे दिया. वामन अवतार में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि को सावधान किया, लेकिन राजा बलि ने यह कर उनकी बात को अस्वीकार कर दिया कि वे अपने आराध्य को वचन दे चुके हैं.
दो पग में ही नाप दिए दोनो लोक
वचन के बाद भगवान विष्णु ने अपना आकार इतना विशाल कर लिया कि उन्होंने दो पग में ही दोनों लोकों नाप दिया. इसके बाद वामन रूपी भगवान विष्णु ने राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखें. इसके उत्तर में राजा बलि ने भगवान विष्णु का तीसरा पग अपने सिर पर रख लिया. राजा की इस भावना से भगवान प्रसन्न हुए और राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया.
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